जम्मू में कट्टरपंथी जिहादियों द्वारा जिहाद की तैयारी
प्रियांशु सेठ
हाल ही में जम्मू में जमीन जिहाद या जनसांख्यिकी परिवर्तन का मुद्दा राष्ट्र की मीडिया में चर्चा का विषय बना। दरअसल जम्मू में जनसांख्यिकी राज्य प्रायोजित है। जम्मू का पूरी तरह इस्लामीकरण करने के लिए यह कट्टरपंथी जिहादियों का एक संगठित प्रयास है, जिसे कश्मीर की मुख्यधारा के क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने हमसे छिपाया। यही कारण है कि जम्मू का जनसांख्यिकी आक्रमण गजवा-ए-हिन्द के तहत ‘नरसंहार की एक प्रक्रिया’ है। जम्मू पर ऐसी घिनौनी साज़िश इसलिए काम कर रही है क्योंकि वह पहले ही कश्मीर से हिन्दुओं को भगा कर अपना इरादा स्पष्ट चुके हैं।
यह बात किसी से नहीं छिपी है कि कश्मीरी हिन्दुओं को घाटी छोड़ने पर मजबूर किया गया। एक सुनियोजित तरीके से उनका क़त्लेआम किया गया। बहन-बेटियों की इज्जत तार-तार की गईं। घाटी से हिन्दुओं के पलायन के बाद इस्लाम के झण्डे तले कश्मीर को लाने का पूरा प्रयास किया गया। बहुत हद तक वह सफल भी हुए, और अब वह जम्मू को निशाना बना रहे हैं। हालांकि उनका यह प्रयास विभिन्न स्तर पर बहुत सालों से जारी है, लेकिन जम्मू में गैर मुस्लिम समुदाय की संख्या बहुत अधिक होने के कारण जिहादी इसका इस्लामीकरण करने के लिए जनसांख्यिकी परिवतर्न का तरीका अपना रहे हैं। क्योंकि जो उन्होंने कश्मीर में किया, वैसा करने का जम्मू में सोच भी नहीं सकते।
हिन्दुओं की जमीन हड़पने का षड्यन्त्र
वक्फ बोर्ड/औकफ विभाग ने जम्मू में लक्षित तरीके से हिन्दू किसानों को अवैध बेदखली के नोटिस भेजे, जबकि वह किसान ७० वर्षों से इन जमीनों पर खेती करते आ रहे हैं, लेकिन वक्फ बोर्ड यह दावा कर रहे हैं कि वह कब्रिस्तान की जमीन है। औकाफ अधिनियम के तहत विवाद की स्थिति में वही निर्णय देने वाले होते हैं। इसलिए नतीजा क्या होता होगा, बताने की आवश्यकता नहीं। रोशनी अधिनियम के तहत योजनाबद्ध तरीके से जनसांख्यिकी परिवतर्न के मद्देनजर मुख्य रूप से जम्मू और उधमपुर, सांबा, कठुआ आदि में मुसलमानों को जमीनें दी गईं, जबकि हिन्दुओं, सिखों, ईसाइयों और बौद्धों के मामले लंबित रखे गए या खारिज कर दिए गए। यद्यपि २०१८ में रोशनी कानून को रद्द कर दिया गया। लेकिन इस कानून की आड़ में रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुसलमानों को संगठित तरीके से जम्मू, सांबा, कठुआ और इसके आसपास बसाया गया। घाटी के मुसलमान और कथित एनजीओ इनपर पैसे खर्च करते हैं, और इन्हें हर तरह का समर्थन देते हैं।
घाटी से रोहिंग्याओं को मिल रहा समर्थन
कश्मीर घाटी के लोगों ने रोहिंग्याओं के समर्थन में जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका भी दायर की है। इसमें रोहिंग्याओं को जम्मू में बसने की अनुमति देने की मांग है। बाहरी मुसलमान हवाला, सऊदी अरब और ‘अल्लाह वाले’ जैसे समूहों के द्वारा जम्मू में १५-१७ लाख की जमीन २५ लाख रुपये में खरीद रहे हैं। यह जम्मू में जनसांख्यिकी परिवर्तन के लिए हिन्दुओं की जमीन पर कब्जा करने का दूसरा तरीका है। इसके तहत बाहरी मुसलमानों को जम्मू में बसने का लालच दिया जा रहा है। इसके लिए आर्थिक मदद के अलावा गुप्त रूप से उनका पंजीकरण शरणार्थी के तौर पर करके उन्हें कश्मीरी पण्डितों को मिलने वाली सुविधाएं भी दी जा रही हैं।
पटवारियों का स्थानांतरण नियम के विरुद्ध
चुनिंदा पटवारियों को उनके मूल जिले से बाहर स्थानांतरित करके राजस्व रिकॉर्ड में हेराफेरी की जाती है, जबकि जम्मू में तैनात पटवारी अपने सेवा काल में जिले से बाहर स्थानांतरित नहीं हो सकते। इसके बावजूद सेवा नियमों को धता बताकर जम्मू और इसके आसपास के दूसरे जिलों से मजहब विशेष के पटवारी लाए जा रहे हैं। इनका उद्देश्य हिन्दू इलाकों में मुसलमानों के लिए जमीन का प्रबन्ध करना है। इस सम्बन्ध में तीन याचिकाएं जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय में लंबित है। हालांकि अनुच्छेद ३७० निरस्त होने के साथ कई कानून भी निरस्त हो गए, लेकिन जनसांख्यिकी हमला अभी भी जारी है।
मिलती रही राज्य सरकार की शह
१. तत्कालीन मुख्यमन्त्री महबूब मुफ्ती के १४ फरवरी, २०१८ के आदेश के बाद जम्मू में मुसलमानों को कानूनी तौर पर भूमि पर कब्जा करने की अनुमति मिली।
२. पूरे जम्मू में सरकार के समर्थन से वन भूमि पर कब्जा करके मुस्लिम बस्ती बसाई गई।
३. नदी के ताल, इसके किनारे और आसपास पूरे जम्मू में राज्य सरकार के शह पर जमीनें कब्जाई गईं। आलम यह है कि तवी के ९८ प्रतिशत हिस्से पर मुसलमानों ने अवैध कब्जा कर लिया।
४. जम्मू के हिन्दू बहुल इलाके में मुसलमानों को जमीन खरीदने के लिए ३५ प्रतिशत की छूट मिलती है। यह वहाबी पैसा होता है जो सऊदी से आता है।
५. अगर कहीं से कोई मुसलमान जम्मू आता है तो गरीब मुसलमानों को ‘धार्मिक उत्पीड़न का शिकार’ के रूप में दिखाया जाता है।
६. जम्मू में सुनियोजित और संगठित तरीके से रोहिंग्याओं और बांग्लादेशियों को बसाया गया। म्यांमार के ये अलगाववादी जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों के स्वाभाविक सहयोगी हैं।
[पाञ्चजन्य से साभार]
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