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दामिनी तुम देश की बेटी बन गयी हो।
दुष्टाचारी पापाचारी के सामने तन गयी हो।।
तुम्हारे नाम से बहुत सी बहनों को मिलेगा सम्बल।
तुम्हारी चिता से निकला चिंतन मचा गया है हलचल।।
पर आज ही के अखबार में आयी है एक खबर।
एक शिक्षिका तुम्हें श्रद्घांजलि देने पहुंची जंतर मंतर।।
एक पुलिस वाले की पड़ गयी उस पर नजर।
उसे पकड़ा और हवालात में किया बंद नजर।।
उस अशोभनीय दानव ने वहां किया उसका उत्पीडऩ।
तुम्हारी आत्मा चीख उठी! दुष्टो बंद करो ये भाषण।।
तुम मेरी लाश पर झूठे आंसू बहाने वालो, तनिक सुनो।
तुम केवल नाटक करते हो, मेरी पीड़ा के मोती चुनो।।
एक द्रोपदी का चीरहरण तुमने मौन होकर देखा था।
उसका परिणाम कुरूक्षेत्र के रण में तुमने देखा था।।
सोचो, तुम्हारे मौन से आज कितनी द्रोपदी आतंकित हैं?
कितनी दामिनियों का यहां जन्म तक लेना आशंकित है?
द्रोपदी को जन्म तो लेने दिया गया था पर आज क्या है?
आज तो जन्म पर भी पहरा है उस पर तुम्हें लाज क्या है?
मेरे प्रश्न पर पहले विचार कर, नया साल मनाना।
मैं आऊंगी अगले वर्ष इसी दिन, उत्तर मुझे सुनाना।।
मैं देखूंगी तुम कितने जागे हो, और कितने संभले हो?
कुछ आगे बढ़े हो यहां वही खड़े हो जहां से चले हो?
तुम आगे नही बढ़े तो याद रखना भयंकर रण होगा।
द्रोपदी से दामिनी तक तुमने किया जो पाप होगा।।
उसका इस रण में सचमुच पूरा हिसाब होगा।
बेटी को मारो मत रण का यही परिणाम होगा।।
तुम पहले सेज सजाते और फिर मेज सजाते हो।
हर जगह नारी को तुम अपने लिए नचाते हो।।
पर याद रखना जब यहां नई सुबह आएगी।
तुम्हें और तुम्हारे उसूलों को बहा ले जाएगी।।
देश की माटी की बेटी बन मैं करती यही पुकार।
नववर्ष मंगलमय हो, कहती तुमको बारंबार।।
पर, नये वर्ष के लिए ध्यान रखना! कोई मानव दरिंदा न बने।
अपने ही घोंसले में आग लगाने वाला कोई परिंदा न बने।।
मैं देखूंगी स्वर्ग से अपने प्यारे भारत की आभा को।
दरिंदों को मिटाते यहां जवानी के उबलते लावा को।।
तुम सहेजकर रखना मेरी यादों को, मैं लौटकर फिर आऊंगी।
सुरक्षित भारत में संरक्षित नारी के रूप में नववर्ष मनाऊंगी।।
-राकेश कुमार आर्य