दुनिया की शक्ति कहे जाने वाले देश जिस प्रकार इस समय परस्पर भिड़ने की तैयारियों में लगे हुए हैं उससे लगता है कि दुनिया तीसरे विश्वयुद्ध की ओर तेजी से बढ़ रही है । अमेरिका और चीन तेजी से अपने साथियों को अपने साथ जोड़ने और तीसरे विश्व युद्ध के लिए शक्तियों का ध्रुवीकरण करने की प्रक्रिया में लग गये हैं । जिससे तीसरे विश्वयुद्ध के बादल गहराने लगे हैं । इस समय मानवता का दुर्भाग्य यह है कि कोई भी ऐसा सर्वमान्य नेता संसार में नहीं है जिसकी बात को मानने के लिए बड़े नेता स्वभाविक रूप से तैयार हों । अभी चीन ने कोरोना संकट खड़ा करके जिस प्रकार दुनिया को अपने आर्थिक शक्ति बनने का संदेश दिया है , उससे दुनिया की बड़ी ताकतों की रातों की नींद और दिन का चैन खत्म हो गया है । फलस्वरूप अधिकतर देश अमेरिका के साथ जाते हुए दिखाई दे रहे हैं । उधर अमेरिका के राष्ट्रपति को अपने यहाँ आने वाले राष्ट्रपति के चुनावों की चिंता है । वह अपनी लोकप्रियता तेजी से घटा रहे हैं । वह हर संभव कोशिश करेंगे कि उन्हें अमेरिका का राष्ट्रपति बनने के लिए एक मौका और मिले । जिसके लिए वह भी अमेरिका के तथाकथित स्वाभिमान के नाम पर भड़काने वाली गतिविधियों में लगे हैं । उधर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपने आपको जीवन भर के लिए राष्ट्रपति घोषित करा चुके हैं ।अब वह जैसे चाहे वैसे काम कर सकते हैं । उनसे उम्मीद की जाती है कि वह भी पीछे हटने का नाम नहीं लेंगे । ऐसे में दुनिया के शांतिप्रिय लोगों के लिए अस्तित्व संकट खड़ा होता जा रहा है ।
दुनिया अब से पहले 2 विश्व युद्ध झेल चुकी है । जिनका इतिहास हमें यह बताता है कि विश्व युद्ध के आरंभ होने के लिए तात्कालिक कोई कारण नहीं होता है बल्कि दुनिया के देशों के दिलों में देर से बसी हुई एक दूसरे के प्रति की नफरत अचानक किसी बात पर आकर फूट जाती है और विश्व भारी तबाही के मुहाने में चला जाता है । समस्या यह है कि उन दोनों युद्धों से संसार फिर भी बच गया , परंतु इस बार संसार जिस प्रकार बारूद के ढेर पर बैठा दिया गया है उससे लगता है कि इस बार के महायुद्ध में निश्चय ही मानवता के अस्तित्व का संकट खड़ा होने जा रहा है । आइंस्टीन से जब पूछा गया था कि क्या तीसरा विश्व युद्ध परमाणु बमों से लड़ा जाएगा , तो उन्होंने कहा था कि मुझे तीसरे विश्वयुद्ध की तो पता नहीं परंतु यदि चौथा महा युद्ध हुआ तो वह निश्चय ही ईंट पत्थरों से लड़ा जाएगा । कहने का अभिप्राय है कि तीसरे विश्व युद्ध में ही सब कुछ स्वाहा हो जाएगा तो चौथे महायुद्ध के लिए हथियार बचेंगे ही नहीं , बल्कि संसार के लोग फिर ईटपत्थरों के प्रयोग करने पर आ जाएंगे ।
यदि विश्व युद्ध की परिस्थिति बलवती होती हैं तो निश्चय ही कोरोना संकट इस महा युद्ध का तात्कालिक कारण होगा । यह कुछ वैसे ही होगा जैसे
जैसे पहले विश्वयुद्ध में ऑस्ट्रिया के राजकुमार आर्कड्यूक फ्रांसिस फर्डिनेन्ड की हत्या या फिर दूसरे विश्वयुद्ध में पोलैंड पर जर्मनी का हमला उन महायुद्धों के तात्कालिक कारण थे। इस समय उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग अपनी तानाशाही हरकतों के लिए संसार के लिए भय का कारण बने हुए हैं । यह ऐसा तानाशाह है जो कि पूर्णतया सनकी है और इसकी कोई भी सनक बारूद के ढेर में आग लगाने का काम कर सकती है ।कभी वह गुम हो जाता है तो कभी अचानक यूरेनियम फैक्ट्री का उद्घाटन करने सामने आ जाता है। संसार के देशों के समझाने के उपरांत भी वह दक्षिण कोरिया से अपने शत्रुता पूर्ण भावों के प्रदर्शन से बाज नहीं आ रहा है। वह अपने शत्रु के प्रति किसी भी सीमा तक जा सकता है और यदि ऐसा हुआ तो समझिए कि वह बारूद के ढेर में आग लगाने का काम कर देगा। तानाशाह किम के पब्लिक में दिखते ही नॉर्थ और साउथ कोरिया के बीच सीमा पर फायरिंग की खबरें आ रही हैं। इससे भी अधिक दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह है कि किम जोंग अपने परमाणु बम के जखीरे को निरंतर बढ़ाने की गतिविधियों में लगा हुआ है । वह पूर्णतया गैर जिम्मेदार तानाशाह है । जिसको मानवता के सुखद भविष्य कुछ नहीं लेना देना । वह लोगों को आतंकित करके खुश होता है और सचमुच किसी तानाशाह की यही सबसे बड़ी विशेषता होती है कि वह आतंक फैला कर और अपने सामने खड़े हुए व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह को थर थर काँपते देखकर खुश होता है।
किम जोंग इस समय 20 से 30 परमाणु बम तैयार करते हुए और इसके उपरांत भी वह रुक नहीं रहा है बल्कि अपने परमाणु बमों की संख्या निरंतर बढ़ाने में लगा हुआ है । अमेरिका और पश्चिमी देश नहीं चाहेंगे कि किम जोंग के पास परमाणु बम और बढ़ें. क्योंकि किम जोंग के पास बड़ी रेंज की मिसाइलें पहले से उपलब्ध हैं। ऐसे में यदि वह परमाणु बमों का उत्पादन करना आरंभ करता है तो यह संसार के लिए बहुत ही भयावह सिद्ध होगा।
यह सभी जानते हैं कि किम जोंग उन की इन गतिविधियों के पीछे चीन का संरक्षण और समर्थन कार्य कर रहा है । चीन अमेरिका को धमकाने के लिए किम जोंग उन का अनुचित प्रयोग करने की सीमाओं को लांघताजा रहा है । उधर अमेरिका भी समय की नजाकत को देखकर पीछे हटने का नाम नहीं ले रहा है । वह भी चाहता है कि किम जोंग उन से दो-दो हाथ हो जाएं । अब यदि किम जोंग उन का खात्मा करने के लिए अमेरिका अपने हवाई जहाजों को वहां से भेजता है तो निश्चय ही उसके हवाई जहाज इस बार चीन के निशाने पर होंगे। जिसका गंभीर परिणाम सारी मानवता को भुगतना पड़ेगा।
हम सब यह भी देख रहे हैं कि चीन और अमेरिका दोनों में इस समय विश्व की आर्थिक शक्ति बनने में एक घातक प्रतियोगिता जारी है। इसके लिए चीन अमेरिका को पीछे छोड़ने के लिए युद्ध का सहारा लेने से भी नहीं चूकेगा। क्योंकि प्रारंभ से ही चीन की नीतियां साम्राज्यवादी रही हैं । यदि इस समय उसे अपने वैश्विक आर्थिक साम्राज्य पर किसी प्रकार का खतरा अमेरिका की ओर से दिखाई देगा तो वह उससे लड़ने के लिए कुछ भी कर सकता है। यही कारण है कि अमेरिका और चीन में इस समय कोल्ड वार छिड़ चुका है । जिससे सारी दुनिया बहुत बेचैनी अनुभव कर रही है । अमेरिका चीन की हरकतों को समझते हुए उस पर यह आरोप लगा चुका है कि कोविड-19 उसी की हरकतों का परिणाम है। जिसके माध्यम से वह विश्व पर अपना आर्थिक साम्राज्य स्थापित करना चाहता है।
अमेरिका में चीन का अरबों-खरबों डॉलर की रकम फंसी हुई है ।यदि अमेरिका चीन के कर्जों को देने से इनकार करके उसके विरुद्ध प्रतिबंधात्मक कदम उठाता है तो चीन बर्बाद हो जाएगा । इसे रोकने के लिए चीन चुपचाप नहीं बैठेगा बल्कि वह भी अपनी ओर से कार्रवाई करेगा और उसकी कार्यवाही की सीमा तक जा सकती है ? यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है ।
चीन की ओर से आ रही यह खबरें बहुत ही दुखी करने वाली हैं कि दक्षिण चीन सागर में चीन की सेना अपना प्रभुत्व बढ़ाने में जुट गई है। जिसके कारण वहां तनाव बढ़ता जा रहा है ।
