संतोष सिन्हा
अंबेडकर नगर। सांप्रदायिक दंगों की मार झेल रहा पूर्वांचल 2014 के चुनावों में क्या गुल खिलाएगा, यह कहना अभी तो जल्दबाजी होगा, लेकिन इतना तय है कि सांप्रदायिक दंगों का प्रभाव प्रदेश के मतदाताओं पर पड़ेगा। यूं तो मुलायम सिंह यादव की सपा ने 2014 के आम चुनावों के लिए अपने 55 लोकसभा प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी है, लेकिन अभी भी इस सूची जारी करने के कई अर्थ निकाले जा रहे हैं। मसलन, यह सूची कांग्रेस पर एक मनोवैज्ञानिक दवाब बनाने के लिए भी हो सकती है, दूसरे यह सूची अपने कुछ साथियों को साथ रखने के लिए भी हो सकती है। नेताजी की सूची को अंतिम नही कहा जा सकता, फिर भी उन्होंने चुनाव के प्रति अपने चौकन्नेपन की सूचना तो इस सूची को जारी करके दे ही दी है।
दूसरी ओर पूर्वांचल के मतदाता की नब्ज को अगर टटोलकर देखा जाए तो हर महीने प्रदेश में हो रहे सांप्रदायिक दंगे और सपा की मुस्लिमपरस्त नीतियों के कारण आम आदमी सपा से दूर हुआ है। पिछले चुनावों में सपा और बसपा के मतदाताओं में केवल पच्चीस लाख का अंतर था। सत्रह करोड़ की आबादी के प्रदेश में पच्चीस लाख लोगों का झुकाव पलटने में देर नही लग सकती और न ही यह कोई बड़ी बात है। यदि पच्चीस लाख लोग इस बार पलटी खा गये तो नेताजी का प्रधानमंत्री का सपना केवल सपना बनकर रह जाएगा। यह उस समय और भी दूर की कौड़ी बन जाएगा जब पीस पार्टी मुस्लिम मतों को अपनी ओर खींचने के लिए लोकसभा सीटों पर अपने स्वतंत्र उम्मीदवार खड़े करेगी। अभी लोकसभा चुनावों में देरी है, लेकिन फिर भी बसपा की ओर लोगों में तटस्थ भाव तो पैदा हो ही गया है। यह इसलिए भी हुआ है कि 2010 में श्रीराम जन्मभूमि विवाद में आए निर्णय के समय 30 सितंबर के दिन मायावती सरकार ने प्रदेश में जो सुरक्षा व्यवस्था की थी, वह बहुत ही काबिले तारीफ रही थी।
यदि सपा की सरकार उस समय रही होती तो कुछ भी होना संभव था। प्रदेश में कांग्रेस फिर दमखम के साथ उतर रही है, जबकि भाजपा और कल्याण सिंह का एक होना भी कोई गुल खिला सकता है। पूर्वांचल में सत्ता के बनते बिगड़ते समीकरणों का प्रभाव निश्चित ही पड़ेगा। सत्ता का ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो नही कहा जा सकता लेकिन सपा की सारी योजना सफल हों यह भी नही कहा जा सकता। मुलायम सिंह यादव के बेटे व प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव एक गंभीर व्यक्ति हो सकते हैं, लेकिन एक गंभीर शासक साबित नही हो पा रहे हैं। जिससे लोग उनसे कट रहे हैं।
अभी हाल ही में फैजाबाद में हुए दंगों के दौरान शासन प्रशासन का जो दृष्टिïकोण देखने में आया उससे सपा सरकार की फजीहत ही हुई है। लोगों ने शासन प्रशासन की नीतियों में सीधे सीधे पक्षपात देखा, इससे बहुसंख्यक वर्ग में सपा के खिलाफ माहौल बना है, यदि अखिलेश सरकार बहुसंख्यकों के प्रति अपने दृष्टिïकोण को बदलने में असफल रही तो पूर्वांचल उनकी सरकार का और पार्टी का साथ छोड़ सकता है। जबकि पश्चिमांचल पहले ही उनसे एक दूरी बनाकर खड़ा है। देखते हैं मुख्यमंत्री दोनों अंचलों को अपने साथ रखने में कैसे सफल होते हैं?