देहत्याग के समय भीष्म के पास क्या अकेले पांडव और श्री कृष्ण जी ही उपस्थित थे ?
अभी टी0वी0 चैनल पर महाभारत धारावाहिक समाप्त हुआ है । जिसमें दिखाया गया है कि अंतिम समय में भीष्म पितामह के पास पांचों पांडव और श्रीकृष्ण जी गए थे । उनके अतिरिक्त वहाँ पर अन्य कोई व्यक्ति उपस्थित नहीं था । यहाँ पर प्रश्न यह खड़ा होता है कि भीष्म पितामह जैसे महामानव का जिस दिन अंतिम संस्कार हो तो क्या उस दिन केवल पांचों पांडव और श्री कृष्ण जी ही उनके पास जाएंगे या उनकी इच्छा के अनुसार सम्राट पद पर सुशोभित हुआ युधिष्ठिर अपने भाइयों मंत्रियों व अन्य प्रमुख लोगों के साथ वहाँ पहुंचा था ?
आइए , देखते हैं कि इस विषय में महाभारत क्या कहती है ? महाभारत के ‘अनुशासन पर्व’ में इस बात का उल्लेख किया गया है । जहाँ पर भीष्म पितामह स्वयं एक बात की सूचना दे रहे हैं कि आज मुझे इस मृत्यु शैया पर पड़े हुए 58 दिन हो चुके हैं , परन्तु यह दिन मेरे लिए 100 वर्ष के समान बीते हैं । वह कहते हैं कि युधिष्ठिर ! इस समय चंद्रमास के अनुसार माघ का महीना प्राप्त हुआ है । इसका यह शुक्ल पक्ष चल रहा है जिसका एक भाग बीत चुका है और 3 भाग शेष हैं। इसका अभिप्राय है कि भीष्म जी माघ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को अपना देह त्याग कर रहे थे।
अनुशासन पर्व से ही हमें पता चलता है कि महाज्ञानी और धर्मात्माओं में श्रेष्ठ युधिष्ठिर ने राज्याभिषेक हो जाने के पश्चात अपना राज्य पाकर मंत्री आदि समस्त प्रकृतियों को अपने -अपने पद पर स्थापित करके वेदवेत्ता एवं गुणवान ब्राह्मणों से उत्तम आशीर्वाद ग्रहण किया । उसके पश्चात 50 रात्रि उत्तम नगर अर्थात हस्तिनापुर में निवास करके श्रीमान पुरुषश्रेष्ठ युधिष्ठिर को कुरुकुलशिरोमणि भीष्म जी के बताए हुए समय का ध्यान हो आया ।
तब कुंतीनंदन युधिष्ठिर ने भीष्म जी का दाह संस्कार करने के लिए पहले ही माल्य , गंध और रेशमी वस्त्र आदि वहाँ पर भेज दिए थे । कुरुकुलनंदन बुद्धिमान युधिष्ठिर राजा धृतराष्ट्र , यशस्विनी गांधारी , माता कुंती तथा पुरुष श्रेष्ठ भाइयों को आगे करके और जनार्दन श्री कृष्ण , बुद्धिमान विदुर तथा युयुत्सु को पीछे रखकर वह उस स्थान की ओर चले जहाँ भीष्म पितामह मृत्यु शैया पर लेटे थे ।
‘अनुशासन पर्व’ के इस प्रमाण से पता चलता है कि युधिष्ठिर और उनके भाइयों के साथ अंतिम समय में भीष्म पितामह के पास धृतराष्ट्र और गांधारी व कुंती सहित युयुत्सु भी उपस्थित था । साथ ही हस्तिनापुर के प्रधानमंत्री के पद पर सुशोभित हुए विदुर भी वहाँ उपस्थित थे । टी0वी0 धारावाहिक ने यह भ्रांति भी फैलाई है कि धृतराष्ट्र के सौ के सौ पुत्र समाप्त हो गए थे , जबकि इस प्रमाण से स्पष्ट होता है कि उसका पुत्र युयुत्सु उस समय भी जीवित था , जिस समय भीष्म पितामह ने अपना प्राणान्त किया था।
कुछ लोगों ने ऐसा कहकर भी मूर्खतापूर्ण बातें की हैं कि भीष्म पितामह ने जिस समय अपना अंतिम प्रवचन और उपदेश पांडवों को दिया था , उस समय बीच में ही द्रौपदी ने उन्हें यह कहकर टोक दिया था कि जैसी ज्ञान ध्यान की बातें आप आज कर रहे हैं वैसी पितामह आपने उस समय क्यों नहीं की थीं जिस समय मेरा चीरहरण हो रहा था ? इस पर बताया जाता है कि भीष्म पितामह ने कह दिया था कि उस समय मैंने दुर्योधन का अन्न खा रखा था , इसलिए मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी ? दुर्योधन के उस अन्न से बना हुआ रक्त अब मेरे शरीर से इन बाणों के माध्यम से बाहर निकल गया है , इसलिए अब मेरी बुद्धि पवित्र हो गई है । जबकि महाभारत के अनुशासन पर्व से यह भी स्पष्ट होता है कि द्रौपदी भीष्म पितामह के अंतिम क्षणों में उनके पास उपस्थित ही नहीं थी और उन्होंने जो भी उपदेश उस समय दिया था , किसी भी व्यक्ति या महिला ने उनकी बात को काटा नहीं था । अतः यह भ्रांति भी दूर कर लेनी चाहिए कि द्रौपदी ने भीष्म पितामह से अंतिम क्षणों में कुछ अनुचित बोला था ?
