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धर्म-अध्यात्म

जब समझ आ गई नारद मुनि को भगवान की माया

(पौराणिक कथा)

अमृता गोस्वामी

ब्रह्माजी की इच्छा थी कि उनका पुत्र नारद उनकी रचाई सृष्टि में वैवाहिक जीवन व्यतीत करें किन्तु नारद जी की आसक्ति संसारी बनने की नहीं थी, उन्हें तो ऋषि-मुनियों वाला जीवन पसंद था। उन्होंने पिता की बात नहीं मानी जिससे क्रोध में आकर ब्रह्माजी ने नारद को आजीवन अविवाहित रहने का श्राप दे दिया।

देवर्षि नारद जयंती प्रति वर्ष ज्येष्ठ माह में कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाई जाती है। देवर्षि नारद का नाम सभी लोकों में माननीय है। जैसा कि पुराणों में वर्णित है नारद मुनि ब्रम्हाजी के मानस पुत्र थे, एक लोक की खबर दूसरे लोक तक पहुंचाने में उनकी अहम् भूमिका रही है। देवी-देवता हों, मुनिजन या देत्यगण, प्रत्येक लोक में नारद मुनि का सम्मान था, वे सबके प्रिय थे।

शास्त्रों के मुताबिक ब्रह्माजी की इच्छा थी कि उनका पुत्र नारद उनकी रचाई सृष्टि में वैवाहिक जीवन व्यतीत करें किन्तु नारद जी की आसक्ति संसारी बनने की नहीं थी, उन्हें तो ऋषि-मुनियों वाला जीवन पसंद था। उन्होंने पिता की बात नहीं मानी जिससे क्रोध में आकर ब्रह्माजी ने नारद को आजीवन अविवाहित रहने का श्राप दे दिया। कथाओं के अनुसार देवर्षि नारद ने धर्म के प्रचार प्रसार तथा लोक कल्याण हेतु जिन्दगी भर एक लोक से दूसरे लोक में संदेश वाहक का काम किया, वे देवताओं के दूत बनकर उन्हें अन्य लोकों की कथा-व्यथा श्रवण कराते थे और कई बार तो देवताओं से तर्क संगत प्रश्न कर सृष्टि की समस्याओं का हल भी उनसे करा लिया करते थे।

एक लोक से दूसरे लोक की परिक्रमा करते हुए नारद जी ने सूचनाओं का आदान-प्रदान करने का काम बखूबी निभाया। वे सभी लोकों में इधर-उधर घूमते रहते थे जिसके पीछे भी एक कथा कही जाती है। कहा जाता है कि राजा दक्ष की पत्नी आसक्ति से उनके 10 हजार पुत्रों का जन्म हुआ था लेकिन नारद जी ने उनके सभी 10 हजार पुत्रों को मोक्ष की शिक्षा का पाठ पढ़ाकर राजपाट से उनका मोह भंग कर दिया जिससे नाराज होकर राजा दक्ष ने नारद जी को श्राप दिया था कि स्वयं नारद भी ज्यादा समय तक एक जगह नहीं रह पाएंगे, बल्कि यहां वहां घूमते रहेंगे।

अपनी कठोर तपस्या और ज्ञान से नारद जी ने देवलोक में ब्रम्हऋषि का पद प्राप्त किया हुआ था वे भगवान विष्णु के परम भक्त थे और भगवान विष्णु के अत्यंत प्रिय भी। भक्त की पुकार उसकी पीड़ा को नारद जी भगवान विष्णु तक पहुंचा देते थे। शास्त्रों में नारद को भगवान का मन भी कहा गया है।

ब्रह्मऋषि नारद जी की आज जयंती है, इस मौके पर आइए जानते हैं उनसे जुड़ी एक पौराणिक कथा जिसमें हमारे लिए भी संदेश है कि हम भी समझ पाएं कि हम सभी जीव जिस संसार रूपी माया के मोह बंधन में बंधे हैं, वह आखिर क्या है?

