हिंदू संत कहे जाने वाले मुरारी बापू की मानसिक बीमारी : हिंदू मुस्लिम एकता हेतु शास्त्रों में संशोधन होना चाहिए
आज के तथाकथित धर्माचार्य प्रमुख या धर्म के ठेकेदार मठाधीश बनकर समाज को गाय भैंस की भांति हांकने का कार्य कर रहे हैं । यह जनता जनार्दन द्वारा मिले सम्मान को अपनी बपौती मानकर देश का अहित करने से भी नहीं चूकते । यही कारण है कि मुरारी बापू जैसे ‘संत’ के बोल बिगड़ रहे हैं । उनकी मांग है कि हिंदू मुस्लिम एकता के लिए धर्म शास्त्रों में परिवर्तन किया जाना चाहिए । जिस वैदिक संस्कृति की रक्षा के लिए अनेकों धर्माचार्य प्रमुखों ने अलग-अलग समय पर कितने ही बड़े बड़े आंदोलन कर बलिदान दिए और जनता को प्रेरित कर देश धर्म की रक्षा करवाई , उसी देश की इस संत परंपरा में एक तथाकथित संत मुरारी बापू का नाम भी दुर्भाग्य से आ गया है । जो कहते है कि हिंदू मुस्लिम एकता के लिए धर्म शास्त्रों में परिवर्तन कर दो । इस तथाकथित संत से यह पूछा जाना चाहिए कि क्या ये कुरान की उन आयतों को भी बदलवा सकेंगे जो दूसरे मजहब के लोगों को काटने और उनकी बहन बेटियों के साथ बलात्कार करने की अनुमति देती हैं ? जितनी दानवता इन आयतों में छुपी हुई है क्या उनकी इस प्रकार की दानवता पर कुछ बोलने का साहस मुरारी बापू कर पाएंगे ? शायद नहीं और यदि नहीं तो फिर उनकी भारत के वैदिक धर्म ग्रंथों में परिवर्तन करने कराने की मूर्खतापूर्ण सोच कैसे बनी ?
यदि इस प्रश्न पर विचार किया जाए तो सच्चाई यह है कि इस देश में ऐसे बापू पहले भी हो गए हैं जो इसी प्रकार की मूर्खतापूर्ण बातें करते कराते रहे हैं । एक बापू और भी थे जिन्हें यह देश राष्ट्रपिता के नाम से जानता है । उनके बारे में उन्हीं के सचिव महादेव देसाई ने अपनी डायरी में लिखा है – ” आज सवेरे हम लोग एक मुसलमान नेता के बारे में ( दिनांक 30 मार्च 1932 ) बातचीत कर रहे थे । वल्लभ भाई पटेल ने कहा संकट की घड़ी में उन्होंने भी संकुचित सांप्रदायिक दृष्टिकोण अपनाया था और मुसलमानों के लिए पृथक कोष और पृथक अपील की बात कही थी । ”
इस पर बापू ने कहा – ” इसमें उनकी कोई गलती नहीं है । मुसलमानों को हम कौन सी सुविधाएं देते हैं ? अक्सर उनके साथ अस्पृश्यों जैसा व्यवहार होता है ।”
बल्लभ भाई पटेल ने कहा – ” और मुसलमानों के तौर तरीके और रीति-रिवाज अलग हैं । वह मांस खाते हैं जबकि हम शाकाहारी हैं । हम उनके साथ एक जगह कैसे रह सकते हैं ? ”
बापू ने कहा – ” नहीं जनाब ! गुजरात के अलावा और कहीं भी सारे हिंदु शाकाहारी नहीं है।”
बात स्पष्ट है कि जैसे उस बापू को यह जिद थी कि मुसलमान चाहे जैसा भी है , उसके साथ तालमेल बनाओ और इस शर्त पर तालमेल बनाओ कि वह अपनी गलत हरकतों को न छोड़ेगा और ना सुधार करेगा । उसकी यह गलत हरकतें चाहे देश तोड़ने तक ही क्यों न जाती हों , पर फिर भी मेरी बात को मानो और उनके साथ तालमेल बनाओ ।
ऐसी ही जिद आज के इस बापू की लगती है कि चाहे मुसलमान टुकड़े-टुकड़े गैंग का समर्थन करता हो , चाहे देश को तोड़ने की गतिविधियों में संलिप्त हो और चाहे जो कुछ कर रहा हो , पर उसके साथ तालमेल करो । इसके लिए यदि अपने धर्म ग्रंथों में परिवर्तन भी करना पड़े तो वह भी करो । सचमुच हम एक से बढ़कर एक मूर्ख बापू के चक्कर में पड़ते चले जा रहे हैं।
यरवदा जेल में गांधीजी के साथ रहते हुए एक दिन सरदार पटेल ने उनसे पूछा था – ” कोई ऐसे मुसलमान भी हैं जो आपकी बात सुनते हैं ?”
तब गांधी जी ने उत्तर दिया था – ” इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मेरी बात सुनने वाला एक भी मुसलमान नहीं है।”
यदि आप सरदार पटेल वाली इसी बात को आज के बापू से भी पूछेंगे तो निश्चित रूप से उसका उत्तर भी यही होगा , जो उस समय के बापू ने सरदार पटेल को दिया था । तब इन बापुओं का इलाज क्या है ? इलाज केवल एक है कि हिंदू समाज इन जैसे तथाकथित बापू और संतों को सम्मान देना छोड़े ।
इन्हें इनकी औकात बताए और इनसे सीधे-सीधे शब्दों में कह दिया जाए कि जाओ ! जिनकी वकालत करते हो उन्हें इंसान बनाओ , देशभक्त बनाओ और जब ये दोनों चीजें उनके भीतर आ जाएं तब हमारे पास आना , हम आपकी बात सुनेंगे।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत