राजनीति में पार्टी प्रवक्ता का किसी भी दल मे महत्वपूर्ण स्थान है। प्रवक्ता समय-समय पर बयान देता है। विरोधियों द्वारा लगाये आरोपों का उत्तर देने के साथ ही अपने दल के हित में सदा कार्य करता है। किन्तु अब पहले की अपेक्षा राजनीति करने वालों का स्वभाव एक दम बदल चुका है। और शायद इसी कारण वे अनर्गल बयान देने में भी संकोच नही करते है। हॉ, यह बात और है कि कभी इनका बयान यदि अपने दल के विपरीत या विवादास्पद होता है, तो पार्टी उससे सीधे पल्ला झाडकर बयान को प्रवक्ता की निजी राय बताकर अपने को सुरक्षित कर लेती है। लेकिन वे दलों को अपना निशाना बनाते रहते हैं। वैसे तो अनेक दल व अनेकों प्रवक्ता हैं किन्तु विशेष रूप से मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री एवं कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह प्रवक्ता के रूप में कुछ अधिक सुर्खियों में हैं। वे हमेशा ही अन्ना हजारे अरविन्द केजरीवाल, भाजपा सहित वे सभी दल जो उनके सहयोगी नही है उन पर हमला बोलते रहते हैं। दिग्विजय सिंह संप्रग सरकार द्वारा किये गये सभी घोटालों पर जमकर बोल रहे हैं। वैसे तो अपने महान भारत में सुई से लेकर तोप तक और चीटीं से लेकर हाथी तक की खरीद फ रोख्त में घोटाला ही घोटाला है लेकिन कामनवेल्थ गेम्स, 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला के अतिरिक्त विकलांगो का बहुचर्चित सलमान खुर्शीद व लुइस का कारनामा एक दम ताजा है, किन्तु सबसे महत्वपूर्ण दामाद जी राबर्ट वाड्रा का मामला है दिग्विजय सिंह ने सभी मामलों के साथ-साथ दामाद जी के मामले में खूब पैर्रवी की है और अपनी क्षमता के अनुसार उनका बचाव करने का पुरजोर प्रयास किया। श्री सिंह राम देव, अन्ना हजारे पर जमकर बरस चुके हैं। अब विरोधस्वरूप सरकार के लिए सिरदर्द बने अरविन्द केजरीवाल एण्ड कम्पनी पर भी जम कर वाक प्रहार किये हैं। अब यह बात अलग है कि प्रवक्ता हो या कोई अन्य छोटा-बड़ा राजनेता या फि र कामनमैन ही क्यों न हो, उससे मीडिया द्वारा या किसी के द्वारा एक ही प्रश्न घुमा फि रा कर पूछा जाय तो सामने वाले का झल्ला जाना स्वाभाविक प्रक्रिया है। सलमान खुर्शीद का प्रेस कान्फ्रे न्स में झल्ला जाना और ”गटर स्लोक” शब्द प्रयोग करना फि र केजरीवाल को धमकी देना एक ज्वलंत प्रमाण है। इसी परिपेक्ष्य में माननीय दिग्विजय जी ने अटल-आडवाणी को भी निशाना बनाया है गौर तलब है कि पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी बाजपेई और भारतीय जनता पार्टी के पुरोधा भीष्म पितामह एक बेदाग नेता हैं। वे जनसंघ से लेकर आज तक सुर्खियों में तो हैं परन्तु अपने सुन्दर व साफ सुथरे व्यक्तित्व के कारण सर्वविदित है कि अटल जी ऐसे एकल सांसद हैं जो चार राज्यों उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली व गुजरात से विजयश्री प्राप्त प्राप्त करके देश के विकास में अग्रणी रहे हैं। विदेश मंत्री के रूप में मुसलमानों को बीजा उपलब्ध कराने से लेकर तथा प्रधानमंत्री पद पर रहते हुये हमारे धुर विरोधी पड़ोसी राज्य से सम्बन्ध सुधारे और आज तक बेदाग रहे हैं। यह सच है कि वे अब चुनाव नही लड़ रहे हैं। किन्तु चुनाव में अभी तक उनका पोस्टर लगाकर प्रत्याशी आर्शीवाद लेते रहे हैं। कवि व लेखक रहे अटल जी के विरूद्व कहीं कोई मामला नही है। तथा किसी ने उनके विरूद्व कोई कुछ नही बोला है। मैं यहॉ दिग्विजय सिंह का विरोध नही कर रहा हूं। दिग्विजय जी देश के सम्मानित एवं पुराने नेता हैं अब यदि उन्होंने अटल व आडवाणी के खिलाफ कुछ कहा है तो हो सकता है कि उनके पास कोई प्रमाण हो। अत: माननीय दिग्विजय जी को अविलम्ब इस बात को जो उनके जेहन में चल रही है सार्वजनिक कर देना चाहिए अन्यथा ” चिडिय़ा चुग गई खेत, फिर पछताए क्या होत’ वाली कहावत चरितार्थ हो जाएगी। क्योंकि नश्वर संसार है और हमारे अटल जी वानप्रस्थ कहना नही चाहिए किन्तु कह रहा हूं, कि अटल जी के बाद यदि यह मुदद उठा और गरमाया तो मात्र एक बेदाग छवि वाले नेता की फ जीहत होने के अतिरिक्त कुछ नही होगा, तथा उन पर लगे आरोपों का उत्तर देने वाला कोई नही होगा और इन दोनों नेताओं के परिजन जो पता नही दोषी हैं या निर्दोष जबरन कटघरे में खड़े किये जायेगें। क्योंकि ये तो निश्चित है कि जैसे तरकश से निकला तीर वापस नही आता वैसे ही मुख से निकाली गई वाणी के शब्द नही बदलते।
अत: दिग्विजय सिंह का यह कथन कि ”अनके पास साक्ष्य तो है परन्तु वे उसका इस्तेमाल नही करेंगे’ वे (दिग्विजय) अपनी बात पर कब तक अटल रहेंगे और अटल व आडवाणी के खिलाफ साक्ष्यों का प्रयोग नही करेंगें। क्योंकि चिंगारी निकली है तो आग तो लगेगी ही कारण कल को मीडिया सहित अन्य राजनीतिक दल इसको हवा देने से नही चूकेंगे। वैसे भी अभी भी 2014 के चुनाव के पहले किस-किस की कलई उतरनी बाकी है, इसे तो भविष्य ही तय करेगा। लेकिन दिग्विजय जी को इस बात पर गम्भीरता पूर्वक विचार करना चाहिए जिससे जनता जान सके उनकी बात में कितना दम है।
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