नई दिल्ली। जीवन और जीविका शब्दों का ध्वन्यात्मक सुर जितना मधुर और लयात्मक है, इनके अंतर्संबंध उतने ही प्रगाढ़ हैं, पूरक हैं, परिपूर्ण हैं। नि:संदेह जीवन ब्रह्मांड की पहली प्राथमिकता है, लेकिन उस जीवन को सतत और टिकाऊ बनाने के लिए जीविका को दोयम दर्जा नहीं दिया जा सकता। जीवन जितना जरूरी है, जीविका उतनी ही अनिवार्य। कोरोना महामारी से जीवन को बचाने के लिए उठाए गए कठोर लॉकडाउन से जीविका अवरुद्ध होती सी दिखी तो जीवन अकुला उठा।
कोरोना से इतर जीवन को बचाने के लिए आजीविका के साधनों को संपन्न करने की साधना शुरू हुई। अब जब दुनिया इस बात पर एकमत हो चुकी है कि कोरोना वायरस के साथ ही हमें जीना होगा, तो कुछ देश क्रिकेट खेल
के उस बैट्समैन की भावभंगिमा में आ चुके हैं जो हालात की गंभीरता को देखते हुए फ्रंट फुट पर खेलने लगता है। उसे पता होता है कि रक्षात्मक खेल उसके जीवन के अभयदान की कतई शर्त नहीं है। आउट तो कभी न कभी खेल के इस तरीके में भी होना है।
ऐसे में अगर वह फ्रंट फुट पर शॉट खेलने की कोशिश करेगा तो इस बात की पूरी गुंजायश है कि वह मुश्किल से उबर सकता है। शॉट लगा तो बाउंड्री पार अन्यथा क्लीन बोल्ड। इसी मानसिकता के साथ दुनिया के कई देशों के साथ भारत भी कोरोना से दो-दो हाथ करने के मूड में आ चुका है। जीवन को सुरक्षित रखने के तमाम एहतियाती कदमों को उठाते हुए अब वह लोगों की जीविका सुनिश्चित करने के लिए फ्रंट फुट पर आ चुका है।
मैकेंजी ने किया अध्ययन
कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन पर जानी मानी कंपनी मैकेंजी ने एक अध्ययन के आधार पर इसके असर को दिखाया है। इस लॉकडाउन ने अर्थव्यवस्था के किस क्षेत्र को कितनी चोट पहुंचाई।
कौन कितना जरूरी
जीवन और जीविका में कौन कितना जरूरी है, इसको लेकर मैकेंजी ने आक्सफोर्ड इकोनामिक्स के साथ एक अध्ययन किया। अध्ययन में बताया गया है कि कोरोना वायरस से चलते जीवन और जीविका को पहुंचने वाली चोट सदी की सबसे बड़ी है। यूरोप और अमेरिका में कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन और अन्य उपायों से हुआ तिमाही नुकसान 1933 के बाद सर्वाधिक है। लिहाजा आधुनिक काल में यह सुझाव देना कि लोग काम न करें और पूरा देश घर के अंदर बंद रहे, यह कतई जायज नहीं होगा। यह सिर्फ जीडीपी या किसी अर्थव्यवस्था की बात नहीं है, यह हमारे जीवन और आजीविका के बारे में हैं।
वायरस को खत्म करने में अपार ऊर्जा लगी हुई है। साथ ही अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिए सरकारी निजी स्तर पर व्यापक ऊर्जा लगाई जा रही है। ऐसे में हमारी आजीविका को स्थायी नुकसान से बचाने के लिए बीच के रास्ते की जरूरत है। जिसमें हम वायरस के खात्मे का जतन भी करें और लोगों के भरण-पोषण को भी सुनिश्चित किया जा सके। और ये दोनों हमें साथ-साथ करना ही होगा।
20 लाख करोड़ की मदद
इस क्रम में अर्थव्यवस्था और देश में कारोबारी गतिविधियों का चक्का तेज करने के लिए अब तक केंद्र सरकार 20 लाख करोड़ की मदद झोंक चुकी है। अब बारी हमारी है। अपने जीवन को सुरक्षित रखते हुए अपनी जीविका को टिकाऊ रखने की। कोरोना से स्वस्थ होने की दर भारत में दुनिया की सर्वाधिक है। सबसे युवा और क्रियाशील आबादी होने का साथ सिद्धहस्त होना अन्य देशों पर हमारी बढ़त का प्रतीक है।
आपदा को अवसर बनाते हुए अर्थव्यवस्था के चक्का जाम में सरकार ने वित्तीय मदद का तेल डाल दिया है। ऐसे में तमाम वर्गों को मिली रियायतों-सहूलियतों के संबल के साथ जीवन के साथ जीविका को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।
आर्थिक असर
आज राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन के 54 दिन पूरे हो रहे हैं। भले ही चरणबद्ध तरीके से हर लॉकडाउन में जनजीवन को सामान्य करने के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हों, लेकिन समग्र रूप से अर्थव्यवस्था पर कोरोना का असर बहुत नकारात्मक रहा है। इससे लाखों लोगों के रोजगार पर संकट तो करोड़ों लोगों की जीविका
संकट में आई। सरकार ने जीडीपी के दस फीसद यानी करीब 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज से देश के सभी स्तरों के लोगों की आजीविका सुनिश्चित करने का जतन किया है।