बिहार : भाजपा जदयू नेताओं की खामोशी बदलते हुए परिवेश के संकेत तो नहीं
मुरली मनोहर श्रीवास्तव
कोरोना आपदा से देश तथा राज्य भी जूझ रहा है। कोरोना संक्रमण का दौर जारी है, इस परिस्थिति से निपटने में हर कोई लगा है। कोरोना से बचने के लिए लॉकडाउन किया गया है। इसी लॉकडाउन में कई कदावर नेताओं की चुप्पी राजनीतिक गलियारे में चर्चा का विषय बना हुआ है। केंद्र से लेकर राज्य तक राजनीतिक खिचड़ी पकती हुई दिखने लगी है। केंद्र में और बिहार में एनडीए की सरकार है। एक तरफ बिहार में भाजपा अपने दल के कार्यकर्ताओं और नेताओं को सभी सीटों पर तैयारी करने को कह रही है। वहीं जदयू नेता नीतीश कुमार अपने सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं से लगातार वीडियो कांफ्रेंसिग से जुड़े हुए हैं, हलांकि नीतीश कुमार ने भाजपा के नेताओं से भी इस मुद्दे पर विमर्श किया है। लेकिन इससे अलग होकर जरा देखा जाए तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तथा बिहार में नीतीश सरकार के साथ राजनीति के शुरुआती दौर से साथ चलने वाले सांसद ललन सिंह तथा कभी नीतीश कुमार के खास ब्यूरोक्रेट रह चुके और अब सांसद आरसीपी सिंह तीनों का अचानक से कोरोना संकट के इस दौर में राजनीतिक मंच से गायब हो जाना कई सवालों को जन्म देता है।
खामोशी से उपजे सवालः
केंद्रीय राजनीति की धूरी और भाजपा के चाणक्य अमित शाह को माना जाता है। राजनीति में किस गोटी को कहां फिट करना है अमित शाह अच्छी तरह से जानते हैं। मगर इधर कुछ दिनों से उनकी चुप्पी ने राजनीति में संशय पैदा कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ कदमताल करने वाले अमित शाह इस वक्त साथ नजर नहीं आ रहे हैं, तो सवालों का खड़ा होना लाजिमी है। वहीं बिहार के सियासी गलियारे में नीतीश कुमार के खास माने जाने वाले और हर पल साये की तरह साथ रहने वाले राजनीति के मंजे खिलाड़ी जदयू सांसद ललन सिंह और सांसद आरसीपी सिंह का चुप रहना तथा मुख्यधारा से दूरी बना लेने वाली बात इस वक्त चर्चा-ए-आम हो गई है। राजनीतिक पंडितों की मानें तो भाजपा-जदयू के बीच इधर कुछ कभी कुछ ठीक नहीं देखने को मिलता है। इन दोनों दलों में कई बार कई मुद्दों पर अपनी अलग-अलग राय हुआ करती है। कई मुद्दों पर अलग-अलग स्टैंड रखने वाले भाजपा तथा जदयू आज तक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के एजेंडे को भी राज्य में पूरी तरह से जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं के बीच स्थापित नहीं कर पाए। इन दोनों दलों के आपसी संबंधों पर कुछ कहने की जरुरत नहीं है, बल्कि इनके अपने रिश्तों में दरार की खबरें पहले भी कई बार आम हो चुकी हैं। बावजूद इसके सत्ता है साथ चलना विवशता भी तो है। तभी तो इन दोनों दलों के रिश्ते लंबे समय से चलते आ रहे हैं।
गठबंधन रहेगा बरकरारः
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में दो केंद्रीय मंत्रालय संभाल चुके नीतीश कुमार अपने काम की वजह से हमेशा चर्चा में रहते हैं। जिस बिहार में विकास की राहों में रोड़ा अटका हुआ था उसको हटाकर विकास की राहों पर बिहार को दौड़ाकर चर्चा में आए। इस बीच इन्हें दलों को भी बदलने की जरुरतें पड़ती रही हैं तो कई नेताओं से दूरी भी बनी। खैर, अभी वक्त आने वाला है चुनाव को तो एक बात दिलाना जरुरी है कि वर्ष 2013 में यह गठबंधन केंद्रीय स्तर पर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को लेकर टूट चुका था। मगर 2017 में बिहार के मुख्यमंत्री तथा जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार राजद-कांग्रेस से गठबंधन छोड़कर पुनः भाजपा के साथ आकर अपनी कुर्सी को बरकरार रखने में कामयाब साबित हुए थे। चर्चा यह भी है कि राजनीति में नीतीश कुमार दोबारा गठबंधन अपनी शर्तों पर ही शामिल हुए थे। गठबंधन बिना किसी विवाद के दो वर्षों तक आगे चलने में कामयाब रही। मगर इधर होने वाले चुनाव से पहले भाजपा और जदयू अपने अपने तरीके से रणनीति बनाने में जुटे हुए हैं।
नीतीश नहीं बने रहे हैं फेसः
बिहार की सियासत में राजद के प्रदेश अध्यक्ष शिवानंद तिवारी के बयान ने राजनीतिक गलियारे में कौतूहल बढ़ा दी है। उन्होंने कहा है कि भाजपा इस बार बिहार में विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार को फेस बनाकर चुनाव लड़ने नहीं जा रही है। कहा जाता है कि शिवानंद तिवारी बिना की तथ्य के कोई बयान नहीं देता हैं। यदिन शिवानंद तिवारी के बयान में कल्पना की जगह सत्यता हुई और नीतीश कुमार इसको समझ रहे हैं तो कहीं न कहीं तीन नेताओं की चुप्पी जरुर कुए अलग संकेत दे रहे हैं। केंद्रीय स्तर पर गृह मंत्री अमित शाह की खामोशी तथा बिहार में ललन-आरसीपी की राजनीतिक उदासीनता कुछ और ही इशारा कर रही है। आम तौर पर जब भी बिहार में कुछ बड़ा माला आता है तो सरकार को बचाव में विपक्ष पर दबाव बनाने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बाद सांसद ललन सिंह या आरसीपी सिंह का बयान ही मीडिया की सुर्खियों में होती है। कहा तो ये भी जाता है कि सूबे के ब्यूरोक्रेसी का प्रबंधन भी इन्हीं नेताओं के इशारे पर ही इधर से उधर होती है।
मगर इधर राज्य सरकार के भाजपा छोड़कर आए मंत्री संजय झा और कांग्रेस छोड़कर आए मंत्री अशोक चौधरी इस वक्त नीतीश कुमार के खास में गिने जा रहे हैं। अब जदयू के अंदर खाने इस वक्त राजनीतिक खिचड़ी क्या पक रही है और आगे रणनीति क्या होगी, क्या भाजपा से दूर होकर जदयू अपनी ताल ठोंकेगी या फिर भाजपा के साथ कदमताल करेगी इस बात पर अभी पर्दा है। क्योंकि दोनों ही दलों के दिग्गज अमित शाह और ललन-आरसीपी की चुप्पी क्या गुल खिलाएगी इस पर सभी लोगों की नजरें टिकी हुई हैं। या फिर इनकी अलग खिचड़ी कुछ और ही पक रही है इसको जानने के लिए थोड़ा इंतजार जरुर करना पड़ेगा।