बहुत सुंदर कथा है, यह प्रश्न नारद जी के मन में भी कई बार उठा कि पृथ्वी लोक पर सभी मनुष्य जिस मोह माया में बंधे है वह प्रभु की माया आखिर है क्या? एक बार नारद जी ने अपना यह प्रश्न भगवान विष्णु के साथ घूमते हुए उनसे पूछा कि भगवन! संसार की माया क्या है? जगत पालक विष्णु भगवान पहले तो नारद जी के किए इस प्रश्न को सुनकर मुस्कराए फिर एक वृक्ष के नीचे रुककर बोले- नारदजी, ब़ड़ी प्यास लगी है, पीने के लिए थोड़ा पानी तो लेकर लाओ।

नारद जी तुरंत ही भगवान की प्यास बुझाने के लिए चल दिए कमंडल लेकर पानी लाने। अभी वे थोड़ा ही दूर चले होंगे कि प्रभु की माया से उन्हें तेज नींद सताने लगी तो वे एक जगह छाया पाकर कुछ देर झपकी लेने के लिए रूके तब वहीं उन्हें गहरी नींद आ गई। सपने में नारद जी ने देखा कि वह किसी वनवासी के दरवाजे पर कमंडल लेकर पहुंचे हैं। वहां एक बहुत ही सुंदर मोहनी युवती दरवाजा खोलती है और नारद जी सबकुछ भूलकर मोहनी से बातों में समय बिताने लग जाते हैं। वह स्त्री नारद जी की बातों से आनंदित होती है और विवाह का प्रस्ताव उनके सामने रखती है। नारद जी का विवाह उस स्त्री से हो जाता है। नारद जी अपनी पत्नी के साथ अपना घर बसा कर बड़े हर्षपूर्वक दिन बिताने लगते हैं और कुछ समय पश्चात उनके उनके तीन सुंदर पुत्र भी हो जाते हैं।

समय बीतता है फिर एक दिन उनके पास ही नदी में भीषण बाढ़ आ जाती है। नारद जी की पत्नी और बच्चे बाढ़ में बहने लगते हैं। नारद जी कभी पत्नी को बचाने का प्रयास करते हैं तो कभी बच्चों को किन्तु बाढ़ का वेग इतना तेज था की नारद जी के कठिन प्रयासों के बावजूद भी वे अपनी पत्नी और बच्चे को नहीं बचा पाते और उनका घर बार सब कुछ बाढ़ में बह जाता है। यह सब देखकर नारद जी बहुत तेज-तेज रोने लगते हैं। उनका रोना इतना हृदय विदारक था कि तुरंत ही भगवान विष्णु नारद के पास पहुंचते हैं और उन्हें सोते से उठाते हैं कि हे नारद! उठो, क्या हुआ इस तरह दहाड़ें मारकर क्यों रो रहे हो। नारद मुनि हड़बड़ाकर उठते हैं, उन्हें समझ भी नहीं आता कि ये सब क्या था।

भगवान विष्णु ने पूछा-क्या हुआ! तुम तो मेरे लिए पानी लाने गए थे न। कहां है पानी?

नारद जी फिर रूदन करने लगे-पानी, देखो भगवन् पानी में मेरे पत्नी, मेरे बच्चे, मेरा घर बार सब बह गए, मैं बहुत पीड़ा में हूं।

भगवान विष्णु को नारद की बात पर हंसी आ गई। बोले-हे, नारद!, जागो, स्वयं को पहचानो, तुम मुनि नारद हो और मैं भगवान विष्णु, श्री नारायण।

प्रभु की बात से नारद जी की नींद पूरी खुलती है, वे सोचते हैं तो क्या वो सब सपना था जो उन्होंने अभी अभी देखा। भगवान विष्णु मुस्करा रहे थे। नारद जी को सब समझ आ गया- वे बोले तो यह सब आपका रचा बसा था मैं तो सब सच समझ रहा था। विष्णु भगवान बोले-हे, देवर्षि!, अब तो तुम्हें तुम्हारे सवालों का जवाब मिल गया होगा न? चलो चलते हैं।

नारद जी ने भगवान से क्षमा मांगी। उन्होंने भगवान विष्णु के चरण पकड़ लिए और बोले-प्रभु। बड़ी गजब है आपकी माया। इसमें फंसे व्यक्ति का उद्धार आप ही कर सकते हो। नारायण, नारायण!

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