प्राय ऐतिहासिक घटनाक्रमों से अंको का संबंध जुड़ ही जाता है… हिस्टोरिकल ग्रंथ महाभारत भी इससे अछूता नहीं रहा है… 18 के अंक व महाभारत के घटनाक्रमों, पात्रों का ऐसा ही दुखद सुखद मिश्रित संयोग है………………..
इसे समझते हैं, महाभारत ग्रंथ 18 पर्व (चैप्टर) में लिखा गया है…. महाभारत का भीषण युद्ध 18 दिन तक ही चला… इसमें 18 अक्षौहिणी सेना शामिल हुई… पांडवों को 12 वर्ष का वनवास 1 वर्ष का अज्ञातवास हुआ… 1 वर्ष के अज्ञातवास में भी दिनों की संख्या अवधि को लेकर विवाद था वह 18 ही दिन थे दुर्योधन मानता था कि पांडवों के अज्ञातवास में अभी 18 दिन शेष है.. पांडव कहते थे उन्होंने 12 वर्ष के वनवास 1 वर्ष के अज्ञातवास में भी 6 दिन अतिरिक्त गुजार दिए हैं… दरअसल महाभारत काल में भी दो अलग-अलग कैलेंडर( पंचांग )प्रचलन में थे.. सौर मास पर आधारित, चंद्रमास पर आधारित… उस समय के बड़े-बड़े ज्योतिषियों ,खगोल वैज्ञानिकों ने इस समस्या का भी समाधान किया… गंगापुत्र भीष्म का मत भी निर्णायक माना गया वह भी ज्योतिष खगोल के के उत्तम विद्वान थे महारथी होने के साथ-साथ ,पांडवों का मत सही पाया गया |
18 के अंक से जुड़े हुए महाभारत में ऐसे अनेकों छोटे-मोटे अनेक प्रसंग है| उदाहरण के तौर पर महाभारत के युद्ध के पश्चात महाराज धृतराष्ट्र ,तपस्विनी गांधारी , महारानी कुंती 18 वर्ष तक जीवित रही… तीनों ने ही सन्यास आश्रम लिया… वन गमन किया… साथ में विदुर संजय ने भी सन्यास लिया…कुछ समय केकय देश (आज पाकिस्तान में है यह इलाका) के भूतपूर्व राजा राजऋषि शतयुप के आश्रम में रहे.. उन्होंने ही महर्षि व्यास के निर्देशों पर तीनों को सन्यास वनचर्या के नियमों के विषय में बताया , यह मनोरम आश्रम यमुना पार कुरुक्षेत्र में ही स्थित था |
पश्चात ईश्वर योग उपासना तपस्या करते हुए हरिद्वार के वन क्षेत्र में जंगल की आग में अग्निकांड में ब्रह्मलीन हो गए….|