भारत और नेपाल के बिगड़ते संबंधों के पीछे भी कहीं चीन ही तो नहीं खड़ा है ?
जब लद्दाख में चीन भारत के विरुद्ध अपनी सेना बढ़ा रहा है और वहां पर दोनों देशों के बीच तल्खी कुछ अधिक ही बढ़ती जा रही है , तब चीन और भारत के बीच में पड़ने वाला नेपाल भी भारत को आंखें दिखाने लगा है । जिससे शंका होती है कि नेपाल की इस प्रकार की हरकतों के पीछे भी कहीं चीन ही तो नहीं खड़ा है ?
भारत और नेपाल के बीच वर्षों की मित्रता खतरे में नजर आ रही है। लिपुलेख और लिम्पियाधुरा कालापानी को लेकर दोनों देशों के बीच तल्खी विगत कुछ दिनों में ऐसी बढ़ी है कि दोनों पड़ोसी मुल्कों के आपसी रिश्तों को लेकर कई तरह के सवाल उठने लगे हैं। विवाद की शुरुआत यूं तो नवंबर 2019 से ही हो गई थी, जब भारत ने अपना नया नक्शा जारी किया था, पर सुर्खियों में हाल के दिनों में तब आया जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बीते 8 मई को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये उत्तराखंड के पिथौड़ागढ़ जिले में लगभग 80 किलोमीटर लंबी एक सड़क का उद्घाटन किया था।
उत्तराखंड में घाटियाबागढ़ को हिमालय क्षेत्र में स्थित लिपुलेख दर्रे से जोड़ने वाली इस सड़क का निर्माण भारत के सीमा सड़क संगठन (BRO) ने किया है। बीआरओ ने धारचुला से लिपुलेख तक सड़क निर्माण पूरा किया है, जो कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग से भी प्रसिद्ध है। इस मार्ग के जरिये तीर्थयात्री कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर जा सकेंगे। कैलाश मानसरोवर की यात्रा के लिए यूं तो कई अन्य मार्ग भी हैं, पर इस मार्ग को अपेक्षाकृत छोटा और कम समय लगने वाला बताया जा रहा है। इसके जरिये तीर्थयात्रियों को ले जाने वाले वाहन चीन की सीमा तक जा सकेंगे। धारचुला और लिपुलेख के बीच बनी सड़क, पिथौरागढ़-तवाघाट-घाटियाबागढ़ रूट का ही विस्तार है, जो कैलाश मानसरोवर के ‘प्रवेश द्वार’ माने जाने वाले लिपुलेख दर्रे पर खत्म होती है।
यूं तो इसमें विवाद की कोई बात नजर नहीं आती, क्योंकि भारत का कहना है कि उसने अपने क्षेत्र में इस सड़क का निर्माण कराया है, लेकिन इसे लेकर नेपाल में सियासी भूचाल आया हुआ है, जिसका कहना है कि भारत ने जिस सड़क का निर्माण किया है, उसका तकरीबन 22 किलोमीटर हिस्सा उसके क्षेत्र में आता है। नेपाल ने इसके लिए 1816 की सुगौली संधि का हवाला दिया है और कहा है कि यह संधि भारत के साथ उसकी पश्चिमी सीमा का निर्धारण करती है और इसके तहत लिम्पियाधुरा कालापानी और लिपुलेख उसके क्षेत्र में आते हैं। भारत के साथ तनाव के बीच नेपाल ने पिछले दिनों देश का नया राजनीतिक नक्शा भी जारी किया, जिसमें उसने लिम्पियाधुरा कालापानी और लिपुलेख को अपनी सीमा के भीतर दिखाया। भारत के लिए यह हैरान करने वाली बात थी, क्योंकि इन क्षेत्रों को वर्षों से वह अपने हिस्से के तौर पर मानता रहा है।