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राकेश छोकर / नई दिल्ली
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यह चरितार्थ है कि जब जब भी धरती पर आपदाओं का साया आया है, तब तब साहित्यकार एवं रचनाकारों ने अपने कलम की जिजीविषा से जीवन में जोश, उमंग और आशाएं पैदा की है । आज भयावह कोरोना वायरस से उपजी मानव प्रतिकूल परिस्थितियों में सृष्टाओ ने अपने कलम की तेवर से जनमानस में हौसलों की इबारत रच फिर से उन्नत जीवन की आशाएं बंधा डाली है।
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1 अनुराधा अच्छवान (सुप्रसिद्ध राष्ट्रीय कवियत्री ) नई दिल्ली।
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.कोरोनावायरस जनित महामारी से उपजे बुरे हालातों के बाद आमजन में जो मायूसी छाई थी उसे अपने शब्दों की ढाल से हौसलों का अमरत्व प्रदान करते हुए कवियत्री अनुराधा अच्छवान की पंक्तियों का जोश देखते ही बनता हैं –
“फिर से इन मायूस चेहरों पर
ख़ुशी के रंग बिखरेंगे।।
करेंगे सामना इस विपदा का, सब मिलकर
हम भी ज़िद्दी ठहरे ,पीछे नही हटेंगे…
माना दहशत है चारों तरफ।
खामोशियों के साये में बीत रहा है वक़्त।।
मगर दिख रही है उम्मीद की
देखो वो एक नई किरण।।
उग रहा हो मन में जब विश्वास भरा सूरज
तो हर अंधकार मिटेंगे।। हम भी ज़िद्दी ठहरें,
पीछे नही हटेंगे…”
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2. इसम सिंह चौहान (राष्ट्रीय ख्याति लब्ध कवि)
अलवर (राजस्थान)
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वयोवृद्ध अनुभवी रचनाकार इसम सिंह चौहान की कलम महत्वपूर्ण अनुभव रचती है-
” इम्तिहान की यह कैसी घड़ी है
घर में सब कैद सड़के सूनी पड़ी है
…….बच्चे मा बाप से मिलने को तरसते
मिले तो बीच में शीशे की दीवार खड़ी है।
जितना आसान सोचते थे हम इसे
मुसीबत उससे ज्यादा बड़ी है
ना कोई दवा , अभी इसकी नहीं कोई बूटी जड़ी है बीमारी यह नई और बहुत बड़ी है ।
घर में ही रहो थोड़ा खा कर गुजारा कर लो
बाहर तो इंतज़ार में मौत खड़ी है ……..”
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3. यशवंत भंडारी “यश” (राष्ट्रीय कवि)
झाबुआ (म. प्र)
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वि अपने कवि भाव के ओज व जोश से ख्याति बटोरने वाले इस विशिष्ट कवि की कविता एक बड़ा संदेश छोड़ती है-
” विश्व व्यापी विभीषिका, कोरोना के रुप मे आई
घऱ पर रहने मे ही ,सबकी हैं भलाई ॥
चीन के वुहान मे जन्मी , फेली सारे संसार मे ,
परजीवी निर्जीव कीटाणु ,आया काल के अवतार
थक गया स्पेन अमेरिका ,नही बन पायी इसकी दवाई ।
घर पर रहने मे ही सबकी हे भलाई ॥
सर्दी , खासी और जुकाम ,जब आ जाये तेज बुखार
सांस लेने मे हो मुश्किल तॊ, ये हे इस रोग के आसार ,
पल भर की देर करो मत, तत्काल जांच कराओ भाई ,
घर पर रहने मे ही सबकी हे भलाई…. ”
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4. जितेंद्र पांडेय” उत्तेजित”( युवा कवि)गंगोह, सहारनपुर(उ. प्र)
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इस युवा कवि के शब्दों की मंत्र शक्ति नव ऊर्जा का संचार करती हैं-
” गृह को गर्भ समझकर के, अभिमन्यु जैसे ध्यान धरें।
कोरोना चक्रव्यूह के खंडन को, मन भीतर नव अनुसंधान करें।।
अब शांत योद्धा बन कर के, प्रतिबंध कवच तन कर धारण , इस विश्व विपत्ति के कष्ट काल में , भीषण विषाणु संग संग्राम करें……”
आज के इस संकट काल मेंअगर इस वैश्विक महामारी से युद्ध करना है, तो समस्त जहांन के जन मानस को एकमत हो कर अपने-अपने भू भाग के जिम्मेदार सदस्यों के अनुरोधों का सम्मान सहित अनुसरण करना ही एक मात्र ऐसा अमोघ बाण हैं जिसके भेदन से कोरोना जैसे अणु दैत्य का मर्दन किया जा सकता हैऔर समस्त जहांन को रक्षा सुरक्षा देने का एक सार्थक प्रयास सिद्ध हो सकता है। कलम के तेवर से हौसलों की इबारत रच रहे कविवर
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