कोरोना (corona) से लड़ने के लिए दुनिया की बड़ी आबादी क्वारंटाइन (quarantine) में रह रही है. बेहद जरूरी कामों के लिए बाहर निकलने वाले सोशल डिस्टेंसिंग (social distancing) रख रहे हैं. 21वीं सदी में वायरस से बचा रहा ये तरीका असल में लगभग 700 साल पुराना है. तब भी लोग काला अजार (black death or plague) बीमारी से बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग रखते थे.
दुनियाभर में कोरोना संक्रमण से अब तक 31 लाख 30 हजार से ज्यादा लोग प्रभावित हो चुके हैं, जबकि 2 लाख 15 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं. संक्रमण का आंकड़ा तेजी से बढ़ने के बीच वैज्ञानिक सोशल डिस्टेंसिंग पर जोर दे रहे हैं ताकि संक्रमण की तेजी में कमी आए. इस बीच दवा खोज पाने की उम्मीद की जा रही है. कोरोना से बचाव में जिस सोशल डिस्टेंसिंग शब्द को अब बच्चा-बच्चा समझने लगा है, वो नई खोज नहीं, बल्कि 1348 के दौरान ही ये प्रचलित हो चुका था.
ऐसे हुई थी शुरुआत
शुरुआत होती है साल 1347 के अक्टबूर से, जब 12 जहाज इटली के सिसली बंदगाह पर लगे. जहाज पर गए लोगों के परिवार उनके इंतजार में किनारे खड़े थे. जब तट पर लगने के काफी देर बाद तक जहाज से कोई नहीं उतरा तो नीचे इंतजार में खड़े लोग ऊपर पहुंचे. वहां का नजारा देखते ही चीखें निकल गईं. जहाज पर लाशों का ढेर लगा था. कुछेक लोग ही जिंदा थे. उन्हें उठाकर लाया गया और ठीक होने का इंतजार शुरू हुआ.
मरते हुए लोग काले पड़ने लगे
जिंदा बचे लोगों की हालत भी ठीक नहीं थे, उनके शरीर पर गिल्टियां बनी हुई थीं, जिनसे पस (मवाद) और खून बह रहा था. वे लोग तो ठीक नहीं हुए, बल्कि उनकी देखभाल कर रहे लोग भी बीमार होने लगे. अगले 5 सालों में उन 12 जहाजों के कारण यूरोप में 20 मिलियन से भी ज्यादा जानें गईं. मौतों का ठीक आंकड़ा अब तक बताया नहीं जा सका लेकिन माना जाता है कि इसकी वजह से एक तिहाई यूरोपियन आबादी की मौत हो गई. बीमारी इतनी घातक थी कि उसे ब्लैक डेथ या हिंदी में कालाजार कहा जाने लगा. यानी काला बुखार. इसमें मरीज का शरीर रोग की गंभीर अवस्था में काला पड़ने लगता था. बाद में इसे ब्यूबौनिक प्लेग (Bubonic Plague) नाम दिया गया.
बीमारी की शुरुआत चीन से हुई, जहां व्यापार के लिए इटली के जहाज पहुंचे थे. जहाज के इटली पहुंचने पर मिलान और वेनिस जैसे शहरों से फैलते हुए 8 महीनों में बीमारी इटली, स्पेन, इंग्लैंड, फ्रांस, ऑस्ट्रिया, हंगरी, स्विट्जरलैंड, जर्मनी, स्कैन्डिनेविया और बॉल्टिक पहुंच चुकी थी. तब वैज्ञानिकों को वायरस या बैक्टीरिया जैसे टर्म नहीं पता थे लेकिन ये समझने में देर नहीं लगी कि बीमारी इंसानों से इंसानों में भी फैल रही है.
सोशल डिस्टेंसिंग की शुरुआत
इसी के साथ प्रभावित यूरोपियन देशों में सोशल डिस्टेंसिंग की शुरुआत हो गई. Oxford Brookes University में आधुनिक यूरोपियन हिस्ट्री के प्रोफेसर Jane Stevens Crawshaw के मुताबिक इतने सालों पहले भी वे लोग समझ चुके थे कि बीमारी एक से दूसरे में छूने से, संक्रमित सामानों को छूने या संक्रमित सतह के संपर्क में आने से भी फैल सकती है. इसी वजह से उन्होंने लोगों को संपर्क से बचने की सलाह दी.
नियम जारी हुआ
सबसे पहले यूरोप का Dubrovnik (तत्कालीन Adriatic port city of Ragusa) पहला क्षेत्र था, जहां दूसरे देशों से लौटे जहाज के नाविकों समेत सैलानियों को भी क्वारंटाइन में रहना अनिवार्य कर दिया गया. इसके दस्तावेज भी मिलते हैं. साल 1377 के 27 अक्टूबर को शहर की मेजर काउंसिल ने एक नियम जारी किया, जिसके तहत प्लेग प्रभावित क्षेत्रों से लौटे जहाजों को तब तक शहर के भीतर आने की इजाजत नहीं थी, जब तक वे एक महीना अलग-थलग न गुजार लें.
टापू पर रहते थे लोग
क्वारंटाइन रहने के लिए बाकायदा एक शहर निश्चित हुआ था. Mrkan नामक इस द्वीप पर आम लोगों की आवाजाही सख्त मना था और यहां क्वारंटाइन में रह रहे लोग ही होते थे. Expelling the Plague: The Health Office and the Implementation of Quarantine नामक दस्तावेज में इसका सिलसिलेवार जिक्र मिलता है. इसकी लेखिका Zlata Blazina Tomic के अनुसार क्वारंटाइन के इस तरीके से प्लेग की दर में काफी कमी आई. ये देखते हुए पक्का कर दिया गया कि दूर देशों से आए जहाजों या प्लेग प्रभावित पास के शहरों से आए लोगों को भी 1 महीने अलग रहना होगा. इस दौरान देखा जाता था कि उनमें बीमारी का कोई लक्षण तो नहीं.
आज का क्वारंटाइन, इटली के शब्द क्वारंटिनो से उपजा है, जिसका अर्थ था 40 दिनों का एकांत
मां बनने के बाद भी 40 दिनों का क्वारंटाइन
पहले ये आइसोलेशन पीरियड 30 दिन था, जिसे trentino कहा जाता था. बाद में Y को ये इजाजत मिल गई कि वे खास हालातों में इसे बढ़ाकर 40 दिन भी कर सकते हैं. आज का क्वारंटाइन, इटली के शब्द क्वारंटिनो से उपजा है, जिसका अर्थ था 40 दिनों का एकांत. प्रोफेसर Stevens Crawshaw का मानना है कि बाद में यही क्वारंटाइन पीरियड दूसरे मामलों में भी दिखने लगा, जैसे बच्चे के जन्म के बाद 40 दिनों तक मां को अलग रखा जाना.
क्या है काला अजार
वैसे 19वीं सदी में फ्रेंच वैज्ञानिक Alexandre Yersin ने पता लगाया कि काला अजार या ब्लैक डेथ क्या है. येरसीनिया पेस्टिस नामक बैक्टीरिया के संक्रमण से होने वाली ये बीमारी दो तरह की होती है- न्यूमॉनिक और ब्यूबॉनिक. ब्यूबॉनिक प्लेग चूहों के शरीर पर पलने वाले पिस्सुओं के काटने की वजह से फैलती है. साथ ही संक्रमित के शरीर से निकले द्रव्य को छूने से भी ये बीमारी फैलती है. इसमें लिम्फ ग्रंथियों में सूजन आ जाती है और शरीर में गिल्टियों के साथ तेज बुखार आता है. न्यूमॉनिक प्लेग की वारदातें अपेक्षाकृत कम होती हैं, लेकिन इस बीमारी में सांस लेने में तकलीफ होती है और खांसी आती है. दोनों ही बीमारियों में समय पर इलाज न मिलने पर मौत की दर 90 प्रतिशत से भी ज्यादा रहती है. ( साभार )