हवन को लेकर डॉ वेद प्रताप वैदिक जी पर हमला
डॉ. मुमुक्षु आर्य, नोएडा
अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और प्रसिद्ध पत्रकार डॉ. वेदप्रताप वैदिक के एक वीडियो ने इधर भारी उथल—पुथल मचा रखी है। उस वीडियो में उन्होंने कहा है कि भेषज—होम और काढ़ा, कोरोना से लोगों का बचाव करेगा। हवन तो सभी को, विदेशियों, हिंदू, मुसलमानों, बौद्धों, जैनियों वगैरह को भी करना चाहिए। आहुति देते समय वेदमंत्र जरुर पढ़ें लेकिन न पढ़ सकें तो सब अपने—अपने धर्मग्रंथों के वचन भी पढ़ सकते हैं।
डॉ. वैदिक जी की इस बात का बतंगड़ बनाया जा रहा है। पूर्ण वैदिक रीति से यज्ञ करने के पश्चात अन्य मत वालों को हवन के लिए प्रेरित करने के लिए वैदिक जी ने इस प्रकार के दो शब्द कह दिए तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा ? बड़ी चालाकी से पूरा वीडियो न दिखा कर आखिर का दो सैंकिड का वीडियो दिखाया जा रहा है। यज्ञ वेदमंत्रों से करना चाहिए, परन्तु यदि कोई मुसलमान ईसाई कहे कि वह हवन तो करना चाहता है परन्तु वेदमंत्र नहीं बोल पाता या नहीं बोलना चाहता तो क्या हवन करने से उसे आप मना कर दोगे ? यदि तुम अपने माता-पिता वा गुरु का नाम लेकर यज्ञ करते हो तो क्या वह हवन वातावरण को शुद्ध नहीं करेगा ? जो यज्ञ करना शुरू करेगा वह किसी न किसी दिन वेदमंत्र भी बोलना शुरु कर देगा । वैदिक जी ने स्वामी रामदेव और सतपाल सिंह की तरह शिवलिंग की पूजा तो नहीं की। उनकी निन्दा करते समय आप लोगों के मुंह में दही क्यों जम जाती है ? हिन्दू लोग रामायण की चौपाइयों से यज्ञ करते देखे गए हैं, तान्त्रिक हीं, श्रीं, क्लीं चुण्डाय मुण्डाय नमः: बोल कर आहुतियां देते हैं ! उनके खण्डन में वीडियो बना कर आप क्यों नहीं डालते ? वैदिक जी आर्य समाज के उच्च कोटि के विद्वान, लेखक व जाने माने पत्रकार हैं। वह आर्यसमाज के सिद्धान्तों की अच्छी समझ रखते हैं। अनेक इस्लामी, ईसाई और बौद्ध देशों के बड़े—बड़े नेता उनकी प्रेरणा से शाकाहारी हो गए हैं। वैदिक जी ने संपूर्ण यजुर्वेद का सस्वर—पाठ किया है। वे सातवलेकरजी की संस्कृत परीक्षाओं में सारे भारत में सर्वप्रथम रहे हैं। उनकी स्व. पत्नी डॉ. वेदवती वैदिक संस्कृत की प्रोफेसर रहीं हैं। वे उपनिषदों की विश्व—विख्यात विदुषी मानी जाती हैं। कुछ राजनीतिक कारणों और अपनी सतही समझ के चलते वैदिक जी के अभिप्राय को लोग समझ नहीं पा रहे या समझना नहीं चाहते।
महर्षि दयानंदजी के शब्दों में ”बहुत से हठी, दुराग्रही मनुष्य होते हैं कि जो वक्ता के अभिप्राय से विरुद्ध कल्पना किया करते हैं, विशेष कर मत वाले लोग। क्योंकि मत के आग्रह से उनकी बुद्धि अन्धकार में फँस के नष्ट हो जाती है। इसलिए जैसा मैं पुराण, जैनियों के ग्रन्थ, बायबिल और कुरान को प्रथम ही बुरी दृष्टि से न देखकर उन में से गुणों का ग्रहण और दोषों का त्याग तथा अन्य मनुष्य जाति की उन्नति के लिए प्रयत्न करता हूं, वैसा सबको करना योग्य है।” (महर्षि दयानंद, सत्यार्थ प्रकाश, भूमिका)
