क्रान्ति-दिवसः10मई.1857
डॉ0राकेश राणा
1857 का जन-विद्रोह मेरठ छावनी से क्रांतिकारी कोतवाल धनसिंह गुर्जर के नेतृत्व में शुरु हुआ। यह कोई अचानक से उभरा जनाक्रोश नहीं था। बल्कि एक सुव्यवस्थित और सुनियोजित क्रंति की शुरुआत थी। मेरठ में जिसका दायित्व तत्कालीन सदर कोतवाल धनसिंह गुर्जर के पास था। देश भर में इस विद्रोह की रणनीति झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, तातिया टोपे, नाना साहब पेशवा, हजरत महल, बहादुरशाह जफर, अहमदुल्ला, शाह गुलाम और अजीमुल्ला खां जैसे उस दौर के महानायकों बनायी थी। 1857की तारीख 31मई को एक साथ देश भर में जन विद्रोह ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ खड़ा होना था। कुछ स्थितियां ऐसी बनी कि मेरठ छावनी के सैनिकों ने 10 मई को ही इस क्रान्ति का बिगुल बजा दिया। अंग्रेंज इतिहासकार व्हाइट इस सिपाही विद्रोह का जिक्र अपनी पुस्तक में विस्तार से करते हुए लिखते है कि मेरठ के भयानक विद्रोह ने हमारी आंख खोल दी।
इससे पहले जब बंगाल के बैरकपुर में 24अप्रैल को शहीद हुए महानायक अमर देशभक्त मंगल पाण्डे ने चर्बी लगे कारतूसों के खिलाफ विद्रोह किया तो उसने देशभर के सैनिकों में रोष पैदा कर दिया था। उसी कड़ी में मेरठ छावनी स्थित रिसाले के 90सिपाहियों ने चर्बी वाले कारतूस लेने से इंकार कर दिया। जिसका परिणाम उन 90सिपाहियों की वर्दी उतरवा और हथकड़ी लगवाकर मेरठ सिविल जेल में भिजवा दिया गया। यह खबर आस-पास के इलाकों में जंगल की आंग बनकर फैल गई। मेरठ छावनी के समीप पांचली गांव के रहने वाले कोतवाल धनसिंह गुर्जर को यह बेहद नागवार गुजरा। उन्होने यह खबर अपने गांव भेजी और जेल में बंद किए गये सैनिकों को जेल तोड़कर छुडवाने की योजना बनायी। जिसके लिए कोतवाल ने ग्रामीणों से मदद की गुहार लगाई। अंग्रेंजी हकूमत को पता तक नहीं चला धनसिंह गुर्जर ने आस-पास के गांवों से हजारों ग्रामीण लडाकों की भीड़ मेरठ में जुटा ली और जेल पर हमला कर साथियों को छुड़ाने की कमान खुद संभाली।
धनसिंह कोतवाल की मंडली ने पहला धावा मेरठ की नई जेल पर बोला जहां से 839 कैदियो को मुक्त कराये जाने के प्रमाण मिलते है। जिन सबको साथ लेकर कोतवाल धनसिंह उस जेल की तरफ बढ़ा, जहां विद्रोही सैनिक कैद किए गये थे। नगर का प्रशासन खुद गुर्जर धनसिंह कोतवाल के हाथ में था। अग्रेज अफसर एक-एक कर सरेंडर करते गए कुछ को कैद कर लिया जो नहीं मिल पाए वे अपने भारतीय दोस्तों के घर में जाकर छिप गए। मेरठ से अंग्रेंजों का आंतक समाप्त करके इन क्रान्तिकारीयों का यह जत्था दिल्ली की ओर बढ़ा। जो तत्कालीन दिल्ली सल्तनत के बादशाह बहादुरशाह जफर के पास पहुंचना था। रास्ते में हिल्ड़न नदी पर अंग्रेंजो के साथ डट कर लड़ाई हुई। क्योंकि दिल्ली की ओर बढ़ने की खबर अंग्रेंज सेना को मिल गई थी। परिणाम हिंड़न नदी पर पहुंचते ही धनसिंह के नेतृत्व वाली भारतीय सैनिक मंडली और अंग्रेज सेना में मुठभेड़ हुई। भारी संख्या में नर संहार हुआ भारतीय सैनिक शहीद होते गए। इसी स्थल पर मैटृं स्टेशन का नाम शहीद स्थल रखा गया है। यह अमर शहीद कोतवाल को विनम्र श्रद्धांजलि की एक पहल है।
