कोरोना महामारी के बाद स्वदेशी मॉडल ही भारतीय अर्थव्यवस्था का सहारा
आज पूरे विश्व में कोरोना महामारी की जो स्थिति है उससे हम सभी भलीभाँति वाक़िफ़ हैं। केंद्र सरकार ने इस महामारी को भारत में फैलने से रोकने के लिए कैसे-कैसे गम्भीर प्रयास किए इसके भी आप साक्षी हैं। जब भारत में कोरोना का एक भी मरीज़ नहीं था तब देश में बाहर से आने वाले यात्रियों की जाँच शुरू कर दी गई थी। जब देश में 100 मरीज़ पाए गए थे, तब होटेल, माल, जिम, क्लब, स्कूल, पार्क आदि बंद किए जा चुके थे। जब देश में कोरोना वायरस से पीड़ित मरीज़ों का आँकड़ा 550 तक पहुँचा था, तब भारत में लॉक डाउन घोषित कर दिया गया था। केंद्र सरकार ने भारत में समस्या बढ़ने का इंतज़ार नहीं किया परंतु तेज़ी से फ़ैसले लेकर कोरोना वायरस बीमारी को भारत में फैलने से रोकने का भरसक प्रयास किया। हालाँकि यह एक ऐसा संकट है जिसकी किसी भी देश के साथ तुलना करना ठीक नहीं है। परंतु फिर भी यदि आज हम दुनिया के विकसित देशों के आँकड़े देखे तो पाते हैं कि भारत आज बहुत ही सम्भली हुई स्थिति में हैं। डेढ़ से दो माह पहिले ये समस्त विकसित देश एवं भारत लगभग साथ खड़े थे। परंतु आज विकसित देशों में 25/30 गुणा से ज़्यादा मरीज़ हो गए हैं। वहाँ हज़ारों की संख्या में लोगों की मृत्यु हुई है। भारत ने समग्र एवं एकीकृत दृष्टिकोण यदि नहीं अपनाया होता और यदि तेज़ गति से फ़ैसले नहीं लिए होते तो स्थिति यहाँ भी भयावह होती। भारत सरकार ने जो रास्ता चुना है वही देश के लिए सही है। सोशल डिसटेंसिंग एवं लॉक डाउन का फ़ायदा निश्चित रूप से देश के नागरिकों को मिला है। आर्थिक दृष्टि से ज़रूर देश को बहुत बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ी है। परंतु जीवन बचाने के लिए देश कुछ भी क़ीमत चुकाने को तैयार दिख रहा है। स्थानीय इकाईयों एवं विभिन्न राज्य सरकारों ने भी बहुत ज़िम्मेदारी से कार्य किया है और हालात को बिगड़ने से रोका है। इन सब प्रयासों के बीच भी देश में कोरोना वायरस जिस तरह से फैल रहा है उसके चलते देश में तीसरे लॉक डाउन की घोषणा करनी पड़ी है।
हालाँकि अब देश में धीरे धीरे चरणबद्ध तरीक़े से बाज़ारों को खोला जा रहा है। ग्रीन ज़ोन एवं ऑरेंज ज़ोन में व्यापार, उत्पादन एवं अन्य गतिविधियों के लिए काफ़ी छूट दी जा रही है एवं रेड ज़ोन में भी कुछ हद्द तक छूट प्रदान की गई है। बहुत सम्भव है कि देश के कुछ क्षेत्रों में अगले लगभग 15 दिनों के बाद लॉक डाउन को पूरे तरह से समाप्त कर दिया जाय। अब विचार करने का विषय यह है कि लॉक डाउन समाप्त होने के बाद देश के अंदर व्यापारिक गतिविधियाँ किस तरह से बदल जाने की सम्भावना है एवं ऐसा कौन सा मॉडल अपनाया जाय जिसके चलते रोज़गार के अधिक से अधिक अवसर सृजित हों एवं देश पुनः तरक़्क़ी के रास्ते पर चल पड़े।
आज के कई विकसित देशों ने अपने आर्थिक विकास हेतु पूँजीवादी मॉडल को चुना था। इस मॉडल के अंतर्गत सकल घरेलू उत्पाद एवं प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि को ही विकास को नापने का मुख्य पैमाना बनाया गया। इससे कम्पनियाँ जहाँ येन-केन-प्रकारेण अपने उत्पाद में वृद्धि करने हेतु प्रेरित हुईं वहीं प्रत्येक व्यक्ति अपनी आय बढ़ाने की ओर लालायित रहने लगा। इसके लिए चाहे उन्हें किसी भी प्रकार का ग़लत कार्य क्यों न करना पड़ा। समाज में कई प्रकार की बुराइयों ने अपने पैर पसारना प्रारंभ कर दिया। जैसे – कम्पनियों ने अपने लाभ में वृद्धि करने के उद्देश्य से कर्मचारियों का उत्पीड़न करना प्रारम्भ किया, अपने उत्पादों को बाज़ार में सफल बनाने के लिए और अपनी बिक्री बढ़ाने के उद्देश्य से तथा इनके द्वारा उत्पादित की जा रही वस्तुओं की माँग उत्पन्न करने हेतु विज्ञापनों का सहारा लिया, चाहे इन विज्ञापनों में कही गई सभी बातें तथ्यात्मक नहीं रहीं हों। आकर्षक विज्ञापनों के सहारे लोगों को भौतिकवादी बना दिया गया। लोगों में आज जीने की प्रवर्ती पसरती चली गयी अर्थात आज जियो कल किसने देखा। विज्ञापनों ने फ़िज़ूल खर्ची को भी बढ़ावा दिया। नए नए उत्पादों का विज्ञापन कुछ इस प्रकार से किया जाने लगा कि लोगों को महसूस हो कि इस उत्पाद का उपयोग यदि मैंने नहीं किया तो मेरा जीवन तो जैसे अधूरा ही रह जाएगा। वास्तव में चाहे उस उत्पाद की आवश्यकता हो या नहीं, परंतु विज्ञापन देख कर उस उत्पाद को ख़रीदने हेतु मन में प्रबल विचार उत्पन्न किए गए, ताकि लोग इन उत्पादों को ख़रीदें और कम्पनी की बिक्री बढ़े। कुल मिलाकर लोगों को एकदम भौतिकवादी बना दिया गया।
वहीं दूसरी ओर जीवन जीने की एक भारतीय पद्धति भी है जिसके अंतर्गत भौतिकवाद एवं अध्यात्मवाद दोनों में समन्वय स्थापित करना सिखाया जाता है एवं व्यापार में भी आचार-विचार का पालन किया जाता है। भारतीय पद्धति में मानवीय पहलुओं को प्राथमिकता दी जाती है। अतः आज देश में भारतीय जीवन पद्धति को पुनर्स्थापित करने की अत्यधिक आवश्यकता है। देश के आर्थिक विकास को केवल सकल घरेलू उत्पाद एवं प्रति व्यक्ति आय से नहीं आँका जाना चाहिए बल्कि इसके आँकलन में रोज़गार के अवसरों में हो रही वृद्धि एवं नागरिकों में आनंद की मात्रा को भी शामिल किया जाना चाहिए। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि आर्थिक विकास हेतु एक शुद्ध भारतीय मॉडल को विकसित किए जाने की आज एक महती आवश्यकता है। इस भारतीय मॉडल के अंतर्गत ग्रामीण इलाक़ों में निवास कर रहे लोगों को स्वावलंबी बनाया जाना चाहिए। गाँव, जिले, प्रांत एवं देश को इसी क्रम में आत्मनिर्भर बनाया जाना चाहिए। साथ ही, भारतीय मॉडल में ऊर्जा दक्षता, रोज़गार के नए अवसर, पर्यावरण की अनुकूलता एवं विज्ञान का अधिकतम उपयोग का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। इस भारतीय मॉडल में प्रकृति के साथ तालमेल करके आगे बढ़ने की आवश्यकता है। यह मॉडल विकेंद्रीयकरण को बढ़ावा देने वाला होना चाहिए। सृष्टि ने जो नियम बनाए हैं उनका पालन करते हुए ही देश में आर्थिक विकास होना चाहिए।
आर्थिक विकास के इस भारतीय मॉडल में कुटीर उद्योग एवं सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों को गाँव स्तर पर ही चालू करने की ज़रूरत है। इसके चलते इन गावों में निवास करने वाले लोगों को ग्रामीण स्तर पर ही रोज़गार के अवसर उपलब्ध होंगे एवं गावों से लोगों के शहरों की ओर पलायन को रोका जा सकेगा। देश में अमूल डेयरी के सफलता की कहानी का भी एक सफल मॉडल के तौर पर यहाँ उदाहरण दिया जा सकता है। अमूल डेयरी आज 27 लाख लोगों को रोज़गार दे रही है। यह शुद्ध रूप से एक भारतीय मॉडल है।
विकास के इस नए भारतीय मॉडल को लागू करने की ज़िम्मेदारी नागरिकों पर अधिक है और अब समय आ गया है कि भारतीय नागरिक अपनी सोच को बदलें एवं विदेशों में निर्मित वस्तुओं के उपयोग के मोह का त्याग कर केवल देश में निर्मित वस्तुओं का उपयोग शुरू करें। हम सभी यह जानते हैं कि चीन में निर्मित वस्तुओं की गुणवत्ता अच्छी नहीं मानी जाती है परंतु फिर भी केवल सस्ती दरों पर उपलब्ध होने के कारण हम इन वस्तुओं की ओर आकर्षित हो जाते हैं। अब हमें यह मोह त्यागकर केवल और केवल भारत में ही उत्पादित वस्तुओं का उपयोग करना होगा। इससे न केवल देशी उद्योग धंधो को बढ़ावा मिलेगा बल्कि देश के लिए अमूल्य विदेशी मुद्रा भी बचाई जा सकेगी। आज की इस घड़ी में यह त्याग हमें देश के लिए करना ही होगा। भारत सरकार को भी आज की परस्थितियों में इस ओर ध्यान देने की ज़रूरत है कि आवश्यक वस्तुओं के विदेशों से आयात पर प्रतिबंध लगाया जाय। जब इस प्रकार की वस्तुएँ भारत में ही निर्मित की जा सकती हैं तो इनका विदेशों से आयात क्यों किया जाना चाहिए। यहाँ व्यापारी वर्ग एवं उत्पादकों को भी यह ध्यान देना होगा कि आगे आने वाले समय में अपने उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार करते हुए उन्हें सस्ती दरों पर देश के नागरिकों को उपलब्ध कराएँ एवं विदेश में निर्मित वस्तुओं का व्यापार नहीं करें। ऐसा करने से यदि एक साल व्यापारियों एवं उत्पादकों को कम लाभ का अर्जन करना पड़े तो देश हित में इस त्याग को सभी वर्गों ने करना चाहिए।
यदि देश के नागरिक, व्यापारी, उत्पादक, एवं विभिन्न स्तरों पर सरकार, आदि सभी वर्ग मिलकर कार्य करेंगे तो आर्थिक विकास के भारतीय मॉडल को सफल होने से कोई रोक नहीं सकेगा। बल्कि, पूरा विश्व ही इसे लागू करने की ओर आकर्षित होने लगेगा।
लेखक भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवर्त उप-महाप्रबंधक हैं।