केंद्र की रहमदिली पर प्रदेश भाजपा में मची घमासान , नीतीश की जय
– मुरली मनोहर श्रीवास्तव
बिहार की सियासत हमेशा से अलग तरीके की होती है। यहां एक साथ रहने वाले दल ही अपने सहयोगियों को लगातार आड़े हाथों ले रहे हैं। इस वक्त बिहार भाजपा अपने अंदरुनी कलह की शिकार है या फिर सच बोलने की होड़ लगी है और सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि इसका केंद्र बने हैं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार।
सुमो बनाम केंद्रीय नेतृत्व!
बिहार से बाहर फंस छात्रों-मजदूरों को वापस लाने के नाम पर भाजपा में दो फाड़ देखने को मिल रहा है। एक तरफ एक गूट अपने उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी की मांग पर ट्रेन चलाने का हवाला देकर उनका गुणगान कर रहा है। वहीं दूसरा गुट केंद्रीय नेतृत्व को और सूबे की सरकार के नेतृत्व की सराहना कर रहा है। जहां ट्रेन को चलाए जाने को लेकर भाजपा नेता राजीव रंजन केंद्रीय नेतृत्व और बिहार के मुख्यमंत्री की प्रशंसा कर रहे हैं, वहीं इनसे थोड़ी अलग राय रखते हुए भाजपा नेता प्रेमरंजन पटेल उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी की इसके लिए जमकर तारीफ कर रहे हैं।
नीतीश को लेकर संजय और नवल किशोर आमने-सामनेः
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल और भाजपा विधान पार्षद प्रो.नवल किशोर यादव भी सूबे की सियासत को लेकर एक दूसरे की बातों से अलग राय रखते हैं। जहां संजय जायसवाल पड़ोसी राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गुणगान कर रहे हैं उनकी कार्यशैली की तारीफ कर रहे हैं। वहीं लगातार चार बार से विधान पार्षद चुने जाते रहे और शिक्षकों के हित की हमेशा लड़ाई लड़ते रहने वाले बेबाक टिप्पणी करने वाले धाकड़ यादव नेता और विधान पार्षद नवल किशोर यादव ने अपने बयान में नीतीश कुमार को देश का सबसे बेहतर और कार्यकुशल मुख्यमंत्री करार दे दिया। इतना ही नहीं उन्होंने अपनी बातों में यह भी कहा कि जिस प्रकार देश में महामारी का असर देखने को मिल रहा है उसमें केंद्रीय नेतृत्व को संज्ञान में लेते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार काफी सुझबुझ से काम ले रहे हैं। इसलिए मुझे तनिक भी लेस नहीं और मैं उनकी तारीफ में कसीदे नहीं गढ़ रहा हूं बल्कि हकीकत को बयां कर रहा हूं। आगे उनका कहना है कि अगर संजय जायसवाल यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्य को बेहतर बता रहे हैं तो वह उनकी अपनी राय हो सकती मैं तो नीतीश कुमार के ही कार्यकाल को देख रहा हूँ, जो विषम परिस्थिति में धैर्य और संयम से काम लेते हुए बिहार की जनता के लिए लगातार काम कर रहे हैं और भाजपा इनके साथ है।
सियासी दांव पेंच से परहेज नहीः
बिहार में लगातार भाजपा नेताओं द्वारा नीतीश पर तंज कसना उनके लिए ही गले की हड्डी बनती जा रही है। या यों कहें कि कहीं ऐसा तो नहीं अपनी अलग खिचड़ी पक रही हो। हलांकि इस खिचड़ी का भाजपा को कोई खास फायदा नहीं होगा। बल्कि इसका उसको घाटा हो सकता है। अगर यकीन नहीं तो देख लिया जाए कि किसी न किसी तरीके से भाजपा के अंदर के अंतर्कलह की बू अब बाहर भी आने लगी है। एक गुट सुशील मोदी का गुणगान कर रहा है तो दूसरा गुट केंद्रीय नेतृत्व और योगी सरकार की दुहाई दे रहा है। जबकि उनके ही दल के नेता जमीनी हकीकत का हवाला देकर नीतीश कुमार की कार्यशैली को दर्शा रहे हैं। हलांकि कि नीतीश कुमार की तारीफ करना भाजपा नेताओं का लाजिमी है क्यों कि सूबे की सरकार का नेतृत्व नीतीश कुमार कर रहे हैं और बिहार में भाजपा समर्थित जदयू की सरकार है। अगर किसी भी तरीके से सूबे की सरकार पर अगर अंगूली उठती है तो यह कहीं न कहीं भाजपा में किसी दूसरी खिचड़ी पकने का भी संकेत माना जा सकता है।
विरोधी के सियासी पैंतरे को समझना होगाः
बिहार में सत्तारुढ़ दल जहां कोरोना की महामारी में लोगों को सहयोग देने का हवाला दे रही है। वहीं मजदूरों और छात्रों को बिहार वापस लाने के नाम पर राजद खुलकर बैटिंग कर रही है और महागठबंधन का उसे पूरा समर्थन भी मिल रहा है। तेजस्वी तो इतना तक कह रहे हैं कि सरकार अगर कहे तो मैं आने वाले लोगों का किराया भाड़ा दे सकता हूं वहीं कांग्रेस भी यही बातें बोल रही है। ऐसे में तो यही कहा जा सकता है कि महामारी से निपटने के साथ-साथ राजनीतिक दल अपने सियासी चाल चलने से भी बाज नहीं आ रहे हैं।
एक तरफ जहां जदयू-भाजपा-लोजपा बिहार में साथ होकर अपनी राजनीति कर रही है। वहीं इससे दो-दो हाथ करने के लिए राजद अपने एम-वाई समीकरण के साथ मजदूरों और छात्रों के परिवारों का भी समर्थन जुटाने में पूरी ताकत झोंक रही है। लेकिन इसमें सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि भाजपा अपने अंदर के कलह से बाहर नहीं निकलेगी और जदयू का पांव खिंचती रही तो आगे की राजनीति में कोई और गुल खिलने से भी कोई परहेज नहीं रह सकता है। क्योंकि बिहार में भाजपा के पास कोई तेज तर्रार नेता ऐसा नहीं है और जो हैं उनको भाजपा प्रदेश नेतृत्व आगे लाना नहीं चाहती है। आगे अगर खिले बिगड़ती है तो बिहार में सत्ता कि सियासत नीतीश बनाम अन्य हो सकता है। नीतीश कुमार जहां विकास के बूते मैदान में होंगे वहीं बिहार की विफलताओं को गिनवाकर सत्ता पर काबिज होने की फिराक में विरोधी अपनी चाल लगातार चल रहा है। भाजपा अगर आगे की राजनीति अलग करना चाहती है तो उसके दबंग और पढ़े लिखे यादव नेता को आगे करके एक तीर से दो निशाने साधने होंगे जो लालू यादव की सियासी चाल पर अपनी सियासत पर काबिज हो सके। अगर सही मायनों में देखी जाए तो बिहार में राजद और जदयू में पिछड़ों की राजनीति हावी है। इससे निपटने के लिए भाजपा को भी किसी यादव कार्ड को खेलना होगा। अगर भाजपा के यादव नेताओं की बात करें इसके पास नेता हैं मगर मैदानी जंग के लिए खास नेता जो राजद खेमे से आया हो उसको आगे करने पर विचार करना चाहिए, जो बिहार की सत्ता के लिए शब्दबेदी बाण साबित हो सकता है। या फिर रिस्क लेने की स्थिति में नहीं है तो आगे एनडीए के साथ ही चुप्पी साध कर नीतीश के साथ कमद ताल करना होगा।
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