स्वामी चक्रपाणि जी
अखिल भारत हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणि जी महाराज ने कहा है कि शादी को भारत में एक संविदा के रूप में परिभाषित करना संघ प्रमुख मोहन भागवत की दिमागी दिवालिएपन की स्थिति को बयान करता है। भारत में विवाह को एक पवित्र संस्कार माना गया है, और इसी रूप में विवाह का निर्वाह किया जाता है। इसे आपसी सौदेबाजी कहकर कभी भी तोडऩे के लिए तैयार रहना सामाजिक व्यवस्था पर कुठाराघात करने के समान है। यही कारण है कि भारत में जबसे विवाह को पढ़े लिखे लोगों ने संविदा के रूप में मानना स्वीकार किया है, तब से ही दहेज और तलाक जैसी दो बीमारियां भयंकर रूप में खड़ी हो गयी हैं जिससे अदालतों पर अनावश्यक वादों का बोझ बढ़ा है। स्वामी जी महाराज ने कहा कि आरएसएस प्रमुख को भारतीय संस्कृति को समझकर ही अपना बयान देना चाहिए था। उन्होंने कहा कि भारत की महानता उसकी सांस्कृतिक परंपराओं में छिपी है, वक्त के अनुसार इन सांस्कृतिक परंपराओं का परिष्कार किया जा सकता है, लेकिन इन्हें पूरी तरह से नकारा नही जा सकता। संघ प्रमुख से अपेक्षा की जाती है कि वे भारत की संस्कृति के बारे में भली प्रकार जानते हैं, इसलिए यह नही माना जा सकता, कि विवाह को एक संविदा मानना भारतीय संस्कृति के कितना विपरीत है, इसे वह नही समझते होंगे। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति के विषय में अधकचरा ज्ञान रखने वाले लोग किसी ऐसे संगठन के प्रमुख के पद पर कैसे पहुंच गये, जिसकी देशभक्ति पर और संस्कृति निष्ठा पर कभी अंगुली नही उठाई गयी।
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