जानिए! गिलगित और बालटिस्तान पर भारत का हक क्यों है?
देश की सीमाओं को जानना अत्यावश्यक है । अपनी सीमाओं की वास्तविकता के विषय में जब हम जानेंगे तभी तो आने वाली पीढ़ी भी जानेगी कि हमारे देश की वास्तविक सीमाएं कहां से कहां तक है या अतीत में कहां से कहां तक रही हैं और यह क्रम तब तक चलता रहेगा जब तक कि हमारी चीज हमारी नहीं हो जाती है ।
अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए मैं एक बात कहता हूं कि मान लो कि आपकी जमीन है , उसकी रजिस्ट्री भी है । पड़ोसी ने धोखे से कुछ जमीन कब्जा ली और उसमें से उसने कब्जाए हुए हिस्से में से एक टुकड़ा किसी और को बेच दिया । कालांतर में आपने मुकदमा किया तो विजय आपकी होनी सुनिश्चित है । जिसने वह कब्जाया हुआ टुकड़ा खरीदा वह तो दोषी है ही और बेचने वाला मतलब आप की जमीन को धोखे से कब्जाने के बाद एक टुकड़ा बेचने वाला वह भी दोषी है । न्याय आपके पक्ष में ही होगा ।
इसी प्रकार कश्मीर के संदर्भ को देखें , कश्मीर क्या है , किसका है ? आइए इस पर विचार करें ।
14 वीं शताब्दी में मुस्लिम आक्रमणों के पश्चात जनसंख्या मुसलमान बनती गई । 14 वीं शताब्दी तक वहां बुद्ध तथा अन्य हिंदू राजाओं का राज्य था
उनके कार्यकाल का वर्णन कल्हण की राजतरंगिणी नामक संस्कृत पद्य ग्रंथ में देख सकते हैं ।
कल्हण का इतिहास लेखन कार्य पंडित जोना राजा ने 15वीं शताब्दी के प्रारंभ तक चालू रखा था।
हिंदू कालखंड में हिंदू राजाओं ने अपने राज्य का कार्य संभालते हुए वहां सुंदर मंदिर और अन्य सार्वजनिक रचनाएं खड़ी की । अनंतनाग बृज बिहारी पांडू पट्टन , शंकराचार्य पट्टन , मार्तंड आदि इन नगरों के अवशेष आज भी मिलते हैं । इस प्रकार ऐसा लगता है कि वहां आबादी भी घनी रही होगी । हिंदू राजाओं के शासन में हिंदू प्रजा सुख समृद्धि में रहती होगी। वहां नहर और जो ताल हैं उनको देखने से यह प्रतीत होता है कि हिंदू नरेशो ने अपनी संपत्ति का विनियोग केवल मंदिर बनाने में नहीं लगाया था बल्कि खेती के विकास के लिए भी लगाया था ।
मुस्लिम आक्रमणों ने कश्मीर को दासता का रूप दिया और जो विकसित वस्तुएं वहां थी उन्हें ध्वस्त किया जाने लगा । हिंदुओं को भी मुसलमान बनाने का काम चालू रहा । 1587 में अकबर ने कश्मीर को अपने साम्राज्य में विलीन किया और इस प्रकार लगभग 120 वर्षों तक वह स्थान मुगलो का हिल स्टेशन रहा। यह कालखंड 1587 से लेकर 1707 ईसवी तक का ही है । हमको यह ध्यान रखना चाहिए कि 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद मराठों ने तेजी से अपना साम्राज्य विस्तार किया और धीरे-धीरे मुगलों का साम्राज्य उखाड़कर सन 1737 तक भारत के विशाल भूखंड पर अपना हिंदू राज्य स्थापित कर लिया इस प्रकार कुछ लोगों ने कश्मीर पर मुगलों का 200 वर्ष से भी अधिक का जो शासन माना है वह इतिहास का एक झूठ ही है ।
मुगलों का चंगुल समाप्त हुआ तो अफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली ने 1750 में हिंदुस्तान पर आक्रमण किया और कश्मीर को अपने अधीन कर लिया। लगभग 70 वर्ष के आसपास सन 1819 तक कश्मीर पर विभिन्न पठान प्रशासक अधिकार जमाए रहे। धर्मांतरण के लिए मुस्लिमों ने हिंदुओं के लिए तीन पर्याय रखे थे 1 ) इस्लाम ग्रहण करें । 2 ) देशत्याग करें या 3 ) मृत्यु को स्वीकार करें
