शांता कुमार
गतांक से आगे……
उनका कहना है कि वे रास्ते के कांटों को हटा रहे हैं। स्वयं लोकमान्य तिलक ने इसी प्रकार की एक सभा के अध्यक्ष पद से कहा-कहा शिवाजी ने अफजल खां को मारकर कोई पाप किया? उसका उत्तर गीता में मिल सकता है। यदि चोर हमारे घर में घुस आए और हममें उसे पकडऩे की शक्ति न हो तो हम बाहर से किवाड़ बंद कर, उसे जिंदा जला डालें, यही नीति है। ईश्वर ने विदेशियों को भारत के राज्य का पट्टा लिखकर नही दिया। शिवाजी ने जो कुछ किया, वह यही था कि उन्होंने अपनी जन्मभूमि पर से विदेशियों की शक्ति हटाने की चेष्टा की। अपनी दृष्टि को संकुचित मत बनाओ। भारतीय दंड विधान से यह सबक मत लोग कि क्या करना चाहिए और क्या नही। इसके विपरीत भगवदगीता के भव्य वायुमंडल में चले जाओ और महापुरूर्षों के आचरण से शिक्षा लो। इस प्रकार पूना भीतर ही भीतर किसी विप्लव यज्ञ की तैयारी कर रहा था।
उधर रैण्डशाही अपना ताण्डव नृत्य करने लगी। इधर लोकमान्य के नेतृत्व में कुछ नवयुवकों ने एक योजना पर विचार किया। पूना में रैण्ड के भीषण अत्याचारों से छुटकारा पाने के लिए अब कोई रास्ता न रहा था। अत: नवयुवकों ने इस नरपिशाच रैण्ड की हत्या करने की योजना बनाई। इस योजना के लिए धन आदि लोकमान्य ने जुटाया। दामोदर हरी चाफेकर को इस पुण्य कार्य के लिए चुना गया। दामोदर की आयु उस समय 27 वर्ष की थी। वह विवाहित था। उसके एक संतान भी थी। उसी ने कुछ वर्ष पूर्व अपने भाई के सहयोग से हिंदू संरक्षण सभा बनाई थी। वह शरीर से बड़ा बलवान था। उसकी प्रारंभ में इच्छा सेना में भर्ती होने की थी, पर अंग्रेज उन दिनों पूना के ब्राहमणों को बड़ा खतरनाक समझते थे। उसे भरती न किया। दामोदर को अपनी इच्छा के विरूद्घ पिता के साथ कीर्तन, भजन के कामों लगना पड़ा। इसने तिलकजी से भी अपनी इच्छा प्रकट की थी। उन दिनों प्रसिद्घ देश भक्त श्यामजी वर्मा उदयपुर रियासत के दीवान थे। तिलक जी से इनका अच्छा संबंध थे। तिलक जी ने श्याम जी के नाम एक पत्र देकर दामोदर को वहां भेजा था ताकि रियासत की सेना में उसे स्थान मिल सके। परंतु किन्हीं कारणों से तब तक श्याम जी त्यागपत्र देकर पद से जुदा हो गये थे। इस प्रकार चाफेकर की इच्छा पूरी न हो सकी। परम पिता परमेश्वर किसी महान कार्य के लिए उसे शायद पूना में ही रखना चाहते हों। अंत में एक क्लब बनाकर, उसमें नवयुवकों को देश भक्ति का पाठ पढ़ाना आरंभ किया। इसी चाफेकर को रैण्ड की हत्या के लिए नियुक्त किया गया।
22 जून को महारानी विक्टोरिया का राज्याभिषेक दिवस मनाया जा रहा था, रैण्ड की हत्या द्वारा अंग्रेजी साम्राज्य की छाती पर प्रहार करने के लिए इस दिन से बढ़कर और सा दिन उपयुक्त हो सकता था। 22 जून को मंगलवार पड़ता था। उस दिन गवर्नमेंट हाउस में बड़ा समारोह था। पूना की जनता तो प्लेग से त्रस्त हो, भूखों मर रही थी और ये जनता के हुक्मरान ऐश परस्ती में मस्त थे। रैण्ड को दण्ड देने के लिए यही अवसर उपयुक्त समझा गया।
उस दिन प्रात:काल दामोदर चाफेकर ने अपने आराध्य इष्टï के सामने जाकर कार्य में सफलता का वरदान मांगा। वह उसे एक धार्मिक पवित्र कार्य समझता थ। अत: उस दिन उसने पूरा व्रत रखा। कारतूस से लैस होकर, अपने भाई बालकृष्ण चाफेकर व एक और मित्र भिड़े को लेकर निश्चित स्थान पर पहुंच गया। भिड़े बड़ा व्यवहार-कुशल व्यक्ति था। रैण्ड के समारोह में शामिल होने व वापस आने के समय आदि की संपूर्ण जानकारी वह सरकारी दफ्तर में जाकर ले आया था। दोनों चाफेकर भाई गणेश खिड़ की सड़क पर घूमने लगे। भिड़े उन्हें सूचना देने पर नियुक्त था।
आधी रात के समय समारोह समाप्त हुआ। रैण्ड अपनी बग्घी पर लौट रहा। उसकी बग्घी गवर्नमेंट हाउस के मुख्य द्वार से निकलकर 500 कदम ही आगे बढ़ी होगी कि झाडिय़ों में से छलांग मारकर दामोदर बग्घी के पिछले भाग पर चढ़ गया और रैण्ड की पीठ पर पिस्तौल की गोली चला दी। वह नर पिशाच बेहोश होकर गिर पड़ा। दामोदर अपना काम करके भाग आया। उसके पीछे ही एमहस्र्ट भी अपनी बग्घी में आ रहा था। उसने पिस्तौल की गोली की आवाज तो सुनी, पर सोचा, शायद किसी ने पटाखा चलाया है। उसकी पत्नी ने किसी नाटे कद के व्यक्ति को अगली बग्घी में गोली मारते देखा था। पर इससे पूर्व कि वह अपने पति को यह बता सके, दामोदर के छोटे भाई बालकृष्ण ने पीछे से चढ़कर गोली मार दी। गोली सीधी एमहस्र्ट के मस्तिष्क में लगी। वह अपनी पत्नी की गोद में लुढ़क गया। चारों ओर से हाहाकार, चीत्कार मच गया। राज्याभिषेक के उल्लास व प्रसन्नता के अवसर पर पूना के इतने बड़े अधिकारी का कत्ल! लोगों दांतों तले उंगली दबाने लगे। ”कत्ल….पकड़ो….भागो…..” की आवाज से रात्रि का सूना वातावरण मुखर हो उठा। रोने चिल्लाने की आवाजें आने लगीं। बालकृष्ण भी भाग गया। अंग्रेजी साम्राज्य के दो प्रतिनिधियों की खून में लथपथ लाशें धरती पर पड़ी थीं। एमहस्र्ट ने तो उसी समय दम तोड़ दिया। रैण्ड अस्पताल में जाकर 11 दिन के बाद मरा।
इस घटना के दस मिनट बाद लोकमान्य तिलक को एक संदेश मिला था। उसमें कहा था-काम झाले अर्थात काम हो गया। चारों ओर नगर में आतंक छा गया। रैण्डशाही से पहले ही जनता भयग्रस्त थी। अब तो कोई भी अपनी वाणी नही खोलता था।
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