मोदी सरकार द्वारा विकसित किए गए डिजिटल प्लेटफ़ार्म से ग़रीबों को हुआ कितना फ़ायदा ?
पूरे विश्व में फैली कोरोना वायरस महामारी से होने वाले गम्भीर परिणामों का आँकलन केन्द्र में मोदी सरकार द्वारा सही समय पर ही कर लिया गया था एवं इसीलिए भारत में विशेष रूप से ग़रीब वर्ग को राहत देने के उद्देश्य से वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने 26 मार्च को 1.7 लाख करोड़ रूपये का एक आर्थिक पैकेज प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत देने की घोषणा की थी. इस योजना के अन्तर्गत बुजुर्ग, गरीब विधवा और गरीब दिव्यांगों को आगामी 3 महीनों तक एक हजार रूपये की राशि सहायता के रूप में देने का निर्णय लिया गया था। बीस करोड़ महिला जनधन खाताधारकों के खातों में अगले तीन महीनों तक हर महीने 500 रूपये जमा किये जाने का निर्णय लिया गया था। पीएम किसान सम्मान निधि के तहत 2 हजार रूपये की किस्त की राशि 8.7 करोड़ किसानों के खाते में अप्रैल 2020 के पहले सप्ताह में ही अंतरित कर दी गई थी। साथ ही, लगभग 80 करोड़ गरीब नागरिकों को अगले तीन महीनों तक 5 किलो गेहूं या चावल और एक किलो दाल मुफ्त उपलब्ध कराए जाने की घोषणा की गई थी। इसी प्रकार, उज्ज्वला योजना के अन्तर्गत लाभार्थी महिलाओं को अगले तीन महीनों तक मुफ्त में गैस सिलेंडर देने की घोषणा भी की गई थी। मनरेगा के तहत दी जा रही मजदूरी को 182 रूपये से बढाकर 202 रूपये प्रतिदिन कर दिया गया था, ताकि मजदूरों को आर्थिक परेशानी का सामना नहीं करना पड़े.
भारत एक विशाल देश है, जिसकी आबादी 130 करोड़ से भी अधिक है। कोरोना वायरस महामारी के चलते देश में 80 करोड़ लोगों को सहायता की राशि पहुँचाना कोई आसान कार्य नहीं था। परंतु, इसे एक बहुत बढ़ी हद्द तक आसान बना दिया गया, श्री मोदी सरकार द्वारा ही अत्यंत सफलता पूर्वक लागू की गई जनधन, आधार एवं मोबाइल (JAM) योजना के प्रभावी रूप से किए गए उपयोग से। हाल ही के समय में JAM योजना के साथ ही डिजिटल भुगतान एवं प्रत्यक्ष सहायता अंतरण (DBT) योजना का उपयोग भी बहुत बढ़ा है। देश में करोड़ो लोगों के लिए JAM, DBT और डिजिटल भुगतान की सहूलियतें उनकी ज़िन्दगी को अब आसान बना रही हैं.
माननीया वित्त मंत्री द्वारा की गई उक्त घोषणा के बाद केवल 10 दिनों में ही 40 करोड़ लोगों को 28000 करोड़ रुपए की राशि का भुगतान कर दिया गया था। यह DBT के कारण ही सम्भव हो पाया है। यह जो प्लेटफ़ार्म, केंद्र में श्री मोदी सरकार द्वारा पिछले 6 वर्षों के दौरान खड़ा कर लिया गया है वह अब काम आ रहा है। कोरोना वायरस की महामारी के दौरान देश में लोग नक़द का उपयोग बहुत कम कर रहे हैं, क्योंकि नोटों को हाथ लगाने से भी कोरोना वायरस बीमारी फैलने का ख़तरा हो सकता है। अतः डिजिटल प्लेटफ़ार्म बहुत ज़्यादा और सही तरीक़े से उपयोग हो रहा है। अब तो कई ऐप भी उपलब्ध हो गए हैं जिनका उपयोग करके पैसा सीधे ही एक खाते से दूसरे खाते में आसानी से हस्तांतरित किया जा सकता है। देश में नागरिकों को इनका अधिक से अधिक उपयोग करना चाहिए।
