पांडवों की इंद्रप्रस्थ अर्थात दिल्ली उनके पश्चात 7 बार बसी 7 बार उजड़ी… दिल्ली के उजड़ने में सनातन वैदिक धर्म हिंदू राजाओं का कोई योगदान नहीं था उसके लिए पूरी तरह जिम्मेदार थे पश्चिम व मध्यम एशिया से आए जिहादी लुटेरे जिन में मोहम्मद गोरी तैमूर लंग कुतुबुद्दीन ऐबक अलाउद्दीन खिलजी जैसे नाम शामिल है.. फिरोजशाह तुगलक शेरशाह सूरी शाहजहां जैसे मान्यता प्राप्त लुटेरों ने इसे अपने स्वार्थ के लिए बसाया भी |
इस कारण दिल्ली संसार का एक अद्भुत नगर है ,दिल्ली किलो का नगर है | दिल्ली के करीब 10 किलो के बारे में जानकारी मिलती है जिनमें कुछ यथावत कायम है कुछ के अवशेष ही शेष है… कुछ के अवशेष भी नहीं है.. पांडवों के बसाई नगर इंद्रप्रस्थ की हम बात करें तो आप उसका जमीन के ऊपर कोई नामोनिशान नहीं है.. 16 वी शताब्दी में मुगलों को परास्त कर दिल्ली को ध्वस्त कर शेरशाह सूरी ने 1538 में पांडवों की नगरी इंद्रप्रस्थ के ऊपर अपना नगर बसाया उसका नाम रखा दीनपनहा उसके ऊपर पुराने किले का निर्माण कराया पुराना किला प्राचीन नगरी इंद्रप्रस्थ के ऊपर ही बना हुआ है…|
अब हम पांडवों की इंद्रप्रस्थ के बाद दिल्ली के सबसे प्राचीन गौरवशाली किले का दर्जा किस को दे? यह यक्ष प्रश्न हमारे सामने उपस्थित हो जाता है| इसके लिए हमें ऐतिहासिक काल घटनाक्रमों को समझना होगा जो दिल्ली में सातवीं शताब्दी से लेकर शुरू हुए |
महाभारत काल के बाद दिल्ली पर 12वीं शताब्दी तक विभिन्न वंश के हिंदू राजाओं का शासन रहा | उज्जैन के राजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने भी दिल्ली पर शासन किया बंगाल के सेन वंश ने भी दिल्ली पर शासन किया गुजरात के मलूक चंद वोहरा ने भी दिल्ली पर शासन किया योग्यता के आधार पर इन वंश का सत्ता हस्तांतरण हुआ कोई मार काट आम प्रजा ने जानमाल की हानि नहीं उठाई जैसा मुगल तुर्कों ने दिल्ली के साथ सलूक किया नादिरशाह तैमूर लंग अलाउद्दीन खिलजी जैसे लुटेरों ने रक्तपात मचाया |
सातवीं शताब्दी से लेकर आधी 12 वीं शताब्दी तक दिल्ली पर गुर्जर तंवर वंश ने शासन किया | इस वंश में अनेक प्रतापी शासक हुए जिनमें प्रमुख तौर पर 3 नाम निकल कर आते हैं अनंगपाल तंवर प्रथम, सूरजपाल तंवर, उसी की पीढ़ी में अनंगपाल द्वितीय | पहले दो ने क्रम से दिल्ली व उसी के अधीन फरीदाबाद की प्यास को बुझाने के लिए अनंगपुर का बांध, सूरजकुंड का निर्माण कराया | वैदिक राजधर्म में एक राजा के जो भी कर्तव्य होते हैं इष्ट , पूर्त दोनों ने भली-भांति उनका निर्वहन किया |
दिल्ली पर लगभग 350 वर्ष तक शासन करने वाले इस गुर्जर तवर वंश में सर्वाधिक प्रतापी प्रमुख शासक अनंगपाल द्वितीय ही हुआ है उसी ने दिल्ली को पांडवों के पश्चात दोबारा बसाया | आनंदपाल द्वितीय ने यमुना के खादर अरावली की पहाड़ियों के बीच… 1052- 1060 ईसवी के बीच दिल्ली के सबसे प्राचीन दुर्ग किले का निर्माण कराया जो लाल कोट के नाम से जाना जाता था जाना जाता है… कुछ लोग लाल किले , लाल कोट को एक ही समझते हैं दोनों अलग-अलग कालखंड में अलग अलग स्थान पर बनवाए गए किले हैं.. लाल किले अर्थात रेड फोर्ट का निर्माण मुगल शाहजहां ने 17वीं शताब्दी में 1628 ईसवी मैं कराया… जबकि लालकोट उससे 500 वर्ष प्राचीन है|