भारत और नेपाल के बीच लिपुलेख व कालापानी को लेकर उभरे इस ताजे विवाद के बीच यह जान लेना प्रासंगिक होगा कि दोनों देशों के बीच सीमा विवाद लंबे समय से रहे हैं, जिसकी वजह से आपसी संबंधों में पहले भी कई बार तल्खी आई। जहां तक लिपुलेख दर्रे का सवाल है, भारत, नेपाल व चीन की सीमा पर स्थित यह इलाका सामरिक व रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है। यह इलाका काफी ऊंचाई पर स्थित है और इससे भारत को जहां चीन की गतिविधियों पर नजर रखने में मदद मिलती है, वहीं चीन के साथ व्यापारिक हितों को देखते हुए भी लिपुलेख दर्रा काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। भारत इस इलाके को अपने राज्य उत्तराखंडा का हिस्सा मानता है, जबकि नेपाल इस पर अपना दावा करता है।
भारत-नेपाल संबंधों की बात करें तो मौजूदा तनाव को अगर छोड़ दिया जाए तो दोनों देशों के बीच संबंध हालिया वर्षों में तकरीबन मधुर ही रहे हैं। हालांकि नेपाल की मौजूदा केपी ओली सरकार भारत और नेपाल के बीच 1950 में हुई शांति एवं मित्रता संधि को लेकर भी अपना नाखुशी जता चुकी है। वह कई बार कह चुके हैं कि यह संधि नेपाल के हक में नहीं है। नेपाल में इस संधि को लेकर पहले ही विरोध के स्वर उठते रहे हैं, जबकि नेपाल से अपने संबंधों को तवज्जो देते हुए भारत ने साफ किया है कि वह इस संधि के प्रावधानों की समीक्षा पर विचार कर सकता है।
भारत-नेपाल तल्खी के बीच कहां है चीन?
बहरहाल, भारत-नेपाल लिपुलेख दर्रे को लेकर चीन के रुख पर भी टिकी थी, जिसने नेपाल में बड़ा निवेश किया है। नेपाल में चीन की बढ़ती गतिविधियों को लेकर भारत हमेशा चौकस रहा है, पर इस बार चीन का रवैया चौंकाने वाला रहा है। उसने पूरे मसले पर जिस तरह का रुख अपनाया है या टिप्पणी की है, उसकी उम्मीद नेपाल को शायद नहीं रही होगी। चीन के साथ बढ़ती नजदीकियों के बीच नेपाल को संभवत: उम्मीद रही होगी कि बीजिंग उसका पक्ष लेगा, पर चीन ने साफ कर दिया है कि यह मसला भारत और नेपाल के बीच का है और इसमें किसी भी तरह की टिप्पणी कर वह जटिलताओं को बढ़ावा देने का इच्छुक नहीं है। चीन की ओर से यह बयान ऐसे समय में आया, जबकि नेपाल के पीएम ने कहा था कि सरकार इस बारे में चीन से बात कर रही है।
चीन के इस रुख को जहां भारत के साथ बेहतर होते उसके व्यापारिक संबंधों के संदर्भ में देखा जा रहा है, वहीं यह इसकी तस्दीक भी करता है कि भारत अपने आंतरिक मामलों में किसी भी तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं करेगा। रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण लिपुलेख दर्रे की स्थिति भारत, नेपाल और चीन के बीच ट्राई-जंक्शन जैसी रही है। चूंकि यह इलाका चीन से भी लगता है, ऐसे में भारत व चीन के बीच व्यापार व वाणिज्य को बढ़ावा देने के लिए 2015 में एक समझौता हुआ था, जिसके तहत ही भारत ने इस सड़क का निर्माण किया है। नेपाल ने तब भी इसका विरोध करते हुए कहा था कि दोनों देशों ने इसके लिए उसे भरोसे में नहीं लिया। चीन पहले ही साफ कर चुका है कि लिपुलेख से मानसरोवर के बीच सड़क भारत के साथ व्यापार और पर्यटन के लिए है, जबकि भारत ने भी कहा है कि इससे न केवल कैलाश मानसरोवर की तीर्थयात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं की यात्रा में आने वाली मुश्किलें कुछ हद तक कम हो सकेंगी, बल्कि उत्तराखंड में सीमावर्ती गांव भी इस सड़क मार्ग से पहली बार जुड़ेंगे।