अनुशासन पर्व की साक्षी से ही हमें यह भी पता चलता है कि धर्मराज महाराज युधिष्ठिर दूर से ही शरशैय्या पर लेटे हुए भीष्म जी को देखकर भाइयों सहित रथ से उतर पड़े। तब भारत भूषण गंगा पुत्र भीष्म जी से भाइयों सहित बोले कि गंगानंदन ! नरेश्वर ! महाबाहो ! मैं युधिष्ठिर आपकी सेवा में उपस्थित हूँ और आपको नमस्कार करता हूँ। राजन प्रभो ! आपकी अग्नियों और आचार्य , ब्राह्मण और ऋत्विजों को साथ लेकर मैं अपने भाइयों सहित ठीक समय पर आ गया हूँ ।
इसके अतिरिक्त भीष्म से युधिष्ठिर यह भी कहते हैं कि आपके पुत्र महातेजस्वी राजा धृतराष्ट्र भी अपने ( पूर्व ) मंत्रियों सहित उपस्थित हैं और महाबली श्री कृष्ण भी यहां पधारे हैं ।इसके अतिरिक्त पुरुष सिंह ! युद्ध में मरने से बचे हुए सभी राजा और कुरुजांगल देश की प्रजा भी यहाँ उपस्थित है । आप आंखें खोलिए और उन सबको देखिए।
भीष्म जैसे महामानव के अंतिम संस्कार के समय इतने ही लोगों का उपस्थित होना उनके लिए सम्मानजनक था । युधिष्ठिर का सारा मंत्रिमंडल और धृतराष्ट्र के मंत्रीमंडल के जीवित बचे सभी सदस्य , गांधारी , कुंती और युद्ध में जीवित बचे अनेकों राजाओं के साथ-साथ जनता जनार्दन के अनेकों लोग वहां पर उपस्थित थे । इस प्रकार हजारों लोगों की उपस्थिति में भीष्म पितामह ने अपना प्राण त्याग किया था । इस प्रकार टी0वी0 चैनल के धारावाहिक में कृष्ण जी के द्वारा यह कहलवाना कि हम 6 लोग ही भीष्म के प्राणत्याग के साक्षी बन रहे हैं जो हमारे लिए गौरवपूर्ण हैं – एकदम भ्रामक है।
जब युधिष्ठिर ने भीष्म जी से कहा कि वह आंखें खोलें और हम सबको एक बार अपना आशीर्वाद प्रदान करें तब गंगानंदन भीष्म ने आंखें खोल कर अपने को सब ओर से घेरकर खड़े हुए संपूर्ण भरतवंशियों को देखा। तत्पश्चात प्रवचन कुशल बलवान भीष्म जी ने युधिष्ठिर की विशाल भुजा हाथ में लेकर मेघ के समान गंभीर वाणी में उन्हें समयोचित प्रवचन किया । उन्होंने कहा कि कुंती कुमार युधिष्ठिर ! सौभाग्य की बात है कि तुम मंत्रियों सहित यहाँ पधारे हो । सहस्रों रश्मियों से सुशोभित सूर्य अब दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर लौट चुका है । इसके पश्चात भीष्म ने सबसे पहला उपदेश धृतराष्ट्र को दिया और उनसे कहा कि तुम्हें कहीं वन आदि में जाने की आवश्यकता नहीं है । तुम वेद शास्त्रों को पूर्ण रूप से जानते और समझते हो । तुम्हें शोक नहीं करना चाहिए । जो कुछ हुआ है वह अवश्यंभावी था । यह पांडव जैसे राजा पांडु के पुत्र हैं वैसे ही धर्म की दृष्टि से तुम्हारे भी पुत्र हैं । यह सदा गुरुजनों की सेवा में संलग्न रहते हैं । तुम धर्म में स्थित रहकर अपने पुत्रों के समान ही इनका पालन करना। धर्मराज युधिष्ठिर का हृदय अति शुद्ध है । यह सदा तुम्हारी आज्ञा के अधीन रहेंगे । मैं जानता हूँ कि इनका स्वभाव अत्यंत कोमल है और यह गुरुजनों के प्रति बड़ी भक्ति रखते हैं । तुम्हारे पुत्र बड़े दुरात्मा , क्रोधी , लोभी , ईर्ष्या के वशीभूत और दुराचारी थे । अतः उनके लिए तुम्हें शोक नहीं करना चाहिए।
