संसार में यदि कोई पूज्यनीय है, तो परमात्मा के बाद माता-पिता और आचार्य अर्थात गुरू है। जिस प्रकार यदि किसी के पास वाद्य यंत्र (हरमोनियम, वीणा इत्यादि) तो है किंतु उन्हें बजाना नही जानता तो वे वाद्य यंत्र उसके लिए व्यर्थ हैं। ठीक इसी प्रकार यदि किसी को जीवन तो मिल गया किंतु उसे जीवन जीना नही आता तो उसके लिए जीवन व्यर्थ हो जाता है। यदि कोई वाद्य बजाना सिखा दे, उससे तरह तरह की धुन और स्वर लहरी (उर्मियां) निकालना सिखा दे तो वही वाद्य कितना अच्छा लगता है? ठीक इसी प्रकार कोई जीवन जीने की विद्या सिखा दे तो जीवन कितना रूचिकर लगता है? बताया नही जा सकता। यह काम कोई अच्छा गुरू ही कर सकता है, अन्य नही।
गुरू तो बादल की तरह है, शहद की मक्खी की तरह है। जैसे शहद की मक्खी न जाने कितने प्रकार के असंख्य पुष्पों के गर्भ से शहद के कतरे कतरे को अपनी सूंडी से चूसकर शहद के छत्ते में डाल देती है, उसे शहद से सराबोर कर देती है, ऐसे ही बादल भी न जाने कितने पोखरों, तालाबों, नदियों झरनों और सागरों से वाष्प के रूप में जल कणों को एकत्र कर आपके आंगन में बरसाता है। ठीक इसी प्रकार एक अच्छा गुरू भी न जाने कितने ग्रंथों, पुस्तकों का गहन अध्ययन कर तथा अपने अनुभव से संचित ज्ञान का रस मनुष्य के मन मस्तिष्क में हमेशा हमेशा के लिए डाल देता है। जिससे मनुष्य का जीवन जटिल न रहकर सहज सरल और रूचिकर हो जाता है।
गुरू वास्तव में एक दिव्य शक्ति है। जिस प्रकार सूर्य अपनी स्वर्णिम रश्मियों से रात्रि के गहन अंधकार को भगा धरती पर नया सबेरा लाता है, सोयी हुई और अलसायी हुई प्रकृति में नई स्फूर्ति नई ऊर्जा प्रदान कर नूतन जीवन का संचार करता है। ठीक इसी प्रकार गुरू अपनी दिव्य शक्ति की ज्ञान रश्मियों से अज्ञान और अविद्या के अंधकार को भगाता है और मनुष्य के मन मस्तिष्क में सोई हुई दिव्य शक्तियों को जाग्रत करता है, मुखरित करता है और उसके जीवन को दीप्तिमान करता है। गुरू की महत्ता न होती तो चौदह कलाओं के अवतार भगवान श्रीराम को गुरू वशिष्ठ के आश्रम में जाने की क्या आवश्यकता थी? इतना ही नही सोलह कलाओं के अवतार भगवान श्री कृष्ण को भी महर्षि संदीपन के आश्रम में जाने की क्या आवश्यकता थी? एक सामान्य बालक चंद्रगुप्त गुरू चाणक्य के संपर्क में आने से ही भारत का चक्रवर्ती सम्राट बना दिया। खंडित भारत को अखण्ड भारत बना दिया। इतना ही नही जिसके बल और पराक्रम का लोहा विश्व विजेता यूनानी सम्राट सिकंदर ने भी माना और सम्राट सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस ने अपनी बेटी कार्नहेलिया का विवाह चंद्रगुप्त के साथ कर शत्रुता भूलकर मित्रता कर ली। गुरू प्रभु प्रदत्त एक प्रेरक शक्ति है। घोर गरीबी के थपेड़े खाता हुआ बालक नरेन्द्र गुरू रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आने से स्वामी विवेकानंद बना। उसकी सोयी हुई दिव्य शक्तियों को गुरू रामकृष्ण परमहंस ने मुखरित किया था। उसकी कुशाग्र बुद्घि, वाकपटुता और बहुमुखी प्रतिभा अप्रतिम थी। वह ज्ञान और तेज में भारत का सूर्य था। जिसने अमेरिका के प्रसिद्घ शहर शिकागो में विश्वधर्म सम्मेलन में हिंदू धर्म की धाक जमाई थी। मूलशंकर भी देव दयानंद तभी बने थे जब वे अपने गुरू प्रज्ञाचक्षु बिरजानंद के संपर्क में आए थे। भारत में स्वराज्य शब्द की गंगा सबसे पहले, देव दयानंद के मुख से निकली थी। इसलिए कवि गुरू की महत्ता के संदर्भ में कहता है-
बूंद ने अपनी नही, नगरी सजायी।
मिल गयी जब सिंधु से, तो महानगरी बसायी।।
कौन कहता है? हिमालय मात्र हिम का ढेर है।
इस हिमालय ने पिघलकर, धरती पर गंगा बहायी।