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कविता

सूर्य पुकार सुनो

सूर्य जगाय रहे जग को उठ
रैन गई अब सोवत क्यों?
जाग गये सब फूल कली तुम
सोकर स्वप्न पिरोवत क्यों?
शक्ति अपार भुजा में भरी प्रण
आप करो अपने हिय से।
काज धरा पर हैं जितने सब
आन बने निज निश्चय से।।

 

प्रात हुआ यहि कारण की निशि
के सपने सब पूर्ण करो।
जंगम से जड़ जीवन से अवरोध
सभी तुम चूर्ण करो।।
राघव नाम लगे मिसरी अरु
केशव नाम सुधारस है।
शारद को कवि पूज रहे इनसे
रस छंद लिखावट है।।

सूर्य प्रताप अखंड अशेष
अतुल्य असीम पुरातन है।
शौर्य सुकीर्ति सुवीर्य सुतेज
स्वधर्म सकाम सतातन है।।
साहस को उर में भरके तज
सेज उठो पग चार धरो।
सूर्य पुकार सुनो अवधेश
सुकर्म करो जयकार करो।।

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