भारत मे 2 झूठ बोले जाते हैं :–
1 कानून सबके लिए समान है।
2 शासन की दृष्टि मे सभी धर्म समान हैं।
पालघर मे साधुओं की नृशंस हत्या पर न्यायालय मौन है पर उत्तरप्रदेश मे दंगाइयों को बचाते समय जज साहब को कानून याद आ जाता है।
एक खबर मे आंशिक गलती पर opindia के अजित भारती पर FIR हो जाती है। कड़वा सच दिखाने पर सत्य सनातन केअंकुर आर्य पर FIR हो जाती है। जरा सी बात पर अर्णब गोस्वामी पर FIR हो जाती है।
परंतु ललनटोप, ध्रुव राठी, प्रतीक सिन्हा, शेखर गुप्ता, राना आयूब और रविश कुमार पर कोई कार्यवाही क्यों नहीं होती?
जाकिर नायक और मौलाना साद फरार पर पालघर के संतों की हत्या पर कोर्ट चुप
कानून के हाथ भले ही लम्बे हों परन्तु नीयत बहुत ही खोटी है नीति बहुत ही पक्षपाती है। पूरी दुनिया में एक व्यवस्था है जो मानवाधिकार आयोग कहलाती है.
ये मानवाधिकार वाले करते क्या है ? एक छोटा सा नमूना देखें–
कश्मीर में सेना पर पत्थर फेंकने वालों के अधिकारों की रक्षा करता है.
कसाब जैसे भयंकर आतंकी के अधिकारों की रक्षा करता है.
लैंडमाइन बिछा कर सैनिकों और अर्धसैनिकों को मारने वाले और विकलांग बनाने वाले नक्सलियों के अधिकारों की रक्षा करता है.
बम विस्फोट करने वाले आतंकियों के अधिकारों की रक्षा करता है.
इनकी नजर में केवल आतंकी, नक्सली, बलात्कारी, गुण्डे और डकैत ही मानव हैं..
कुछ साल पुरानी बात है…..
न्यायमूर्ति अरिजीत पसायत ने आतंकवाद पर आयोजित एक सेमिनार में कहा था जो ‘आतंकवादी’ समाज के नियमों का उल्लंघन करते हैं और जिनके लिए मानव जीवन का कोई मूल्य ही नहीं है, उनके मानवाधिकारों की बात ही बेमानी है. उधर मानवाधिकार संगठन इस टिप्पणी से नाराज़ हो गए थे. उनका कहना था कि हर इंसान के मानवाधिकारों की रक्षा होनी चाहिए और उसे जानवरों की श्रेणी में रखना हर तरह से अनुचित है.
शायद आपको वहम होगा कि यह सभी जेल में बंद लोगो के अधिकारों की रक्षा करता होगा. तो आपका यह वहम ही है.
यदि मानवाधिकार की दृष्टि से विचार करें तो
पाकिस्तान में हिन्दूओं और सिक्खों के कोई मानवाधिकार नहीं हैं.
बंगलादेश में हिन्दूओं के कोई मानवाधिकार नहीं हैं
ईराक में यजदीयों के कोई मानवाधिकार नहीं हैं.
अमेरिका में रेड इन्डियन के कोई मानवाधिकार नहीं हैं.
अब महर्षि मनु की दण्ड निति पर विचार करें.
जब भगवान श्री रामचन्द्र जी बाली को मारते हैं तब बाली प्रश्न करता है?
दण्ड देने का अधिकार केवल राजा को है.
श्री राम जी तब उत्तर देते हैं- हे बाली – वन, पर्वत और सागर सहित यह सारी धरती हम इक्ष्वाकु वंशियों की है. सदा से हम इक्ष्वाकु वंशी इस पर शासन करते हैं। इस समय धर्मात्मा भरत इस पर शासन कर रहे है. उन्ही के आज्ञानुसार मैंने तुम्हे छोटे भाई की पत्नी को रखने के अपराध में दण्डित किया है.