अमेरिका का आरोप है कि चीन की सेना दक्षिण चीन सागर में आक्रामक व्यवहार कर रही है। इस पर चीन ने आरोप लगाया है कि अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं, अतः ट्रंप प्रशासन माहौल को भड़का रहा है । इस बढ़ते तनाव के बीच चीन के जंगी जहाजों ने युद्ध का लाइव अभ्यास किया है । अमेरिका के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट माइक पॉम्पियो ने वीडियो कॉन्फ्रेंस में आरोप लगाया है कि दुनिया कोरोना वायरस में उलझी हुई है और चीन उसका लाभ उठाते हुए साउथ चाइना सागर में अपने विस्तारवादी सपने को पूरा करने के उद्देश्य में जुटा हुआ है ।।जिसके बाद दोनों देशों का तनाव सतह पर आ गया है ।
अमेरिका और उसके साथी देशों की गतिविधियों से चीन का राजनीतिक नेतृत्व ही पूर्णतया परिचित है। वह जानता है कि अमेरिका अपने विरोधियों को किस प्रकार ठिकाने लगाने का काम करता आया है ? इसलिए चीनी राजनीतिक नेतृत्व भी स्थिति पर स्थिति पर पूरी चौकसी बरते हुए हैं । चीन के राज्य सुरक्षा मंत्रालय ने अप्रैल के आरम्भ में राष्ट्रपति शी जिनपिंग सहित बीजिंग के शीर्ष नेताओं को एक रिपोर्ट सौंपी थी ।जिसमें कहा गया है कि चीन को अमेरिका के साथ सशस्त्र टकराव की सबसे भयावह स्थिति के लिए तैयार रहने की आवश्यकता है ।
रिपोर्ट में ये निष्कर्ष निकाला गया कि वाशिंगटन, चीन के उदय को आर्थिक और राष्ट्रीय सुरक्षा के खतरे और पश्चिमी लोकतंत्र के लिए एक चुनौती के रूप में देखता है । रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अमेरिका का लक्ष्य जनता के विश्वास को कम करके सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी को हटाना है.ये रिपोर्ट समाचार एजेन्सी रॉयटर ने छापी है. पूरी रिपोर्ट आप यहां देख सकते हैं-
इस रिपोर्ट के आधार पर यह कहा जा सकता है कि चीन को अंदाजा है कि अमेरिका सहित पश्चिमी देश उसके खिलाफ एकजुट हो रहे हैं। ऐसे में उसे गंभीर परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा ।जिसे देखते हुए चीन की सेना भी सजग हो रही है। चीन ने हाल ही में परमाणु परीक्षण भी किया है ।
ऐसे समय में भारत के लिए बहुत ही अधिक आत्म संयम बरतने की आवश्यकता है । यदि भारत इस समय गिलगित और बालटिस्तान को लेकर पाकिस्तान के विरुद्ध कार्यवाही करता है तो पाकिस्तान इस बार आराम से नहीं बैठेगा , बल्कि चीन उसे उकसा कर भारत के विरुद्ध युद्ध की घोषणा करवा सकता है । इतना ही नहीं वह भारत को कश्मीर की ओर उलझाकर स्वयं अरुणांचल व आसाम की ओर से हमला कर सकता है । यह बात इसलिए भी विचारणीय है कि चीन उसी बाल्टिस्तान और कश्मीर से अपने लिए एक सड़क का निर्माण कर रहा है जिसे भारत पाकिस्तान से लेने के लिए आतुर है । अतः गिलगित और बालटिस्तान में अकेला पाकिस्तान की नहीं खड़ा है बल्कि भारत को समझ लेना होगा कि उसके साथ चीन भी खड़ा है । क्योंकि चीन के आर्थिक , राजनीतिक और सैनिक तीनों प्रकार के हित इस क्षेत्र से जुड़े हुए हैं । ऐसे में यदि भारत पाकिस्तान के विरुद्ध कोई भी कार्यवाही करता है तो चीन उसे अपने साथ की गई कार्यवाही के रूप में लेगा और उसका साथ के साथ भुगतान करने के लिए अरुणांचल व आसाम की ओर से भारत पर हमला बोल सकता है । ऐसे में भारत सरकार को सभी तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करके अपना कदम उठाने की आवश्यकता है। विश्व तीसरे विश्वयुद्ध की ओर तेजी से बढ़ रहा है , परंतु इसके उपरांत भी विश्व की सृजनात्मक शक्तियां भारत की ओर बहुत आशा भरी दृष्टि से देख रही हैं । प्रधानमंत्री मोदी एक वैश्विक नेता के रूप में उभरे हैं । ऐसे में संसार की सृजनात्मक शक्तियां उनसे बहुत कुछ अपेक्षाएं रखती हैं।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत