जारी है भारत में वैदिक संस्कृति को मिटाने का घातक षड्यंत्र
भारत में आज भी वैदिक संस्कृति को मिटाने का घातक षड्यंत्र जारी है । इसके लिए यदि हम सोशल मीडिया को देखें तो उस पर एक गैंग है जो लगा हुआ है , भारत की संस्कृति के खिलाफ दुष्प्रचार करने में । मेरे पास एक अधिकारी की ऐसी पोस्ट अक्सर आती रहती हैं । जिन्हें देखकर लगता है कि भारत को मिटाने का षड्यंत्र किस स्थिति में जा चुका है ? यह अधिकारी यादव समाज से होकर भी वेद और वैदिक संस्कृति के बारे में बहुत अधिक जहर से भरे हुए हैं ? जाहिर है कि नौकरी में रहते हुए भी इस व्यक्ति ने इसी प्रकार के दुराग्रह से लोगों के साथ न्याय किया होगा । — सह संपादक
1. ऋग्वेद में श्लोक 10 में लिखा है कि हम (वैदिक ब्राह्मण ) उत्तर ध्रुव से आये हुए लोग है। जब आर्य व् अनार्यो का युद्ध हुआ ।
2. The Arctic Home At The Vedas बालगंगाधर तिलक (ब्राह्मण) के द्वारा लिखी पुस्तक में मानते है कि हम बाहर आए हुए लोग है ।
3. जवाहर लाल नेहरु ने (बाबर के वंशज फिर कश्मीरी पंडित बने) उनकी किताब Discovery of India में लिखा है कि हम मध्य एशिया से आये हुए लोग है। यह बात कभी भूलना नही चाहिए। ऐसे 30 पत्र इंदिरा जी को लिखे जब वो होस्टल में पढ़ रही थी।
4. वोल्गा टू गंगा में “राहुल सांस्कृतयान” (केदारनाथ के पाण्डेय ब्राहम्ण) ने लिखा है कि हम बाहर से आये हुए लोग है और यह भी बताया की वोल्गा से गंगा तट (भारत) कैसे आए।
5. विनायक सावरकर ने (ब्राम्हण) सहा सोनरी पाने “इस मराठी किताब में लिखा की हम भारत के बाहर से आये लोग है।
6. इक़बाल “काश्मीरी पंडित ” ने भी जिसने “सारे जहा से अच्छा” गीत लिखा था कि हम बाहर से आए हुए लोग है।
7. राजा राम मोहन राय ने इग्लेंड में जाकर अपने भाषणों में बोला था कि आज मै मेरी पितृ भूमि यानि अपने घर वापस आया हूँ।
8. मोहन दास करम चन्द गांधी (वेश्य) ने 1894 में दक्षिणी अफ्रीका के विधान सभा में लिखे एक पत्र के अनुसार हम भारतीय होने के साथ साथ युरोशियन है हमारी नस्ल एक ही है इसलिए अग्रेज शासक से अच्छे बर्ताव की अपेक्षा रखते है।
9. ब्रह्म समाज के नेता सुब चन्द्र सेन ने 1877 में कलकत्ता की एक सभा में कहा था कि अंग्रेजो के आने से हम सदियों से बिछड़े चचेरे भाइयों का (आर्य ब्रह्मण और अंग्रेज ) पुनर्मिलन हुआ है।
इस सन्दर्भ में अमेरिका के Salt lake City स्थित युताहा विश्वविधालय (University of Utaha’ USA) के मानव वंश विभाग के वैज्ञानिक माइकल बमशाद और आंध्र प्रदेश के विश्व विद्यापीठ विशाखा पट्टनम के Anthropology विभाग के वैज्ञानिकों द्वारा सयुक्त तरीको से 1995 से 2001 तक लगातार 6 साल तक भारत के विविध जाति-धर्मो और विदेशी देश के लोगो के खून पर किये गये DNA के परिक्षण से एक रिपोर्ट तैयार की। जिसमें बता गया कि भारत देश की ब्राह्मण जाति के लोगों का DNA 99:96 %, कश्त्रिय जाति के लोगों का DNA 99.88% और वेश्य-बनिया जाति के लोगो का DNA 99:86% मध्य यूरेशिया के पास जो “काला सागर ’Blac Sea” है। वहां के लोगो से मिलता है। इस रिपोर्ट से यह निष्कर्ष निकालता है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य-बनिया विदेशी लोग है और एस सी, एस टी और ओबीसी में बंटे लोग (कुल 6743 जातियां) और भारत के धर्म परिवर्तित मुसलमान, सिख, बुध, ईसाई आदि धर्मों के लोगों का DNA आपस में मिलता है। जिससे साबित होता है कि एस सी, एस टी, ओबीसी और धर्म परिवर्तित लोग भारत के मूलनिवासी है। इससे यह भी पता चलता है कि एस सी, एस टी, ओबीसी और धर्मपरिवर्तित लोग एक ही वंश के लोग है। एस सी, एस टी, ओबीसी और धर्म परिवर्तित लोगों को आपस में जाति के आधार पर बाँट कर ब्राह्मणों ने सभी मूलनिवासियों पर झूटी धार्मिक गुलामी थोप रखी है। 1900 के शुरुआत से आर्य समाज ब्राह्मण जैसे संगठन बनाने वाले इन लोगो ने 1925 से हिन्दु नामक चोला पहनाकर घुमाते आ रहे है। उक्त बात का विचार हमे बहुत ही गहनता से करने की आवश्यकता है। राष्ट्रिय स्वयं सेवकसंघ के जरिये 3% ब्राह्मण 97% मूलनिवासी भारतीयों पर पिछ्ले कई सालों से राज करते आ रहे हैं।