उसके बाद भगवान राम कहते हैं- हे बाली हम भी स्वतन्त्र नहीं हैं हम भी मर्यादा से बंधे हैं। चरित्र के प्यारे मनु का आदेश है –
पिताचार्य्यः सुहृन्माता भार्य्या पुत्रः पुरोहितः।
नादण्ड्यो नाम राज्ञोऽस्ति यः स्वधर्मे न तिष्ठति।।
पिता, आचार्य, मित्र, माता, स्त्री, पुत्र और पुरोहित क्यों न हो जो स्वधर्म में स्थित नहीं रहता वह राजा का अदण्ड्य नहीं होता अर्थात् जब राजा न्यायासन पर बैठ न्याय करे तब किसी का पक्षपात न करे किन्तु यथोचित दण्ड देवे।।
गुरुं वा बालवृद्धौ वा ब्राह्मणं वा बहुश्रुतम् ।
आततायिनमायान्तं हन्यादेवाविचारयन्।।
चाहे गुरु हो, चाहे पुत्रदि बालक हों, चाहे पिता आदि वृद्ध, चाहे ब्राह्मण और चाहे बहुत शास्त्रें का श्रोता क्यों न हो, जो धर्म को छोड़ अधर्म में वर्त्तमान, दूसरे को विना अपराध मारनेवाले हैं उन को विना विचारे मार डालना अर्थात् मार के पश्चात् विचार करना चाहिये।।
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आतंकी या आततायियों के विषय में मनुस्मृति –
अग्निदो गरदश्चैव शस्त्रपाणिर्धनापहः।
क्षेत्रदारहरश्चैव षडेते ह्याततायिनः।।
मनुस्मृति के अनुसार 6 प्रकार के आततायी (आतंकवादी) होते हैं।
(1) सामाजिक व निजी सम्पत्ति को आग लगाने वाला
(2) अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए दुसरों को विष देने वाला
(3) हाथ में शस्त्र लेकर निर्दोष लोगों को मारने को तैयार हुआ
(4) छल कपट व शस्त्रों के बलपर बलात् धन हरण करने वाला
(5) कमजोर लोगों की जमीन छीनने वाला
(6) तथा पराई स्त्रियों का हरण करने वाला
और ऐसे आततायियों का क्या करें ,,?
ऐन्द्रं स्थानमभिप्रेप्सुर्यशश्चाक्षयमव्ययम्।
नोपेक्षेत क्षणमपि राजा साहससिकं नरम्।।
अविनाशी ख्याति प्राप्त करने के इच्छुक राजा को सफल शासक तभी कहा जाता है, जो इस प्रकार के घृणित और नीच समाज विरोधी कार्यों में लिप्त आतंकवादियों को ढूँढकर जड़ से कुचल दे। उन्हे दंडित करने मे एक क्षण भी उपेक्षा न करे।
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महर्षि मनु की दृष्टि मे आदर्श राजा
यस्य स्तेनः पुरे नास्ति नान्यस्त्रीगो न दुष्टवाक् । न साहसिकदण्डघ्नो स राजा शक्रलोकभाक् ।
जिस राजा के राज्य में न चोर, न परस्त्रीगामी, न दुष्ट वचन बोलनेहारा, न साहसिक डाकू और न दण्डघ्न अर्थात् राजा की आज्ञा का भंग करने वाला है वह राजा अतीव श्रेष्ठ है।
यदि राजा ना करे तो —
शस्त्रं द्विजातिभिर्ग्राह्यं धर्मो यत्रोपरूध्यते।
द्विजातीनां च वर्णानां विप्लवे कालकारिते।।
आत्मनश्च परित्राणे दक्षिणानां च संगरे ।
स्त्रीविप्राभ्युपपत्तौ च घ्नन्धर्मेण न दुष्यंत।।
अर्थात् जब प्रजा को धर्म पालन करने में असुविधा होती है और राष्ट्र में जब सब ओर अधर्म का बोलबाला हो जाता है तथा सामाजिक रूप से भय का वातावरण बन जाता है और निर्दोष लोगों की हत्याएं लूटपाट व आगजनी की घटनाएं निरंतर घटित होने लगें तब राष्ट्र तथा सामाजिक सुरक्षा के लिए समाज के अग्रणी लोगों को शस्त्र धारण कर अराजक तत्वों का नाश करने के लिए आगे आना चाहिए तथा समाज विरोधी कार्यों में लिप्त समाज कण्टको को चिन्हित कर तत्काल उनका नाश करना चाहिए, समाज तथा देश की सुरक्षा के लिए ऐसा करने से कोई दोष नहीं लगता है।