लाल कोट इतना विशाल किला था इसकी दीवारों की परिधि 36 किलोमीटर थी | दीवारों की मोटाई 5 से लेकर 6 मीटर की ऊंचाई 18 मीटर थी… लाल कोट के बीचो-बीच गुर्जर नरेश अनंगपाल द्वितीय का 763875 वर्ग मीटर में फैला हुआ… महल था.. लाल कोट के अंदर दर्जनों मंदिर यज्ञ शाला वेधशाला थी | आज महरौली का जो लौह स्तंभ है प्राचीन भारतीय धातु विज्ञान का बेजोड़ नमूना है हजारों वर्षों से आज तक उसमें जंग नहीं लगा है दुनिया का आठवां अजूबा माना जाता है उसे गुर्जर नरेश आनंदपाल द्वितीय मथुरा से उखड़वा कर लाए थे अपने किले के परिसर में स्थापित कराया उस पर उनका नाम भी अंकित है |
लाल कोट में 12 प्रवेशद्वार थे.. हालांकि लूटेरा तैमूर लंग इसमें द्वारों की संख्या 13 बताता था अपनी यात्रा प्रसंगों में अपनी आत्मकथा तुजुक ए तैमूरी में | अमीर खुसरो ने द्वारों की संख्या 12 ही बताई है.. अबुल फजल जिसने अकबर की जीवनी लिखी अकबर का दरबारी कवि था उसने भी द्वारों की संख्या 12 ही बताई है विदेशी यात्री इब्नबतूता भी इतनी ही बताता है |
गुर्जर तवर वंश का जब पराभव हुआ अजमेर के चौहानों ने जब दिल्ली पर शासन किया तो इस किले का शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण हो गया.. आधी 11वीं शताब्दी से लाल कोट की बागडोर चौहानों के हाथ में आ गई… विग्रहराज , पृथ्वीराज चौहान जैसे शासकों ने अपना शासन दिल्ली पर चलाया.. पृथ्वीराज चौहान ने इस किले को यथावत बरकार रखा बल्कि इसका विस्तार करते हुए राय पिथौरा इसका नामकरण किया… महावीर पृथ्वीराज चौहान दिल्ली के अंतिम हिंदू शासक रहे |
इस शानदार भव्य लाल कोट के विखंडन की कहानी शुरू होती है 12वीं शताब्दी से 1192 ईसवी में मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराकर दिल्ली का राज्य हथिया लिया मोहम्मद लूट मचा कर वापस चला गया दिल्ली के राज्य की जिम्मेदारी उसके गुलाम ,सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने संभाली… ( यहां यह उल्लेख करना जरूरी है कालांतर में पृथ्वीराज चौहान ने गोरी का वध कर अपनी पराजय का बदला लिया) इसमें कोई संशय नहीं मोहम्मद गौरी जैसे लुटेरों ने दो प्रतापी हिंदू तंवर व चौहान वंश की आपसी फूट कलह का फायदा उठाया | इसी के कारण प्रतापी चौहान वंश पूरी एक शताब्दी भी दिल्ली मैं शासन नहीं कर पाया आधी 12वीं शताब्दी से लेकर 1192 तक केवल शासन रहा | इसका एक कारण कुछ इतिहासकार यह भी बताते हैं कि जितनी प्राथमिकता चौहानों ने अजमेर को दी उतनी दिल्ली को नहीं दी |
कुतुबुद्दीन ऐबक ने लाल कोट के भीतर मंदिरों महलों वेधशाला यज्ञशाला को नष्ट भ्रष्ट करके अपने महल मस्जिद मीनार और मकबरे खड़े किए | लाल कोट के अवशेष से ही कुवत -उल- इस्लाम मस्जिद ,कुतुब मीनार का निर्माण कराया गया | क़ुतुब मीनार जिसे आज तुम अजूबा मानकर देखते हो यह लाल कोट जैसे असल अजूबों को ध्वस्त करके ही बनाई गई|
