प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ये कहकर कि गुजरात में अल्पसंख्यकों को उनका उचित हक नही मिला, और भाजपा के राज में अल्पसंख्यक सुरक्षित नही हैं, मोदी को राजनीतिक चुनावी मुद्दा दे दिया है। प्रधानमंत्री का यह बयान वास्तव में ही हैरानी पैदा करने वाला है। गोधरा कांड के बाद से ही मोदी के राज में गुजरात कभी साम्प्रदायिक दंगों में नही उलझा। सर्व सम्प्रदाय सदभाव का अच्छा माहौल बनाने में मोदी सफल रहे हैं। इस बात के कायल उनके विरोधी भी रहे हैं कि मोदी को जितना ही अधिक ‘साम्प्रदायिक पुरूष घोषित’ या प्रचारित करने का प्रयास किया गया मोदी उतने ही अधिक ‘विकास पुरूष’ बनते गये। सोनिया एक कुशल खिलाड़ी की तरह इस बात को समझ रही थीं कि मोदी के विषय में कोई साम्प्रदायिक टिप्पणी नही करनी है, इसलिए वह तो सावधान रहीं और गुजरात में ऐसा कुछ नही कहा जिसका लाभ मोदी को मिले। यहां तक कि कुछ कांग्रेसी दिग्गजों के पाला बदलने पर भी वह शांत रहीं। लेकिन संसद में मौन रहने वाले मनमोहन को चुनाव में आखिर कुछ तो बोलना ही था, इसलिए ऐसा बोल गये जिसे मोदी ने तुरंत लपका और अब कांग्रेस पर मोदी का जवाब नही बन पा रहा है। मोदी ने कहा कि प्रधानमंत्री जी! असम और दिल्ली पर सवाल क्यों नही उठाते? मैंने बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक के बीच कोई भेदभाव नही किया। मोदी के इस कथन में सत्य भी है और अपने विरोधियों के लिए आत्मविश्वास से भरी हुई एक चुनौती भी है। कांग्रेस के मनमोहन सिंह, सोनिया और राहुल गांधी की त्रिमूर्ति में संयुक्त रूप से भी मिलकर नरेन्द्र मोदी की इस चुनौती का सामना करने का साहस नही दीखता। इसलिए प्रधानमंत्री अपना वक्तव्य देकर मौन हो गये हैं। बात को आगे बढ़ाने में उन्होंने समझ लिया है कि कांग्रेस का नुकसान ही होगा। वैसे भी गुजरात में अल्पसंख्यक वर्ग के लोग भी मोदी राज में खुश हैं। उनमें से बहुत से लोग मोदी के प्रशंसक और मतदाता भी हैं। जो लोग इस बात को भली प्रकार समझते हैं कि रोटी विकास से ही मिलती है उन्हें छोटी बातों में उलछना अच्छा भी नही लगता। फिरकापरस्ती की राजनीति को लोगों ने दरकिनार कर दिया है इसीलिए नरेन्द्र मोदी का कद बढ़कर य नेता का होता चला गया है।
अब उन्हें देखकर अक्सर लोग कहने लगे हैं कि क्या इन्हें अब फिर से गुजरात की कमान संभालनी चाहिए?
बात साफ है कि लोग एक प्रदेश के मुख्यमंत्री को अब निरंतर उसी कुर्सी पर बैठे देखना पसंद नही करते हैं, लोगों की नजरों में उन्हें एक बड़ी भूमिका निभाने के लिए अपने आपको गुजरात सेे मुक्त कर लेना चाहिए। देखते हैं भाजपा उन्हें बड़ी भूमिका के लिए कब गुजरात से बाहर निकालेगी?