डॉ. वैदिक ऐसे पहले आर्यसमाजी विद्वान हैं, जिन्होंने कोरोना की खबर आते ही हवन की महिमा का बखान किया। उन्होंने अपने तीन—चार लेखों में भेषज—होम का सविस्तार वर्णन किया। उनके लेख देश और विदेशों के लगभग 200 अखबारों और दर्जनों वेबसाइटों पर रोज प्रकट होते हैं, जिन्हें 50 लाख से डेढ़ करोड़ तक लोग रोज़ पढ़ते हैं। उन्होंने भेषज—होम के बारे में स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन और आयुष मंत्री श्रीपद नाइक को प्रेरित किया कि वे अपने मंत्रालयों से इसका प्रचार करवाएं। वैदिक जी के लेख आप ध्यान से पढ़ें तो उन्होंने बार—बार लिखा है कि हवन और काढ़ा, ये दोनों उपाय कोरोना को मात करने में उपयोगी हैं। ये मनुष्य मात्र के लिए लाभदायक हैं। कोई किसी भी मजहब और किसी भी देश का आदमी हो, वह हवन और काढ़े का लाभ ले सकता है। डॉ. वैदिक जी ने बताया कि उनके द्वारा किए जाने वाले हवनों में 50 साल पहले काबुल, मास्को, लंदन और न्यूयार्क में सभी मजहबों और सभी देशों के लोग खुशी—खुशी भाग लेते रहते थे।
इस पर मैंने डॉक्टर वैदिक जी से पूछा कि विदेशी लोग, नीग्रो, चीनी, जापानी, ईसाई और मुसलमान हवन कैसे करेंगे ? वे वेद के मंत्र क्यों पढ़ेंगे और कैसे पढ़ेंगे ? वैदिक जी ने कहा कि अपने पौराणिक हिंदू और तांत्रिक लोग क्या हमेशा वेदमंत्र पढ़कर आहुति देते हैं ? वे अपने इष्ट पुरुषों के नाम भर लेते हैं। सब लोग वेदमंत्रों से हवन करें तो यह सर्वश्रेष्ठ होगा लेकिन कोरोना जैसे आपात्काल में अपनी प्रतिरोध—शक्ति बढ़ाने और वायुमंडल को प्रदूषण मुक्त करने के लिए हर मनुष्य को, जैसे भी हो, हवन अवश्य करना चाहिए। सत्यार्थप्रकाश के तीसरे समुल्लास में स्वयं महर्षि दयानंद ने हवन का मुख्य प्रयोजन वायु—शुद्धि को बताया है। आहुति देते समय यदि आप अपने इष्ट देवताओं को याद करते हैं और किसी भी भाषा में याद करते हैं तो इस मजबूरी को स्वीकार करने में कोई बुराई नहीं है। यदि वे लोग ”अल्लाहाय स्वाहा” कहेंगे तो वे देवभाषा संस्कृत बोलेंगे और अरबी भाषा में ईश्वर को ही अल्लाह कहेंगे। इसमें गलत क्या है ? महर्षि के सत्यार्थप्रकाश का उर्दू और अंग्रेजी में अनुवाद हुआ तो क्या वह पढ़ने लायक नहीं रहा ? जो लोग विदेशियों और विधर्मियों से मंत्रपाठ का दुराग्रह कर रहे हैं, क्या वे उन मंत्रों के अर्थ भी हमें बता सकते हैं ? क्या वे उन मंत्रों का शुद्ध सस्वर—पाठ भी कर सकते हैं ?
वास्तव में डॉ. वैदिक जी ने हवन के नए मार्ग को खोल कर दयानंद के विचार को विश्व—व्यापी रुप दे दिया है। उनके इस मौलिक अवदान के लिए आर्यसमाजियों को उनका आभारी होना चाहिए, क्योंकि स्वयं महर्षि दयानंद ने आर्यसमाज के छठे नियम में कहा है, ”संसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य उद्देश्य है।” इस समाज का उद्देश्य “आर्यसमाज के मुट्ठीभर ठेकेदारों” का उपकार करना नहीं है। डॉ. वैदिक की निंदा करने वालों के बारे में उनका भाव बहुत मैत्रीपूर्ण है। उनका कहना है कि ये लोग मेरे अपने हैं, अत्यंत प्रिय हैं लेकिन उनकी अनुभव की दुनिया जरा व्यापक और गहरी होती तो वे मेरे मंतव्य को ठीक से समझ पाते। उन्होंने कहा कि ‘मैं अपनों की आलोचना का आजकल भरपूर आनंद ले रहा हूं।”