कुतुबुद्दीन ऐबक के गुलाम वंश ने 100 साल दिल्ली पर शासन किया फिर दिल्ली पर खिलजी वंश के अफगानी तर्कों का शासन हुआ जिहादी लुटेरे अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 के आसपास लालकोट के उत्तर पूर्व में विकास के दक्षिण पूर्व में एक नगर बसाया और उसे एक मजबूत पर कोट से घेर लिया अपने बसाई गए नगर में उसने भी लाल कोट के खंडित अवशेषों का ही इस्तेमाल किया उसे नाम दिया सीरी किला जिसे सीरी Fort के नाम से जाना जाता है|
खिलजी वंश के बाद 1321 ईसवी में तुगलक वंश का शासक दिल्ली पर हुआ गयासुद्दीन तुगलक दिल्ली का सुल्तान बना उसने भी गुर्जर नरेश अनंगपाल द्वितीय के बनाए हुए लाल कोट के अवशेषों हासिल शिलाखंड खंडों से लाल कोट के करीब 8 किलोमीटर पूर्व में एक चट्टानी पहाड़ी पर तुगलकाबाद के नाम से स्थापित किया |
तीसरे तुगलक सुल्तान फिरोज शाह ने 1354 में एक नया नगर बसाया फिरोजाबाद उसने भी लाल कोट के शिलाखंड संसाधनों से एक किले का निर्माण कराया जो दक्षिण में यमुना के तट पर बनाया गया है अब फिरोज शाह कोटला के नाम से जाना जाता है |
इसके पश्चात मुगलों ने लाल किले का निर्माण कराया रेड फोर्ट यहां यह उल्लेखनीय है कि लाल किले के निर्माण में लाल कोट के शिलाखंड ओं का इस्तेमाल नहीं हुआ है इसमें विशेष लाल पत्थरों का प्रयोग किया गया| लेकिन यह भी सत्य है कि लाल किले के निर्माण में देश के अन्य सनातन धार्मिक सांस्कृतिक स्थलों के खंडित अवशेषों का इस्तेमाल हुआ जो मुगलों द्वारा लूटे गए मुगल सम्राट शाहजहां का मयूर सिंहासन ,कोहिनूर हीरा इसके उदाहरण है |
देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात हमारी सरकारों का निष्पक्ष कर्तव्य यह बनता था कि वह दिल्ली के प्राचीनतम किले लाल कोट का उत्खनन जीर्णोद्धार कराए… लाल कोट दुनिया का ऐसा दुर्भाग्यशाली किला रहा है… जिसके खंडित अवशेषों से दिल्ली में अलग-अलग विदेशी लुटेरों शासकों ने किले खड़े कर दिए.. इनमें से कुछ किले उसी की छाती पर तो कुछ यमुना मैया के आंचल में बनाए गए… लेकिन आज तक लाल कोट के विषय में किसी भी सरकार शासक ने संज्ञान नहीं लिया… 1978 के पास आधे अधूरे मन से दिल्ली सरकार ने महरौली के योग माया मंदिर जो लालकोट जितना ही प्राचीन है वहां उत्खनन कार्य कराया महत्वपूर्ण पुरातात्विक अवशेष मिले सेकुलरिज्म के कीड़े से ग्रस्त सत्ता के केंद्र राजनेताओं के दबाव में इस कार्य को भी रोक दिया गया |
मेहरौली बदरपुर रोड, दिल्ली कुतुब रोड लाल कोट किले की दीवारों को काटकर बनाए गए हैं | अपने निर्माण कर्ताओं की तरह यह किला बहुत परोपकारी है |
दिल्ली अरावली की पहाड़ी दक्षिणी दिल्ली में आज भी लाल कोट की खंडित प्राचीर अवशेष कूट कूट कर गवाही दे रहे हैं 11 वीं शताब्दी के महान विशाल किले लालकोट उसके निर्माणकर्ता राजवंशों की महानता वैभव की |
ना जाने वह दिन कब आएगा जब मुगलों के बनाए हुए रेड फोर्ट लाल किले की तरह कम से कम 26 जनवरी या 15 अगस्त की तरह इस लालकोट की खंडित प्राचीर से भी एक ना एक दिन भारत के राष्ट्र अध्यक्ष , संवैधानिक संस्थानों के प्रतीक निकाय झंडा फहराएंगे उसे सलामी दी जाएगी… असली सलामी का हकदार तो यह लाल कोट किला माफ कीजिए मेरा मतलब किला अवशेष है…|