मेरठ गजेटियर में उस समय का प्रशासन लिखता है कि ’’मेरठ छावनी के आस-पास के गुर्जर-गांव दुस्साहसी होते जा रहे थे। उनका सहास इतना बढ़ गया था कि उनके विरूद्ध कार्यवाही आवश्यक हो गई थी।’ जिसका परिणाम यह हुआ कि मेजर विलियन ने 45 घुड़सवार 11 फौजी, 8 प्लाटून, 38वीं इन्फेन्टरी, 2 सारजेंट तथा सैनिक विशेषज्ञों को लेकर 4जुलाई 1857को मेरठ पहुंचे। वहां के आस-पास के गांवों पर हमला बोल दिया। जिस आपरेशन का मुख्य लक्ष्य कोतवाल धनसिंह गुर्जर का गांव घाट-पाचंली था। क्योंकि ब्रिटिश खुपिया विभाग सब कुछ जान चुका था कि धनसिंह कोतवाल ने इतना सहयोग और समर्थन कैसे पा लिया। प्रातः चार बजे इन गांवों को घेर लिया गया और ग्रामीणों को बेरहमी से मार डाला गया। 46 लोगों को कैद कर लिए गया। जिसमें से 40 को वहीं सरेआाम पूछताछ कर फांसी दे दी गयी। पूरे गांव को चलते हुए अंग्रेज सिपाहीयों ने आग के हवाले कर दिया चारों ओर से।
पांचली गांव के निवासी धनसिंह कोतवाल थे इसलिए यह गांव ब्रिटिश हुकुमत की काली-सूची में सबसे उपर था। निरन्तर इस गांव को टारगेट बनाकर आपरेशन जारी रहे। बाद तक भी पांचली गांव के ग्रामीणों को फांसी दी गई। बहुत से लोगों को गोलियों से उड़ाया दिया गया। पूरे गांव की जमीन और सम्पत्ति जब्त कर ली गई। आजादी के बाद ग्रामीणों ने संयुक्त प्रयास कर अपनी सम्पत्ति के लिए गुहार लगाई। जिसकी सुनवायी प्रधानमंत्री श्रीमति इन्दिरा the के कार्यकाल तक चलती रही। सरकार के हस्तक्षेप से पांचली के ग्रामीणों की जमीन शहीदों का वारिसों को वापिस मिल पायी।
मेरठ विद्रोह की यह सुनियोजित योजना निश्चित रुप से किसी दीर्घगामी कार्यक्रम का हिस्सा थी। गुर्जर धन सिंह कोतवाल सरकारी विभाग में होने के बावजूद देश के बड़े क्रांतिकारी समूहों के सम्पर्क में थे। उस समय की कई रिपोर्टस भी ऐसा संकेत देती है कि मेरठ क्षेत्र में इन दिनों कोई बाहर से पधारे साधु महोदय सक्रिय थे। वहीं क्रान्तिकरियों को धन सिंह कोतवाल इतने बडे स्तर पर बहुत कम समय में कैसे जुटा लेते है। निश्चित रुप से 10मई, 1857 का जन विद्रोह मेरठ से शुरु होना, एक पूर्व निर्धारित योजना का हिस्सा था। नवम्बर 1858में मेरठ के कमिश्नर की सरकारी रिपोर्ट में कहा गया कि मेरठ छावनी में ’चर्बी लगे कारतूसों की बात जानबूझ कर बड़ी सावधानी पूर्वक फैलाई गई थी’। रिपोर्ट में अयोध्या से मेरठ पधारे उस साधु के स्वामी दयानंद होने का शक जाहिर किया गया।
मेरठ का 10मई,1857 का विद्रोह सदर कोतवाल धनसिंह गुर्जर के नेतृत्व में शुरु हुआ। कोतवाल ही इस जन क्रांति के जन नायक और असली सूत्रधार थे। धनसिंह कोतवाल का विद्रोह नियोजन, बड़ी संख्या में मेरठ के आस-पास के ग्रामीणों का इस बगावत को सहयोग मिलना, प्रशासनिक पद पर धनसिंह की मौजूदगी के बावजूद ब्रिटिश अधिकारियों से सीधे लोहा लेना, एक सैन्य टुकड़ी के साथ दिल्ली की ओर कूच करना और क्रांति के बड़े नायकों से अखिल भारतीय स्तर पर सम्पर्कित रहना, यह तमाम तथ्य कोतवाल धनसिंह गुर्जर को आजादी की अलख जगाने वाली इस पहली जन-क्रांति का महानायक मानते है।
लेखक समाजशास्त्री है।