निरंजन परिहार
सोनिया गांधी पैसठ की हो गई। ऊम्र का ये वो पड़ाव है, जहां हमारे देश की पैंसठ करोड़ महिलाओं में से एकाध लाख को छोड़कर चौसठ करोड़ निन्यानवे लाख महिलाएं न्यानवे के फेर में पड़ी हुई पाई जाती हैं। बेहद बूढ़ा जाती हैं। चल नहीं पाती। लाठी पकड़ लेती है और बिस्तर भी। लेकिन कांग्रेस की राजमाता बूढ़ी नहीं है। चलती है तो इतनी शान से कि हमारे देश के कई सारे मंत्रियों की जवानी उनके सामने ढ़ीली पड़ती दिखती है। और इस उमर में भी सोनिया गांधी जब खड़ी होती है, तो उनके रौबदार रुतबे के सामने देश भर के जवानों की जवानी ठिठकी नजर आती हैं। पैंसठ पार की सोनिया गांधी के चांदी जैसे चमकते चेहरे और दिए जैसी दमकती देह के आकर्षण का आलम यह है कि हमारे देश की पच्चीस पार की करोड़ों छोरियां भी पैंसठ पार की इस महिला के जैसी दिखने के ख्वाब पालती है। पर, यह सब यूं ही नहीं होता, इसके लिए अंदर से ताकतवर होना पड़ता है। कोई कच्चा पोचा होता तो हिल जाता, पर, हम सबने देखा है कि यह सोनिया गांधी की ताकत की ही कमाल था कि एफडीआई के मामले में संसद में कांग्रेस जीत गई। कांग्रेस ने भले ही ममता बनर्जी और उनकी तृणमूल कांग्रेस को उसकी औकात बता दी है और विपक्ष को भी हर तरह से हराकर अपनी यूपीए के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार को टिकाए रखने का इंतजाम कर दिया है। मगर अभी सिर्फ डेढ़ साल बचा है। सोनिया गांधी कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहती। उन्होंने चुनाव अभियान की शैली मे देश घूमने के अपने अभियान को शुरू कर दिया है। पिछले सप्ताह वे गुजरात गई। नरेंद्र मोदी को उनके दगाबाज कहनेवाले भाषण को आपने भी पढ़, सुन और देख लिया होगा। राजमाता के भाषण लिखनेवालों ने इस बार भी गड़बड़ कर दी। राजमाता की भाषण लेखक मंडली के बहुत सारे लोग अपने पुराने दोस्त हैं। इन्हीं दोस्तों की दया से कई सारे राज्यों के राजाओं और महामहिमों और देश चलानेवाले लोगों के भाषण लिखने का यह पुण्य कर्म अपन भी करते रहे हैं। सो, अपन जानते थे कि गुजरात के मामले में गड़बड़ जरूर होगी। इसलिए राजमाता के भाषण लिखनेवाले अपने मित्रों को अपन ने पहले ही चेता दिया था। पर, वे नहीं माने। गुजरात के लिए लिखे भाषण में उनने नरेंद्र मोदी को दगाबाज कहलवा ही दिया। दगाबाजी का दगा करने पर अपने दोस्तों की गलती की बात कभी और करेंगे। अपन राजमाता के पैंसठ की हो जाने का पुराण बांच रहे थे। सो, आज बात सिर्फ सोनिया गांधी की। गुजरात के बाद अब वे देश के उन राज्यों के दोरे की तैयारी में हैं, जहां कांग्रेस के जनाधार के जोर देने की जोरदार संभावनाएं हैं। वे जानती हैं कि यूपी-बिहार में मेहनत करने को कोई बहुत ज्यादा फायदा नहीं है। महाराष्ट्र में शरद पवार को साधना है। आंध्र में जगन के असर को कम करना है। ऐसे ही कुछ और प्रदेश हाथ से निकल गए, तो देश पर फिर राज करने में हजार तरह की मुश्किलें आ सकती हैं। कांग्रेस के पास श्रीमती सोनिया गांधी से बड़ा और जीत सुनिश्चित करवाने वाला दूसरा कोई भी नेता नही है और जाहिर है कि राजमाता अपनी इस महिमा को अच्छी तरह समझती हैं। और जिंदगी के पैंसठ पार के इस मजबूत मोड़ की मजबूरियां जानती हैं। इसीलिए, इसके पहले कि लोग महंगाई को मुद्दा बनाएं, खुद सोनिया गांधी मुद्रास्फीति और महंगाई की बात छेड़ देती है और लगे हाथ एफडीआई को सभी मुसीबतों का निदान बता कर एक तीर से कई निशाने भी साध लेती है। प्रधानमंत्री पद पर अपने नहीं होने की स्थिति में वे मनमोहन सिंह को देश का अब तक का सबसे काबिल प्रधानमंत्री करार दे देती है और इस चक्कर मे नेहरूजी, इंदिरा गांधी और अपने पति राजीव गांधी का नाम भी किनारे कर देती है।