तुष्टीकरण के चक्कर में धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ कब तक
रमेश चौवे राष्ट्रीय प्रवक्ता , भारतीय जन क्रान्ति दल डेमोक्रेटिक
कहने को भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है| लेकिन जब से भारत के संविधान की प्रस्तावना में 42वें संविधान संशोधन के बाद पंथनिरपेक्ष शब्द जोड़ा गया, लेकिन धर्मनिरपेक्ष शब्द का प्रयोग भारतीय संविधान के किसी भाग में नहीं किया गया है, वैसे संविधान में कई ऐसे अनुच्छेद मौजूद हैं जो भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य साबित करते हैं| जहाँ तक मुझे याद आता है एस-आर- बोम्मई बनाम भारत गणराज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर धर्म को राजनीति से अलग नहीं किया जाएगा, तो सत्ताधारी दल का धर्म ही देश का धर्म बन जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय पर राजनीतिक दलों को अमल करने की आवश्यकता है परन्तु क्या ऐसा अभी भी हो पाया है । एक तरफ भारत के शासन को धर्मनिरपेक्ष रहने को कहा गया है परन्तु सरकारे किसी की हो मुस्लिम तुस्टीकरन से बची नहीं रह पाती इस वोट बैंक के चक्कर में मुसलमानों का पवित्र त्यौहार का भी नाश कर देता है | मुसलमानों के पवित्र क़ुरान शरीफ में कहा गया है इफ्तार पार्टी देने का अधिकार सिर्फ रोजेदार को होता है परन्तु सभी पार्टियों के नेता इफ्तार के लिए मरे रहते है चाहे वे उस धर्म को मानते हो या नहीं | इफ़्थार (या फ़तूर) (अरबी: अफ़्तार या “नाश्ता”) शाम का खाना को कहते है, जब मुसलमान सूर्यास्त पर अपना दैनिक रमजान उपवास समाप्त करते हैं। शाम की प्रार्थना करने के लिए मुसलमानों ने अपने उपवास को पूरा करके तोड़ देना होता है । इफ़्तार रमजान के धार्मिक अनुष्ठानों में से एक है और अक्सर एक समुदाय के रूप में किया जाता है, लोगों को एक साथ अपने उपवास को तोड़ने के लिए इकट्ठा किया जाता है। इफ़्तार को मग़रिब समय के बाद लिया जाता है, जो सूर्यास्त के आसपास है। परंपरागत रूप से लेकिन अनिवार्य नहीं है, इस्लामी पैगंबर मुहम्मद के अनुकरण में तीन खजूर उपवास तोड़ने के लिए खाये थे, इस तरीके से अपना उपवास तोड़ दिया। कई मुसलमान मानते हैं कि इफ़्तार में किसी को खाना खिला देना बहुत ही नेकी माना जाता है। मुहम्मद साहब ने ऐसा किया था। लेकिन आज लोग वोट की लालच में दुसरे धर्म का सम्मान नहीं करते और रोजे को भी भ्रष्ट करने से नहीं चुकते | इफ्तार पार्टी का आयोजन सरकारी खर्चे से करना एक प्रकार का गुनाह है जिसकी इजाजत अल्लाह कभी नही देता |