जीवात्मा के बारे में विशेष जानकारी
1) जीवात्मा किसे कहते है ?
उत्तर = एक ऐसी वस्तु जो अत्यंत सूक्ष्म है, अत्यंत छोटी है , एक जगह रहने वाली है, जिसमें ज्ञान अर्थात् अनुभूति का गुण है, जिस में रंग रूप गंध भार (वजन) नहीं है, कभी नाश नहीं होता, जो सदा से है और सदा रहेगी, जो मनुष्य-पक्षी-पशु आदि का शरीर धारण करती है तथा कर्म करने में स्वतंत्र है उसे जीवात्मा कहते हैं ।
2) जीवात्मा के दुःखों का कारण क्या है ?
उत्तर = जीवात्मा के दुःखों का कारण मिथ्याज्ञान है ।
3) क्या जीवात्मा स्थान घेर सकती है ?
उत्तर = नहीं, जीवात्मा स्थान नहीं घेरती ।
4) जीवात्मा का प्रलय मे क्या स्थिति होती है । क्या उस समय उसमें ज्ञान होता है ?
उत्तर = प्रलय अवस्था मे बद्ध जीवात्माएँ मूर्च्छित अवस्था में रही है । उसमें ज्ञान होता हे परंतु शरीर, मन आदि साधनो के अभाव से प्रकट नहीं होता ।
5) प्रलय काल मे मुक्त आत्माएं किस अवस्था में रहती है ?
उत्तर = प्रलय काल में मुक्त आत्माएँ चेतन अवस्था मे रहती है और ईश्वर के आनन्द में मग्न रहती है ।
6) जीवात्मा के पर्यायवाची शब्द क्या क्या है ?
उत्तर = आत्मा, जीव, , पुरुष, देही, आदि अनेक नाम वेद आदि शास्त्र में आये हैं ।
7) क्या जीवात्मा अपनी इच्छा से दुसरे शरीर मे प्रवेश कर सकता है ?
उत्तर = नहीं कर सकता ।
8) मुक्ती का समय कितना है ?
उत्तर = 1 महाकल्प – ऋग्वेद = 1 मंडल 24 सूक्त 2 मन्त्र । 31 नील 10 खरब 40 अरब वर्ष मुक्ति का समय है ।
9) जीवात्मा स्त्री है या पुरुष है या नपुंसक है ?
उत्तर = जीवात्मा तीनो भी नहीं । ये लिंग तो शरीरों के हैं ।
10) क्या जीवात्मा ईश्वर का अंश है ?
उत्तर = नहीं , जीवात्मा ईश्वर का अंश नहीं है । ईश्वर अखण्ड है उसके अंश= टुकडे नहीं होते है ।
11) क्या जीवात्मा का कोई भार, रुप, आकार, आदि है ?
उत्तर = नहीं ।
12 ) जीवात्मा की मुक्ती एक जन्म में होती है या अनेक जन्म मे होती है ?
उत्तर = जीवात्मा की मुक्ती एक जन्म मे नहीं अपितु अनेक जन्मो मे होती है ।
13) क्या जीवात्मा मुक्ती मे जाने के बाद पुनः संसार में वापस आता है ?
उत्तर = जी हाँ । जीवात्मा मुक्ति में जाने का बाद पुनः शरीर धारण करने के लिए वापस आता है ।
14) जीवात्मा के लक्षण क्या है?
उत्तर = जीवात्मा के लक्षण इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, ज्ञान, सुख, दुःख की अनुभूति करना है ।
15) मेरा मन मानता नहीं, यह कथन ठीक है ?
उत्तर = नहीं । जड़ मन को चलाने वाला चेतन जीवात्मा है ।
16) क्या जीवात्मा कर्मो का फल स्वयं भी ले सकता है ?
उत्तर = हाँ । जीवात्मा कुछ कर्मो का फल स्वयं भी ले सकता है जैसै चोरी का दण्ड भरकर । किंतु अपने सभी कर्मो का फल जीवात्मा स्वयं नहीं ले सकता है ।
17) क्या जीवात्मा कर्म करते हुऐ थक जाता है ?
उत्तर = नहीं, जीवात्मा कर्मो को करते हुवे थकता नहीं है अपितु शरीर, इन्द्रियाँ का सामर्थ्य घट जाता है ।
18) जीवात्मा में कितनी स्वाभाविक शक्तियाँ हैं ?
उत्तर = 24 स्वाभाविक शक्तियाँ हैं ।
19) शास्त्रों में आत्मा को जानना क्यों आवश्यक बताया गया है ?
उत्तर = जीवात्मा के स्वरूप को जानने से शरीर, इन्द्रिय और मन पर अधिकार प्राप्त हो जाता है , परिणाम स्वरुप आत्मज्ञानी बुरे कामों से बचकर उत्तम कार्यों को ही करता है ।
20) जीवात्मा का स्वरूप ( गुण, कर्म, स्वभाव, लम्बाई, चौड़ाई, परिमाण ) क्या है ?
उत्तर = जीवात्मा अणु स्वरूप, निराकार, अल्पज्ञ, अल्पशक्तिमान है, वह चेतन है और कर्म करने मे स्वतंत्र है, बाल की नोंक के दश हजारवें भाग से भी सूक्ष्म है । यह अपनी विषेश स्वतंत्र सत्ता रखता है ।
21) जीवात्मा शरीर मे कहाँ रहता हे ?
उत्तर = जीवात्मा मुख्य रूप से शरीर में स्थान विशेष जिसका नाम ह्रदय है, वहाँ रहता है किन्तु गौण रूप से नेत्र, कण्ठ इत्यादि स्थानों में भी वह निवास करता है ।
२२) क्या, मनुष्य, पशु पक्षी , किट पतंग आदि शरीरों में जीवात्मा भिन्न भिन्न होते है या एक ही प्रकार के होते है ?
उत्तर = आत्मा तो अनेक है किन्तु हर एक आत्मा एक सामान है | मनुष्य, पशु, पक्षी आदि किट पतंग के शरीरो में भिन्न-भिन्न जीवात्माएं नहीं किन्तु एक ही प्रकार के जीवात्माएं है | शरीरों का भेद है आत्माओ का नहीं |
२३) जीवात्मा शरीर क्यों धारण करता है? कबसे कर रहा है और कब तक करेगा ?
उत्तर = जीवात्मा, अपने कर्मफल को भोगने और मोक्ष को प्राप्त करने के लिए शरीर को धारण करता है संसार के प्रारम्भ से यह शरीर धारण करता आया है और जब तक मोक्ष को प्राप्त नहीं करता तब तक शरीर धारण करते रहेगा |
२४) क्या मरने के बाद जीव, भूत, प्रेत, डाकन आदि भी बनकर भटकता है ?
उत्तर = मरने के बाद जीव न तो भूत, प्रेत बनता है और न ही भटकता है | यह लोगों के ज्ञान के कारन बानी हुई मिथ्या मान्यता है |
२५) शरीर में जीवात्मा कब अत है ?
उत्तर = जब गर्भ धारणा होता है तभी जीवात्मा आ जाता है, रजवीर्य मिलते है भ्रूण का निर्माण आरंभ होता है |
२६) क्या जीव और ब्रह्म (ईश्वर) एक ही है ? अथवा क्या ‘ आत्मा सो परमात्मा ‘एक ही है ?
उत्तर = जीव और ब्रह्म एक ही नहीं है अपितु दोनों अलग-अलग पदार्थ हैं जिनके गुण कर्म स्वभाव भिन्न-भिन्न हैं | अतः यह मान्यता ठीक नहीं गलत है |
२७) क्या जीव ईश्वर बन सकता है ?
उत्तर = जीव कभी भी ईश्वर नहीं बन सकता है |
२८) क्या जीवात्मा एक वस्तु है ?
उत्तर = हाँ , जीवात्मा एक चेतन वस्तु है, वैदिक दर्शनों में वस्तु उसको कहा गया है, जिसमे कुछ गुण कर्म, स्वभाव होते हों |
२९) क्या जीवात्मा शरीर को छोड़ने में और नए शरीर को धारण करने में स्वतंत्र है ?
उत्तर = जीवात्मा को नए शरीर को धारण करने में स्वतंत्र नहीं है अपितु ईश्वर के अधीन है | ईश्वर जब एक शरीर में जीवात्मा का भोग पूरा हो जाता है तो जीवात्मा को निकल लेता है और उसे नया शरीर को प्रदान करता है | मनुष्य आत्मा हत्या करके शरीर छोड़ने में स्वतंत्र भी है |
३०) अणु स्वरुप वाला जीवात्मा इतने बड़े शरीरों को कैसे चलता है ?
उत्तर = जैसी बिजली बड़े=बड़े यंत्रों को चला देती है ऐसे ही निराकार होते हुए भी जीवात्मा अपनी प्रयत्न रुपी चुम्बकीय शक्ति से शरीरों को चला देता है |
३१) मनुष्य के मरने के बाद ८४ लाख योनियों में घूमने के बाद ही मनुष्य जन्म मिलता है | क्या यह मान्यता सही है ?
उत्तर = नहीं, मनुष्य के मृत्यु के बाद तुरंत अथवा कुछ जन्मों के बाद ( अपने कर्फल भोग अनुसार ) मनुष्य जन्म मिल सकता है |
३२) शरीर छोड़ने के बाद (मृत्यु पश्च्यात) कितने समय में जीवात्मा दूसरा शरीर धारण करता है ?
उत्तर = जीवात्मा शरीर छोड़ने के बाद (मृत्यु पश्च्यात) ईश्वर की व्यवस्था के अनुसार दूसरे शरीर को धारण कर लेता है | यह सामान्य नियम है |
३३) क्या इस नियम का कोई अपवाद भी होता है ?
उत्तर = जी हाँ , इस नियम का अपवाद होता है | मृत्यु पश्च्यात जब जीवात्मा एक शरीर को छोड़ देता है लेकिन अगला शरीर प्राप्त करने के लिए अपने कर्मोंनुसार माता का गर्भ उपलब्ध नहीं होता है तो कुछ समय तक ईश्वर की व्यवस्था में रहता है | अनुकूल माता-पिता मिलने से ईश्वर की व्यवस्थानुसार उनके यहाँ जन्म लेता है |
३४) जीवात्मा की मुक्ति क्या है और कैसे प्राप्त होती है ?
उत्तर = प्रकृति के बंधन से छूट जाने और ईश्वर के परम आनंद को प्राप्त करने का नाम मुक्ति है | यह मुक्ति वेदादि शास्त्रों में बताये गए योगाभ्यास के माध्यम से समाधी प्राप्त करके समस्त अविद्या के संस्कारों को नष्ट करके ही मिलती है |
३५) मुक्ति में जीवात्मा की क्या स्थिति होती है, वह कहाँ रहता है? बिना शरीर इन्द्रियों के कैसे चलता, खाता, पिता है ?
उत्तर = मुक्ति में जीवात्मा स्वतंत्र रूप से समस्त ब्रम्हांड में भ्रमण करता है और ईश्वर के आनंद से आनंदित रहता है तथा ईश्वर की सहायता से अपनी स्वाभाविक शक्तियों से घूमने फिरने का काम करता है | मुक्त अवस्था में जीवत्मा को शरीरधारी जीव की तरह खाने पिने की आवश्यकता नहीं होती है |
३६) जीवात्मा की सांसारिक इच्छाये कब समाप्त होती है ?
उत्तर = जब ईश्वर की प्राप्ति हो जाती है और संसार के भोगों से वैराग्य हो जाता है तब जीवात्मा की संसार के भोग पदार्थ को प्राप्त करने की इच्छा ये समाप्त हो जाती हैं |
३७) जीवात्मा वास्तव में क्या चाहता है ?
उत्तर = जीवात्मा पूर्ण और स्थायी सुख , शांति, निर्भयता और स्वतंत्रता चाहता है |
३८) भोजन कौन खाता है शरीर या जीवात्मा ?
उत्तर = केवल जड़ शरीर भोजन को खा नहीं सकता और केवल चेतन जीवात्मा को भोजन की आवश्यकता नहीं है शरीर में रहता हुआ जीवात्मा मन इन्द्रियादि साधनों से कार्य लेने के लिए भोजन खाता है |
३९) एक शरीर में एक ही जीवात्मा रहता है या अनेक भी रहते हैं ?
उत्तर = एक शरीर में एक ही जीवात्मा रहता है अनेक जीवात्माएं नहीं रहते | हाँ, दूसरे शरीर से युक्त दूसरा जीवात्मा तो किसी शरीर में रह सकता है, जैसे माँ के गर्भ में उसका बच्चा |
४० ) जीवात्मा शरीर में व्यापक है या एकदिशी ( एक स्थानीय ) ?
उत्तर = शरीर में जीवात्मा एकदेशी है व्यापक नहीं, यदि व्यापक होता तो शरीर के घटने बढ़ने के कारन यह नित्य नहीं रह पायेगा |
४१) जीव की परम उन्नति, सफलता क्या है ?
उत्तर = जीवात्मा परम उन्नति आत्मा-परमात्मा का साक्षातकार करके परम शांतिदायक मोक्ष को प्राप्त करना है |
४२) क्या जीवात्मा को प्राप्त होने वाले सुख दुःख अपने ही कर्मों के फल होते है ? या बिना ही कर्म किये दूसरों के कर्मों के कारन भी सुख दुःख मिलते हैं ?
उत्तर = जीवात्मा को प्राप्त होने वाले सुख दुःख अपने कर्मों के फल होते है किन्तु अनेक बार दूसरे के कर्मों के कारण भी परिणाम प्रभाव के रूप में ( फल रूप में नहीं ) सुख दुःख प्राप्त हो जाते है |
४३) किन लक्षणों के आधार पर यह कह सकते है की किस व्यक्ति ने जीवात्मा का साक्षात्कार कर लिया है ?
उत्तर = मन, इन्द्रियों पर अधिकार करके सत्यधर्म न्यायाचरण के माध्यम से शुभकर्मों को ही करणा और असत्य अधर्म के कर्मों को न करना तथा सदा शांत, संतुष्ट और प्रसन्न रहना इस बात का ज्ञापक होता है की इस व्यक्ति ने आत्मा का साक्षात्कार कर लिया है |