नई दिल्ली: भारत का सर्वोच्च न्यायालय विश्व के लिए ऐसी नजीर पेश करता है जिससे भारत का सर गर्व से ऊंचा होता है अपनी निष्पक्षता और न्याय प्रियता को बनाए रखने के अनेकों कीर्तिमान बनाने वाले भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अब एक ऐतिहासिक फैसला दिया है जिसके निश्चय ही भविष्य में अच्छे परिणाम निकलेंगे ।
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक अहम फैसला देते हुए कहा कि एमबीबीएस (MBBS) और बीडीएस (BDS) व पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स में एडमिशन लेने के लिए राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) निजी गैर-सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक व्यावसायिक कॉलेजों पर लागू होगी. यानी कि इन कॉलेजों में अब एडमिशन के लिए नीट की परीक्षा पास करना जरूरी होगा. इसी के साथ फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि नीट की वजह से अल्पसंख्यकों को संविधान से मिले अधिकारों का हनन नहीं होता है. आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में निजी गैर-सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक कॉलेजों ने याचिका दाखिल कर कहा था कि NEET धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के खिलाफ है.सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में NEET परीक्षा को अल्पसंख्यक सहित सभी संस्थानों पर लागू किया गया है. न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अल्पसंख्यक गैर सहायता प्राप्त संस्थानों में NEET लागू करने से अल्पसंख्यक समुदाय के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं होता, जिसमें शिक्षण संस्थानों की स्थापना और प्रबंधन का अधिकार दिया गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि NEET का उद्देश्य सिस्टम में होने वाली बुराई और कुप्रथा को खत्म करना है. NEET के बारे में बताते हुए कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह इस बात को सुनिश्चित करने के लिए है कि शिक्षा का मानक बना रहे और प्रबंधन के विशेष अधिकार की आड़ में कुप्रबंधन न हो.सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक NEET के रूप में नियामक उपाय “शिक्षा को उसी दान के दायरे में लाना है, जो उसका चरित्र खो गया है. कोर्ट ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता है कि NEET ने धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक समूहों द्वारा शैक्षणिक संस्थानों को संचालित करने के अधिकार के साथ हस्तक्षेप किया है। हमारा मानना है कि सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश के बाद शिक्षा में समरूपता की आवश्यकता को बुद्धिजीवी वर्ग की ओर से अनिवार्य है और आवश्यक मने जाने की बात कही जाती रही है उसे स्थापित करने में बहुत अधिक सुविधा होगी।