टीवी धारावाहिक में हमें बताया गया कि बाणशैया पर पड़े भीष्म जी से श्री कृष्णजी ने राजनीति का उपदेश देकर युधिष्ठिर का मार्गदर्शन करने के लिए निवेदन किया । परंतु अनुशासन पर्व में ऐसा भी कोई उल्लेख नहीं है । भीष्म पितामह ने अंतिम समय में धृतराष्ट्र से तो अवश्य कुछ कहा है पर उसके पश्चात कोई विशेष बात उन्होंने यहाँ पर उपदेशात्मक शैली में युधिष्ठिर के लिए नहीं कही है । उन्होंने अपना जीवन समेटने से पहले के अंतिम क्षणों में युधिष्ठिर को गले लगाकर केवल इतना कहा – युधिष्ठिर ! तुम्हें सामान्यतः सभी ब्राह्मणों का विशेषत: विद्वानों , आचार्यों और ऋत्विजों का सदा ही आदर सत्कार करना चाहिए।
इसके पश्चात भीष्म जी प्राणवायु को क्रमशः विभिन्न धारणाओं में स्थापित करने लगे । इस प्रकार यौगिक क्रिया के द्वारा रोके हुए महामना भीष्मजी के प्राण क्रमश: ऊपर चढ़ने लगे । भीष्म जी ने अपने शरीर के सभी द्वारों को बंद करके प्राणों को सब ओर से रोक लिया था । अतः वे उनके मस्तिष्क (ब्रह्मरंध्र ) को भेदकर आकाश में चले गए । इस प्रकार भरत वंश का भार वहन करने वाले शांतनु नंदन भीष्म मृत्यु को प्राप्त हुए । तत्पश्चात बहुत से काष्ठ और नाना प्रकार के सुगंधित द्रव्य लेकर महात्मा पांडवों और विदुर ने चिता तैयार की । राजा युधिष्ठिर और बुद्धिमान विदुर इन दोनों ने रेशमी वस्त्रों और मालाओं से कुरुनंदन गंगा पुत्र भीष्म को आच्छादित किया और चिता पर सुलाया । उस समय युयुत्सु ने उन पर उत्तम क्षत्र ताना और भीमसेन तथा अर्जुन स्वयं उन पर चंवर और व्यंजन ( बीजना या पंखे ) डुलाने लगे । नकुल और सहदेव ने पगड़ी हाथों में लेकर भीष्म जी के मस्तक पर रखी । कौरव राज के रनिवास की स्त्रियां ताड़ के पंखे हाथों में लेकर कुरुकुल धुरंधर भीष्म जी के शव को सब ओर से हवा करने लगी । इस प्रकार कुरुश्रेष्ठ भीष्म जी का दाह संस्कार करके समस्त कौरव ऋषि-मुनियों से सेवित परम पवित्र भागीरथी के तट पर गए वहां पहुंचकर पांडवों और नगर निवासियों ने स्नान किया।
इस प्रकार हमें टीवी धारावाहिकों को अंतिम प्रमाण नहीं मानना चाहिए । क्योंकि इन्होंने भी तथ्यों को सही ढंग से प्रस्तुत नहीं किया है ।हमने आपके समक्ष यह तथ्य महाभारत के माध्यम से ही प्रस्तुत किए हैं।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत