भाजपा के लिए यह समय कमजोरी का है। इसमें बहुत से बड़े नेता हैं। जितने बड़े नेता हैं उतने ही गुट हैं। इसलिए पार्टी गुटबाजी का शिकार है। एकच्छत्र राज्य किसी का नही है, इसलिए सर्वस्वीकृत व्यक्तित्व के संकट से भाजपा निकल रही है। इसलिए बहुत छोटे छोटे लोग बहुत बड़ी-बड़ी बातें कह रहे हैं। पार्टी के नेताओं से और विशेषत: अध्यक्ष से इस्तीफा मांगना गलत नही है, लेकिन उसके लिए उचित मंच होता है, गलत मंच पर जाकर उचित बात कहना श्री मर्यादाहीनता का लक्षण होता है। जब ऐसे मंचों को नेता अपनी भड़ास निकालने के लिए उपयोग करने लगें तब समझना चाहिए कि इनका वक्त खराब आ चुका है। जेठमलानी रॉ में बहकर कह गये कि उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नही कर सकता। बात साफ थी कि वे स्वयं को सबसे ऊपर मान रहे थे-वह अहंकार का शिकार हो चुके थे। जेठमलानी की छवि वैसे भी देश में एक बहुत अच्छे विचारक और गंभीर नेता की नही है। वह अच्छे वकील हो सकते हैं, लेकिन भाजपा में जाकर वह ‘सांस्कृतिक-राष्ट्रवाद के अच्छे प्रवक्ता भी हो गये मान लिये जाए-यह संभव नही है। सच में तो उन जैसे लोग सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की व्याख्या इसलिए नही कर सकते कि वो इसके अर्थ तक को भी नही जानते। इसलिए ऐसे लोगों से भाजपा को अपना पीछा छुड़ा ही लेना चाहिए। गर्वाेन्मत्त नामचीन हस्तियों को अपने साथ जोड़कर चलने से कभी भी कोई मिशन सफल नही हुआ करता है, बल्कि ऐसी गर्वाेन्मत्त हस्तियों का समामेलन करा देने से मिशन को विभिन्न महत्वाकांक्षाओं की भेंट चढ़ा देना होता है। मिशन के लिए तपे तपाए साधक ढूंढऩा उचित होता है। भाजपा ने रामजेठमलानी को अपनी नाव में बैठाकर गलती की थी। आज उन्हें निलंबित करके मानो भाजपा ने अपनी भूल सुधार की है।