चर्म चक्षुओं से अज्ञान का पर्दा तो हटाना ही पड़ेगा
गीता के 11 अध्याय में अध्याय में श्रीकृष्णजी ने अर्जुन को स्पष्ट किया कि ये जो हमारे चर्मचक्षु हैं ना-ये हमें इस भौतिक संसार को ही दिखाते हैं और हम ये मान बैठते हैं कि वह दिव्य शक्ति परमात्मा कोई और है, और यह संसार कुछ और है। जबकि इस संसार के रूप में ही उस परमात्मा के दर्शन करने का अभ्यास हमें करना चाहिए। ऐसा ही मानना चाहिए। तब प्रत्येक साधक को उस परमात्मा के दर्शन करने की दिव्य दृष्टि अपने आप ही प्राप्त हो जाएगी।
जब अर्जुन की चर्म चक्षुओं से अज्ञान का पर्दा हटा तो उसे पता चला कि यह संसार परमात्मा का ही विराट स्वरूप है। उसे पता चल गया कि संसार का जो भी तामझाम उसे दिखायी दे रहा है-वह परमात्मा की दिव्य सत्ता के सहारे चल रहा है उसी पर टिका है।
ऋग्वेद (3 -38-4) में ‘विश्वरूपो अमृतानि तस्यौ’- कहकर और ऋग्वेद (3 -55-19) में ‘देवस्त्वष्टा विश्वरूप: पुयोष’- कहकर उस परमात्मा को विश्वरूप कहा गया है।
अब आते हैं श्रीकृष्णजी द्वारा अर्जुन को विश्वरूप दिखाने की उनकी कला पर। वास्तव में यह उनकी संकल्पशक्ति ही थी-जिससे वह अर्जुन को अपने साथ बांध पाये। जब अर्जुन किसी भी युक्ति से युद्घ के लिए तैयार नहीं हुआ तब श्रीकृष्णजी को कुरूक्षेत्र का रणांगन ही विशाल श्मशान के रूप में उसे दिखाना अनिवार्य हो गया था। संसार में साधारण लोग जब किसी के हांकने से भी उसके साथ नही चलते तो उस समय विवेकशील लोग अपनी कोई विशेष प्रतिभा या संकल्पशक्ति का प्रदर्शन करते हैं। कोई वक्ता जब देखता है कि उसके वक्तव्य के दौरान लोग शोर कर रहे हैं या उसे ध्यान से सुन नहीं रहे हैं-तब वह उन्हें अपने साथ बांधने के लिए अपने भीतर ओज पैदा करता है और अपनी ओजस्वी वाणी के माध्यम से जब वह तर्कपूर्ण वक्तव्य की झड़ी लगाता है तो सभा शान्त हो जाती है।
तब सारी सभा का ध्यान उस वक्ता की ओर लग जाता है । सभा के लोग अर्जुन की भांति सारी युक्तियां भूल जाते हैं और सारी छक्कड़ी भूल जाते हैं- वे उस वक्ता को मंत्रमुग्ध हो सुनने लगते हैं। तब वह जैसे चाहे उन्हें नचा सकता है, जिन लोगों के भीतर ऐसी कला होती है-वे बिगड़े हुए ‘अर्जुन’ को सीधा कर लेते हैं। सारा देश उनके साथ हो लेता है और कभी-कभी तो सारा संसार ऐसी महान विभूति के पीछे लग लेता है।
ऐसा पवित्र गीता ग्रंथ हमें बहुत कुछ सीखने के लिए देता है । यहां पर संक्षेप में हम गीता के मर्म पर विचार कर रहे हैं । कुछ प्रश्न यहां पर हम रख रहे हैं , उनका संक्षिप्त उत्तर प्रस्तुत कर रहे हैं । उन्हें हमें विचार मोती के रूप में हृदयस्थ करना चाहिए और समझना चाहिए कि श्री कृष्ण जी कैसी महान विभूति थे ? – जिन्होंने बहुत सारे गूढ़ रहस्यों को रण के बीच खड़े होकर अर्जुन को समझाने का प्रयास किया ?
‘ज्ञानीजन पंडित किसको कहते हैं ? ‘
‘जिसका समस्त कर्म ज्ञानाग्नि में भस्म हो गया हो।’ ‘मनुष्य का मित्र अथवा शत्रु कौन है ? ‘
‘स्वयं ।’
‘फल की इच्छा रखने वाले का स्वरूप क्या है ? ‘
‘कृपण ।’
‘स्थित प्रज्ञ कौन हैं ?’
‘जो सभी इच्छाओं को त्यागकर अपने आप में स्थित हो जाता है।’
‘बुद्धि नाश का परिणाम क्या है ? ‘
‘स्वयं का नाश।’
‘शांति किसे मिलती है ?’
‘भोग की इच्छाओं का परित्याग करने वाले को।’
‘निष्काम कौन हैं ?’
‘जो आत्मा में रमण करता है।’
‘विना शास्त्र कथन के प्रमाण को क्या कहते हैं ?’
‘बुद्धि भेद ।’
‘जिसे प्रकृति के कर्म का ज्ञान न हो वह कौन है ?’
‘जो कहता है कि मैं करता हूं ।’
‘अधिक खाने वाले महापापी का और ज्ञानियों का बैरी कौन है ?’
‘काम ।’
‘चार प्रकार के वर्ण क्यों बनाए गए ? ‘
‘गुण और कर्म के आधार पर ।’
‘ज्ञानी जन किसे ज्ञान का उपदेश देते हैं ?’
‘विनम्र स्वभाव वाले जिज्ञासु को ।’
‘किसका जीवन व्यर्थ है ? ‘
‘भोगों में रमण करनेवाले का श्रद्धावान को क्या मिलता है ? ‘
‘ज्ञान ।’
‘कौन प्राणी कर्म के फल से मुक्त होना चाहता है ?”
‘असंग ब्रह्मनिष्ठ।’
‘योगी लोक कर्म क्यों करते हैं ? ‘
‘अंतःकरण शुद्धि के लिए ।’
‘प्राणी किससे मोहित होता है ?’
‘अज्ञान द्वारा ।’
‘योग किसे कहते हैं ?’
:समत्व भाव को ।’
‘प्राणी को दुख देने वाला कौन है ?’
‘भोग ।’
‘मन को कैसे वश में किया जा सकता है ?’
‘अभ्यास और वैराग्य से ।’
‘आत्मा और शरीर का क्या संबंध है ? ‘
‘धागों में मनके की तरह ।’
‘श्री कृष्ण ने गीता में क्षेत्र किसको कहा है ?’
‘शरीर को ।’
‘ओ३म क्या है ? ‘
‘अविनाशी ब्रह्म ।’
‘अंतकाल में ओ३म का उच्चारण करने से क्या होता है ? ‘
‘कल्याण ।’
‘परमात्मा प्राप्ति का फल क्या है ? ‘
‘देह से मुक्ति ।’
‘किनके योगक्षेम में ईश्वर सहायता करते हैं ?’
:जो ईश्वर का अनन्य भाव से भजन करते हैं।’
‘कर्म योग कर्म संदाय में कौन श्रेष्ठ है ?:
‘कर्म योग ।’
‘कौन पुरुष संसार बंधन से मुक्त हो सकता है ?’
‘राग द्वेष रहित ।’
‘पंडित कैसे होते हैं ?’
‘समदर्शी ।’
‘ब्रह्मज्ञानी की क्या पहचान है ? ‘
‘हर्ष शोक से रहित ।’
‘ऊर्ध्व सत्व प्रधान मनुष्यों की क्या गति होती है ?’ ‘ऊर्ध्व गति।’
‘रजोगुण प्रधान मनुष्यों की क्या गति होती है ? ‘
‘मध्यम ।’
‘तमोगुण प्रधान मनुष्यों की क्या गति होती है ?’ ‘अधोगति ।’
‘ईश्वर का विराट रूप देखने के लिए क्या चाहिए ?’ दिव्य दृष्टि ।
महर्षियों में भगवान का स्वरूप कौन है ?
‘भृगु ऋषि ।’
‘संसार वृक्ष की जड़ कहां हैं ? ‘
‘ऊपर की ओर।’
‘संसार वृक्ष के पत्ते क्या हैं ?’
‘वेद ।’
‘वह स्थान बताओ जहां जाकर के संसार में फिर आना नहीं पड़ता ?’
‘भगवत का धाम ।’
‘गीता के अनुसार अन्न कितने प्रकार के होते हैं ?’
‘भक्ष्य , भोज्य ,लेह्म, चोष्य।’
‘ईश्वर सब प्राणियों में कैसे रहते हैं ?’
‘समभाव से ।’
‘कल्याण की कामना करने वाले प्राणी को क्या करना चाहिए ? ‘
‘सर्वस्व ईश्वर को अर्पण।’
‘मनुष्य शरीर की सार्थकता क्या है ? ईश्वर का भजन करना ।’
‘रजोगुण का स्वरूप कैसा है ? ‘
‘रागात्मक एवं कर्मफल बंधन ।’
देवेंद्रसिंह आर्य
चेयरमैन : उगता भारत