आरक्षण देश में जातीय विद्वेष फैलाने का हथियार बनता जा रहा है। बसपा प्रोन्नति में आरक्षण संबंधी 117वें संविधान संशोधन संबंधी विधेयक को यथाशीघ्र संसद से पास करानी चाहती है तो सपा उसका विरोध करते हुए मैदान में जमकर खड़ी हो गयी है। उत्तर प्रदेश के अठारह लाख कर्मचारी इस विधेयक के विरोध में हड़ताल पर चले गये हैं। जबकि आरक्षण समर्थक भी मैदान में आकर नारेबाजी कर रहे हैं।
देश में भाईचारा कायम करना राजनीति का उद्देश्य होता है, लेकिन भारत की राजनीति आरंभ से ही अप
जिस जातीय विद्वेष भावना को हमें समाप्त कर देना चाहिए था उसे हमने आरक्षण के नाम पर और भी प्रोत्साहित किया। स्कूल कालेजों के छात्र छात्राओं के लिए जाति इतना प्रचलित व परिचित शब्द हो गया है कि आय जाति के प्रमाण पत्र बनवाने के लिए जब उन्हें तहसीलों के चक्कर काटने पड़ते हैँ तो उसी समय एक दूसरे छात्र से उनका परिचय एक मानव के रूप में नही बल्कि एक जाति विशेष के व्यक्ति के रूप में होता है। हमारा छात्र वर्ग एक दूसरे केा अमुक जाति विशेष का मानता है। वह न तो उन्हें भारतीय मानता है और ना ही मानव। इस प्रकार हमारी भारतीयता और मानवता इस जातिवादी पहचान के नीचे कही दब गयी है उस परिस्थिति में भी हम भारत में सभ्य समाज की स्थापना का संकल्प पता नही कैसे ले रहे हैं?
आरक्षण का विरोध करने या समर्थन करने का प्रश्न नही है, बल्कि एक स्वस्थ समाज की संरचना के लिए स्वस्थ बहस की आवश्यकता है। समाज के जिम्मेदार लोग सामने आयें और विचार करें कि जातिगत आरक्षण कितना उचित है? साथ ही ये भी कि जो व्यक्ति एक बार आरक्षण का लाभ पा चुका है क्या उसे पीढ़ी दर पीढ़ी आरक्षण देते रहना अन्य अभ्यर्थियों को पीछे धकेलने के समान नही है? एक तरह से देखा जाए तो जो लोग आरक्षण प्राप्त करके लाभ ले चुके हैं वो आरक्षण को अन्य पात्र लोगों से छीनकर उस पर अपना एकाधिकार स्थापित करना चाहते हैं। प्रोन्नति में आरक्षण की बहस पर इस तथ्य को दृष्टिï में रखा जाना आवश्यक है। मामले को हिंसक बनाने की या घृणा उत्पन्न करने वाला बनाने की आवश्यकता नही है बल्कि उचित और सुपात्र लोगों के लिए रास्ता खोलने और उनके प्रति सहृदयता दिखाने की आवश्यकता है। सच को झूठ के शोर में दबाकर मारने की नीति से किसी का लाभ नही होने वाला। इसलिए ऐसी ओच्छी हरकतों से बात आकर सही निर्णय लेने का प्रयास करना चाहिए।
प्रोन्नति में आरक्षण से सामाजिक विसंगतियां और फैलेंगी। आर्थिक आधार पर न्याय पूर्ण राजनैतिक संरक्षण दिया जाना प्रत्येक निर्धन परिवार के लिए और निर्धन व्यक्ति के लिए आवश्यक है। इस न्यायपूर्ण सत्य को स्थापित करना समय की आवश्यकता है, और यही संविधानिक व्यवस्था के अनुरूप हमारे लिए उचित होगा।