जिन लोगों ने इस्लाम को नहीं अपनाया या देश को नहीं छोड़ा वैसे हिंदुओं को मौत के घाट उतार दिया गया। सन 1819 में महाराजा रणजीत सिंह ने मुसलमानों के चंगुल से पंजाब को मुक्त करवाया और कशमीर को भी मुक्त कराने का काम किया।
सन 1846 तक कश्मीर सिख राजाओं के अथवा उनके प्रशासकों के अधीन रहा । कश्मीर का जम्मू भूखंड सन 1750 के पश्चात रणजीतदेव नामक राजपूत वंशीय डोगरा राजा के हाथ में था । 1780 में राणा रणजीत देव की मृत्यु हो गई । बाद के काल में महाराजा रणजीत सिंह की सेना में राणा रणजीतदेव के वंश के तीन युवक गुलाब सिंह , ध्यान सिंह और सुचेत सिंह सेनापति के नाते रहे। महाराजा रणजीत सिंह ने उनको उनकी सेवा के बदले सन 1818 में गुलाब सिंह को जम्मू , ध्यान सिंह को चंबल और पुंछ तथा सुचेत सिंह को रामनगर का भाग दिया।
आगे चलकर ध्यान सिंह और सुचेत सिंह युद्ध में मारे गए इस प्रकार गुलाब सिंह अलिखित रूप में सब साम्राज्य का शासक बना । 1846 में अंग्रेज और सिख युद्ध की समाप्ति हुई ।अंग्रेजों को विजय मिली और उन्होंने पंजाब के सिक्ख सत्ता धारियों से एक करोड़ रुपए और पंजाब के बड़े भू-भाग की मांग की।
उस समय का गवर्नर जनरल हार्डिंग्ज था ।
गुलाब सिंह एक करोड़ रुपए देने के लिए प्रस्तुत हुआ। उसकी शर्त थी कि जम्मू और कश्मीर भाग स्वतंत्र रूप से उसके अधीन रहे । अंग्रेजों ने शर्त स्वीकार कर ली। यह संधि पत्र 16 मार्च 1846 को अमृतसर में संपन्न हुआ ।
इस प्रकार जम्मू और कश्मीर एक स्वतंत्र राज्य बना ।
1947 में जब भारत का बंटवारा कर भारत की 563 रियासतों के राजाओं ने भारत के समर्थन में अपने पत्र लिखकर अपनी रियासत की ओर से भारत में विलीन होने का संकल्प पत्र प्रस्तुत किया था , तभी कश्मीर जम्मू कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भी अपनी रियासत के भारत के साथ विलय का पत्र 26 अक्टूबर 1947 को भारत सरकार को दिया था ।
जैसे अन्य राजाओं के पत्र लिखने मात्र से ही उनकी रियासतें भारत में विलीन हो गई, वैसे ही महाराजा हरि सिंह की रियासत भी उनके पत्र लिखने मात्र से भारत की हो गयी । अब हमारा कश्मीर वहां तक है जहां तक महाराजा हरि सिंह की रियासत हुआ करती थी । महाराजा हरि सिंह द्वारा भारत के साथ विलीन होने के संकल्प पत्र के प्रस्तुत करने के उपरांत से कश्मीर भारत का अभिन्न अंग हो गया और अब यह हमारा भीतरी मामला है ।
इसी महाराजा गुलाब सिंह के वंशज महाराजा हरि सिंह हुए जिन्होंने अक्टूबर 1947 में भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर किया और इस प्रकार जम्मू एवं कश्मीर का पूरा का पूरा भू – भाग भारत का हो गया ।बाद के काल में पाकिस्तान ने कव्वालियों को आगे करके सैन्य बल का प्रयोग कर एक तिहाई भूभाग कब्जा कर लिया । उसी को पीओके कहते हैं अर्थात पाक अधिकृत कश्मीर । इसके साथ ही गिलगित और बालटिस्तान का भी हिस्सा है । यह सारा का सारा इलाका कश्मीर रियासत का है ।
इस सारे हिस्से को नेहरु जी ने विवादित बनाकर रखा । आज हमारे लोकप्रिय प्रधानमंत्री माननीय मोदी जी ने पाकिस्तान को साफ साफ शब्दों में कह दिया है कि हमारी जमीन पीओके , गिलगित और बालटिस्तान को खाली करो । अब पीओके , गिलगित एवं बालटिस्तान को वापस हस्तगत करना न्याय हित में होगा ।