देश में आज 400 योजनाओं के अंतर्गत केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा प्रदान की जाने वाली सहायता राशि को DBT के तहत सीधे ही लाभार्थियों के खातों में जमा किया जा रहा है। वृद्धजनों को पेंशन की राशि, किसानों को उर्वरक सब्सिडी आदि योजनाओं के अंतर्गत दी जाने वाली सहायता की राशि करोड़ों हितग्राहियों के बैंक खातों में सीधे ही जमा की जा रही है। जिससे, इन लाभार्थियों से कोई भी बिचोलिया किसी भी प्रकार की वसूली नहीं कर पाता है एवं ग़रीब तबके को उनके पूरे हक़ की राशि का भुगतान सीधे ही उनके बैंक खातों के माध्यम से मिलने लगा है। DBT का दायरा अभी कुछ और क्षेत्रों में भी बढ़ाया जाना चाहिए ताकि देश में मुद्रा के प्रचलन को कम से कम किया जा सके है। इसके लिए डेबिट कार्ड एवं क्रेडिट कार्ड के उपयोग को भी बढ़ावा देना आवश्यक होगा। उपभोक्ता को यदि कुछ प्रोत्साहन राशि देने की आवश्यता हो तो इसे भी प्रदान किया जाना चाहिए। विशेष रूप से ग्रामीण इलाक़ों में डेबिट कार्ड एवं क्रेडिट कार्ड के उपयोग को बढ़ाया जाना आवश्यक है। ग्रामीण इलाक़ों में उपभोक्ता को आकर्षित करने के उद्देश्य से डेबिट एवं क्रेडिट कार्ड के माध्यम से की गई ख़रीदी पर प्रोत्साहन राशि प्रदान की जा सकती है। जैसे, यदि कोई उत्पाद नक़द मुद्रा में भुगतान कर ख़रीदा जाता है तो वह तुलनात्मक रूप से महँगा होना चाहिए एवं यदि वही उत्पाद यदि डेबिट एवं क्रेडिट कार्ड के माध्यम से ख़रीदा जाता है तो उस पर 2 अथवा 3 प्रतिशत का डिस्काउंट दिया जाना चाहिए। जिससे वह उत्पाद ग्रामीण इलाक़ों में उपभोक्ताओं को तुलनात्मक रूप से सस्ता मिलने लगेगा और इस प्रकार नक़द मुद्रा के चलन को कम किया जा सकेगा।
ग्रामीण इलाक़ों में नेटवर्क की उपलब्धता भी एक मुद्दा है जिसे हल किया जाना अति आवश्यक है। ग्रामीण इलाक़ों में नेटवर्क के उपलब्ध नहीं होने के कारण भी वहाँ के निवासी डेबिट एवं क्रेडिट कार्ड का उपयोग नहीं कर पाते हैं। यदि नेटवर्क की उपलब्धता लगातार बनाए रखी जा सके तो ग्रामीण इलाक़ों में भी लोग डिजिटल प्लेटफ़ार्म पर आगे आएँगें। इस हेतु बुनियादी आधारिक संरचना को ग्रामीण इलाक़ों में भी बढ़ाना होगा और वहाँ टेलिकॉम आधारिक संरचना की उपलब्धता भी बढ़ानी होगी। परंतु, अभी टेलिकॉम क्षेत्र वित्तीय दबाव में है। दरअसल पिछले कई वर्षों से यह क्षेत्र सही दिशा निर्देशों का पालन करते हुए नहीं चल रहा था जिसके कारण इस क्षेत्र में कुछ वित्तीय समस्याएँ उत्पन्न हुईं हैं। ग्रामीण इलाक़ों में टावर्ज़ की संख्या भी बढ़ानी होगी ताकि इन इलाक़ों में भी नेटवर्क की लगातार उपलब्धता को बनाए रखा जा सके। तभी, ग्रामीण इलाक़ों में भी लोग डिजिटल प्लेटफ़ार्म पर स्थानांतरित किए जा सकेंगे। गावों और शहरों में लोग नक़द राशि का अधिक इस्तेमाल इसलिए करते हैं क्योंके उन्हें इसमें सुविधा महसूस होती है। यदि इसी तरह की आसानी उन्हें डिजिटल प्लेटफ़ार्म पर लेनदेन करते समय महसूस होगी तब ग्रामीण इलाक़ों में भी लोग इस प्लेटफ़ार्म पर आगे आएँगें।
दूसरे, डिजिटल भुगतान के लेनदेन की लागत अभी सबंधित विक्रेता कम्पनियों/दुकानदारों को वहन करना पड़ रही है। जिसके कारण वे डिजिटल भुगतान को प्रोत्साहित नहीं करते हैं। कुछ ऐसा रास्ता निकालना अब आवश्यक हो गया है ताकि समस्त दुकानदार एवं विक्रेता कम्पनियाँ भी डिजिटल भुगतान को प्रोत्साहित करने लगें। एक तरीक़ा तो यह हो सकता है कि डिजिटल भुगतान के लेनदेन की लागत विक्रेता कम्पनियाँ वहन न करें अथवा विक्रेता कम्पनियों/दुकानदारों को डिजिटल भुगतान के माध्यम से की गई बिक्री की राशि पर करों में कुछ छूट प्रदान की जाय। इससे ये विक्रेता दुकानदार/कम्पनियाँ डिजिटल भुगतान को प्रोत्साहित करना प्रारम्भ कर देंगी।
देश की अधिकतम जनसंख्या को डिजिटल प्लेटफ़ार्म पर स्थानांतरित किए जाने की आज सबसे अधिक आवश्यकता है। अतः उपरोक्त सभी मुद्दों को शीघ्र ही सुलझाया जाना चाहिए।
लेखक भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवर्त उप-महाप्रबंधक हैं।