manu mahotsav banner 2
Categories
आतंकवाद

यह अंग्रेजों की लगाई हुई आग है

अंग्रेज भारत आए उनकी नजर भारत के मैदानी पर्वतीय संसाधनों पर पड़ी… 200 वर्ष लूट लूट कर देश को चले गए साथ में खतरनाक सौगात अंधानुकरण करने वाले आजाद भारत के हमारे सरकारी विभागों को दे गए…! ऐसा ही एक विभाग है वन विभाग |अभी कुछ दिन पहले वैश्विक स्तर पर अमेजन के वर्षा वनों की आग ऑस्ट्रेलिया के जंगलों की आग पूरी दुनिया में चिंता का विषय बनी रही… और अब सुर्खियों में है भारत के पर्वतीय राज्य उत्तराखंड के जंगलों की आग|
जिसमें पर्यावरण सहित इसके घटक जैव विविधता पशु पक्षी का संहार हो रहा है |

ऑस्ट्रेलिया दक्षिण अमेरिका में जंगल की आग के लिए कुछ अन्य कारक मानवीय गतिविधियां जिम्मेदार हो सकते हैं लेकिन हमारे देश में परिस्थितियां अलग है भारत में जंगलों की आग के लिए यदि कोई जिम्मेदार है तो वह केवल चीड़ (Pine Tree) का वृक्ष |अंग्रेजों के भारत में आगमन से पूर्व हमारे हिमालई राज्यों में चीड़ का वृक्ष(Pine Tree) नहीं पाया जाता था… लूट के माल को इधर-उधर करने के लिए अंग्रेजों ने भारत में अपने स्वार्थ के लिए रेल नेटवर्क ,नदियों पर लकड़ी के पुल बनाए उसके लिए बड़े पैमाने पर लकड़ी की आवश्यकता पड़ती है उस आवश्यकता की पूर्ति अंग्रेजों ने चीड़ के वृक्ष से की|चीड़ के वृक्ष से प्राप्त लिसा से तमाम वार्निश ऑयल अंग्रेजों ने मुंह मांगे दामों पर बेचे मोटा मुनाफा कमाया|अंग्रेज तो चले गए लेकिन चीड़ का जो जहरीला वृक्ष उन्होंने पहाड़ी राज्यों में रोपा वह आज शाखा रूप होकर पहाड़ों को भस्म कर रहा है… चीड़ का वृक्ष उत्तरी यूरोप उत्तरी अमेरिका ठंडे प्रदेशों में पाया जाता है भारत की जलवायु के यह अनुकूल नहीं है… पहाड़ पर जब इसे लगाया जाता है तो यह तेजी से फैलता है आसपास अन्य किसी वृक्ष को नहीं होने देता जमीन से पानी को सोख लेता है भूमि की नमी खत्म हो जाती है.. इसकी पत्तियां जो नुकीली होती है वृक्षों से बड़ी संख्या में गिरती रहती है उन्हें पीरुल कहा जाता है यह तेजी से आग पकड़ती है |उत्तराखंड के ग्रामीण लोग इन पत्तियों का चारे के रूप में भी इस्तेमाल नहीं कर सकते इनका आकार बहुत छोटा होता है पशु इन्हें पसंद नहीं करते नुकीली होती है.. इनमें पाए जाने वाला जाने वाला फाइटोटोक्सीन जमीन में रिस जाता है जमीन को Acidic बनाता है…|चीड़ वृक्ष की लकड़ी इतनी ज्वलनशील होती है घंटों पानी में भिगोकर भी तुरंत आग पकड़ लेती है…|भगवान ने हिमालय के लिए देशज देवदार बांज जिसे बलूत भी बोला जाता है जैसे उपयोगी वृक्ष बनाए जो उत्तराखंड हिमाचल सहित पहाड़ी राज्यों की जलवायु के अनुकूल है कोई नुकसान नहीं है लकड़ी भी उपयोगी है|चीड़ वृक्ष की पत्तियां इतनी फिसलन भरी होती हैं पहाड़ी जंतु भी इनके का कारण गिरकर मर जाते हैं… जबकि हिमालय के देसी वृक्षों की पत्तियां बड़ी होती हैं तेजी से सूखती है डीकंपोज हो जाती हैं चीड़ वृक्ष की पत्तियां डीकंपोज होने में बहुत लंबा समय लेती है जिससे जमीन की उर्वरता भी प्रभावित होती है |1950 से लेकर 2004 तक तेजी से चीड़ जैसे नुकसानदायक वृक्ष का वृक्षारोपण हिमालई राज्यों में हुआ आज स्थिति यह है यह वृक्ष उत्तराखंड के चार लाख Hectare से अधिक क्षेत्र पर काबिज है 40 फ़ीसदी से अधिक पहाड़ी क्षेत्र को इस ने घेर लिया है ,जिनसे 23 लाख टन चीड़ की पत्तियां प्राप्त होती हैं जिनका कोई उपयोग नहीं है जो मार्च के बाद वनों में आग में पेट्रोल का काम करती है… इन पत्तियों के कोयले जैविक ईंधन के निर्माण के रूप में अनेक कागजी परियोजना चली लेकिन वह कागजों में ही सिमट कर रह गई…|हां लेकिन इस खतरनाक वृक्ष की खतरनाक पत्तियां निरंतर अपना कार्य आग में पेट्रोल डालकर उत्तराखंड के पर्वतीय जैव विविधता को भस्म कर बखूबी कर रही हैं |हम केंद्रीय जलवायु वन पर्यावरण मंत्रालय तथा पहाड़ी राज्यों की सरकारों के संबंधित विभागों से अनुरोध करते हैं इस मामले में ठोस कार्य योजना बनाई जाए चीड़ के वृक्षों से पर्वतीय राज्यों को मुक्त किया जाए देसी गुणकारी वृक्षों को बढ़ावा देना चाहिए… आखिर जब साम्राज्यवादी शोषक अंग्रेज नहीं रहे तो उनकी इन खतरनाक सौगातो को हम क्यों सहेज कर रखे हुए हैं ?अब भी यदि हम नहीं संभले, महा विनाश निश्चित है|

Comment:Cancel reply

Exit mobile version