डॉ. प्रभात कुमार
कोचिंग सिटी का विगत दो दशकों से हर साल दिखाई देता, चमकता यह माहौल इस साल कोरोना की वैश्विक बीमारी से फीका पड़ गया है और लगता है जैसे बढ़ते कोचिंग रथ के पहिये थम गये हैं। कोरोना से सन्नाटा पसर गया है।
देश की सुविख्यात एकमात्र कोचिंग सिटी कोटा देश के कोने-कोने से हर साल आने वाले करीब पौने दो लाख छात्र-छात्राओं की चहल-पहल से गुलज़ार रहती है। इनकी आंखों में होते हैं डॉक्टर और इंजीनियर बनने के सपने। इन दिनों में एडमिशन की गहमा-गहमी रहती है। चारों और कोचिंग के कारण पूरा शहर खिलखिलाता नज़र आता है। हॉस्टलों एवं पीजी में आवास और भोजन व्यवस्था के लिए जद्दोजहद नज़र आती है। आने वाले विद्यर्थियों, उनके अभिभावकों, स्थानीय नागरिकों, कोचिंग व्यवसाय से जुड़े लोगों सभी के मन में एक असीम उत्साह, उमंग, उम्मीद और आंखों में आशा की किरण चमकती नज़र आती है। हो भी क्यों ना भारत भर में डॉक्टर और इंजीनियर के चयन का एक बड़ा हिस्सा कोटा से जो होता है। इससे कोचिंग संस्थानों, फैकल्टी, चयनित स्टूडेंट्स, उनके माता-पिता, परिजन और स्वयं कोटा वासी सभी को गर्व की अनुभूति होती है।
कोचिंग सिटी का विगत दो दशकों से हर साल दिखाई देता, चमकता यह माहौल इस साल कोरोना की वैश्विक बीमारी से फीका पड़ गया है और लगता है जैसे बढ़ते कोचिंग रथ के पहिये थम गये हैं। कोरोना से सन्नाटा पसर गया है। नए सत्र के शुरू होने की चर्चा क्या करें जबकि कोरोना के लॉकडाउन में 45 हज़ार के आसपास स्टूडेंट कोटा में फंस कर रह गए। अपने घर-स्वजनों से दूर आशंका, भय और असमंजस की स्थिति में। पूरा धैर्य और हौसला रखा और कोटा में रह कर ही स्थिति का सामना करते रहे। पर आखिर कब तक बंधा रहते सब्र का बांध। सब्र का बांध टूटा तो आवाज़ लगाई हमें अपने धर भेजो, हम कब तक दूर रहेंगे अपनों से।
कोटा-बूंदी के लोकसभा सांसद एवं अध्यक्ष लोकसभा ओम बिरला ने स्टूडेंट्स की इस बेबसी को गंभीरता से लिया जो अपने घरों से दूर कोटा में ही कैद हो कर रह गए थे। उन पर टिकी थी इनकी आस। आखिर बिरला जी इस मुद्दे को गृह मंत्रालय तक ले गए। उनके प्रयास और मेहनत रंग लाई। जब स्टूडेंट्स को इस निर्णय की सूचना मिली कि वह दिन अब दूर नहीं जब वे अपने घरों को जा सकेंगे तो इन्होंने राहत की सांस ली और उम्मीद से उनके चेहरे दमक उठे।
अब क्या था जब गृह मंत्रालय ने आदेश जारी किया तो राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जो स्वयं भी इस दिशा में प्रयत्नशील थे, सक्रिय हो गये और सब राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बात की और अपने-अपने राज्यों के स्टूडेंट्स को बुलाने के लिए सहमत किया। अब क्या था वह दिन आ गया जा राज्यों की बसें आने लगीं और स्टूडेंट्स उत्साह के साथ अपने घर जाने लगे। ज्यादा समय नहीं लगा जब उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, मध्य प्रदेश, गोवा, दमन दीव, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, असम, पंजाब, हरियाणा, ओडिशा, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों से बसें कोटा पहुँचीं और अब तक करीब 23 हज़ार स्टूडेंट्स अपने घर पहुंच चुके हैं। यही नहीं इसके साथ-साथ राजस्थान के विभिन्न जिलों के स्टूडेंट्स को भी उनके घर भेजा जा चुका है। सभी बसों को सेनेटाइज्ड किया गया एवं स्टाफ व स्टूडेंट्स की जांच कर सुरक्षित रवाना किया गया।
इसी बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा स्टूडेंट्स को बुलाने पर इनकार करने पर जहां अमानवीय दृष्टिकोण का परिचय दिया तो बिहार में इस मुद्दे पर राजनीति गरमा गई। वहां के विपक्ष के नेता स्टूडेंट्स को बुलाने की मांग कर रहे हैं। इधर कोटा में रह रहे बिहार के स्टूडेंट्स ने अपने हॉस्टलों की छत पर ही मुख्यमंत्री के खिलाफ प्रदर्शन कर दिया। अब क्या था स्टूडेंट्स का यह विरोध देश के टीवी चैनल्स की सुर्खियां बन गया। राजस्थान के मुख्यमंत्री ने कई बार बिहार के मुख्यमंत्री से चर्चा कर आग्रह किया पर वे अभी तक अड़े हुए हैं और इधर कोटा में बिहार के स्टूडेंट्स अपने को ठगा-सा महसूस कर इस आशा में दिन गिन रहे हैं कि कब वह दिन आएगा जब वे भी अन्य साथियों की तरह अपने घर जाएंगे। आज भी करीब 15 से 20 हज़ार बिहारी स्टूडेंट्स कोटा में बिहार अपने घर जाने की राह तक रहे हैं।
कोरोना की महामारी से कोटा के कोचिंग क्षेत्र में छाया सन्नाटे का असर दूर तक जाएगा। संशय के बादल गहरा रहे हैं क्या इस साल फिर से कोचिंग का अनुकूल वातावरण बन पायेगा ? क्या स्टूडेंट्स कुछ समय बाद ही सही कोटा आने की हिम्मत जुटा पाएंगे ? क्या कोचिंग पर आधारित हज़ारों करोड़ की ठहर गई अर्थव्यवस्था को गति मिल पाएगी ? इन सब सवालों के जवाब अभी देना आसान नहीं हैं। कुछ मामलों में ऑनलाइन स्टडी प्रारम्भ की गई है। क्या यह व्यवस्था क्लास रूम की व्यवस्था जैसी कारगर हो पाएगी इसमें संदेह हैं। खैर अभी तो थम गये हैं कोचिंग के पहिये, प्राथमिक जरूरत है बिहार के स्टूडेंट्स को राहत मिले और वे अपने घर जा सकें। ईश्वर बिहार के मुख्यमंत्री को सदबुद्धि दे।