भविष्य बताना पाखंड मात्र है
ज्योतिष के नाम पर विभिन्न प्रकार के प्रपंच समाज में देखने को मिलते हैं। प्राचीन काल में गणित ज्योतिष (Astronomy) का प्रचार था जिसका सम्बन्ध विभिन्न ग्रहों के परिभ्रमण, मौसम आदि में परिवर्तन, सूर्य-चन्द्रमा आदि के उदय-अस्त से सम्बंधित था। यह पूर्ण रूप से वैज्ञानिक एवं युक्तिसंगत था।
कालांतर में फलित ज्योतिष प्रसिद्ध हो गया। फलित ज्योतिष का सिद्धांत ग्रह चक्रों आदि द्वारा व्यक्ति के भाग्य पर पड़ना एवं उसके नकारात्मक प्रभाव से बचाव के लिए कर्म कांड, अनुष्ठान आदि को प्रधानता देना था। इस सिद्धांत के चलते लोग धर्म भीरु हो गए एवं वेद विदित कर्म फल सिद्धांत को भूलकर अपने साथ हो रही किसी भी अप्रिय घटना का श्रेय गृहदशा को देने लग गए। उसके पश्चात इस कुपित दशा के निराकरण के लिए नए नए विधानो का सहारा लिया जाने लगा जिसकी परिणीति अन्धविश्वास के रूप में होती हैं।
एक प्राचीन घटना यहाँ पर देनी उपयोगी रहेगी। एक राजा ने ज्योतिषी के कहने पर अपने बाग़ में एक पौधा लगवाया। ज्योतिषी का कहना था की जब तक यह पौधा हराभरा रहेगा तब तक आपका राज्य उन्नति करेगा। सयोग से उस पौधे की देखभाल कर रहा माली अपने गांव चला गया और अपने परिचित एक युवक को बाग़ की देखभाल के लिए छोड़ गया। उस पौधे को कुछ टेढ़ा लगा देखकर उस युवक ने उसका स्थान परिवर्तन कर दिया जिससे वह पौधा सुख गया। राजा को जैसे ही का मालूम चला उन्होंने उस युवक को प्राणदंड की आज्ञा दे दी। युवक इच्छा पूछी गई तो उसने उस ज्योतिषी को बुलाने किया। उस ज्योतिषी से उस युवक ने पूछा आप इतने बड़े राज्य के भविष्य को जानने की योग्यता रखते हैं परन्तु आपकी विद्या यह क्यों नहीं बता सकी कि आपकी भविष्यवाणी कारण बेचारा गरीब फांसी को प्राप्त होगा। ज्योतिषी निरुत्तर होकर वापिस आ गया।
ऐसी ही एक और घटना काँगड़ा के प्रसिद्द धनी ठाकुर के गृह की हैं। उनके घर पर वर्षों के पश्चात एक बालक का जन्म हुआ। उस बालक की कुंडली बनाई गई। ज्योतिषी के कुंडली देखकर कहा की बालक का मुख देखने से गृहस्वामी को मृत्यु का योग हैं। सभी चिंताग्रस्त हो गए। आखिर में बालक को माता पिता से अलग कर घर के गवाले को सौप दिया गया। आठ वर्ष की आयु तक बालक अनपढ़ रहा एवं बकरियां चराना मात्र सीख सका। संयोग से लाहौर से एक आर्यसमाजी प्रचारक वहां पर आये। उन्हें जब इस विच्छेद का परिचय हुआ तो उन्होंने उस बालक को लाहौर ले जाकर शिक्षित करने की घरवालों से आज्ञा मांगी। भरे मन से बालक को बिना मुख देखे विदा कर दिया गया। अपनी शिक्षा पूर्ण कर वह बालक जिसे दुर्भाग्यशाली समझा गया था भारत के प्रथम न्यायाधीश जस्टिस मेहरचंद महाजन के नाम से प्रसिद्द हुआ। धन्य हैं उन प्रचारक का अन्यथा ज्योतिषी के चलते वह जीवन भर बकरियां ही चराते रहते।
वैसे आज भी दिये तले अँधेरे की कहावत देखने को मिलती हैं। दुसरो का भविष्य बताने वाले आशु भाई ज्योतिषाचार्य के यहाँ से 50 लाख रूपए की चोरी हो गई। आप लोगों को किसी भी प्रकार की विपत्ति अथवा कठिनाई न आये अथवा कोई कठिनाई आ जाये तो उससे निपटने का समाधान बताते हैं। आप जाने क्यों अपनी ज्योतिष विद्या से अपने ऊपर आने वाली विपत्ति का पता न लगा सके और चोरों ढूंढने के लिए आपको पुलिस की सहायता लेनी पड़ी। जिन दो व्यक्तियों पर चोरी का अंदेशा था वे दोनों तीन वर्ष से आशु भाई के पास कर्मचारी के रूप में रह रहे थे। जब उनको आशु भाई ने नौकरी पर रखा तो उनकी जन्म पत्री देख कर आशु भाई यह क्यूँ नहीं जान पाए की यह भविष्य में उन्हीं के यहाँ पर चोरी करेगे? इस प्रकार से अनेक उदहारण हमें देखने को मिलते हैं जहाँ पर ज्योतिषी अपनी समस्याओं का स्वयं समाधान नहीं निकाल पाते और अन्य लोगों की समस्यायों का समाधान करने का भारी भरकम दावा करते हैं।
आखिर क्यों भारत का एक भी ज्योतिषी यह नहीं बता पाया की उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदा में हज़ारों निर्दोष लोगों को अपने प्राण गवाने पड़ेंगे? आखिर क्यों एक भी ज्योतिषी ट्रैन आदि की टक्कर के विषय में कभी नहीं बता पाता जिससे लोगों की प्राण रक्षा हो सके। तलाक, गृह कलेश, मारपीट, आपसी मतभेद, नशे आदि की लत उन वैवाहिक संबंधों में भी सामान्य रूप से देखने को क्यों मिलती हैं जिनके माता-पिता स्वयं ज्योतिषी होते हैं और कुंडलियों के पूर्ण मिलान के पश्चात ही वे विवाह करते और कराते हैं। ज्योतिष विद्या पाखंड मात्र हैं। निर्धन व्यक्ति परिश्रम करने के स्थान पर शॉर्टकट से धनी बनने के चक्कर में इस पाखंड का शिकार बनता हैं जबकि धनी व्यक्ति उसका धन कहीं चला न जाये इस भ्रम से फलित ज्योतिष का सहारा लेता हैं।
डॉ विवेक आर्य
विषय व प्रस्तुतिकरण अच्छे लगे।