कांग्रेस को आर्थिक संकट की चिंता और मोदी का ध्यान लोगों की जान बचाने पर

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शिवा नन्दवंशी

वैसे तो गांधी परिवार पर लम्बे समय से सवाल उठते रहे हैं, लेकिन जब देश कोरोना महामारी के संकट से जूझ रहा है, तब हर कोई उम्मीद लगाए बैठा था कि गांधी परिवार इस मौके पर केन्द्र की मोदी सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलेगा।

इतिहास गवाह है कि 125 वर्ष पुरानी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने आजादी के बाद भारत के नवनिर्माण में कई आयाम स्थापित किए थे। कांग्रेस, जिसने न केवल देश को महात्मा गांधी से लेकर जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, गुलजारी लाल नंदा, सरदार पटेल, मौलाना आजाद, बाबा साहब अंबेडकर, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, मनमोहन सिंह जैसे तमाम नेता और प्रधानमंत्री दिए बल्कि दशकों तक देश पर राज भी किया वही कांग्रेस अपनी गलत नीतियों के कारण जनता का विश्वास खोती जा रही है। पिछले छहः साल तो कांग्रेस के लिए बेहद खराब रहे, उसके कई दिग्गज नेता साथ छोड़कर चले गए, सबसे दुख की बात यह है कि जिस कांग्रेस की पहचान गांधी परिवार से हुआ करती थी, वही गांधी परिवार आज की तारीख में कांग्रेस को मटियामेट करने में लगा है। दस जनपथ जहां से कभी कांग्रेस की सरकारें दिशानिर्देश लिया करती थीं, वहां बैठीं सोनिया गांधी हों या फिर राहुल-प्रियंका वाड्रा, इन्हें यह समझ लेना चाहिए कि अब हालात बदल चुके हैं। मौजूदा राजनीति में गांधी परिवार की तिकड़ी दिशाहीन और बेबस नजर आ रही है। जब से केन्द्र की सत्ता कांग्रेस के हाथों से निकल कर नरेंद्र मोदी के हाथ में आई है, तब से गांधी परिवार की सोचने की शक्ति ही खत्म हो गई है। गांधी परिवार की सोच का दायरा इतना तंग हो गया है कि उसकी पार्टी (कांग्रेस) के तमाम दिग्गज नेताओं ने पार्टी से किनारा कर लिया है और जो नेता बचे हैं उन्होंने भी गांधी परिवार के सदस्यों की उट-पटांग बातों के चलते दूरी बना ली है। इतना ही नहीं कांग्रेस शासित राज्य सरकारों का शीर्ष नेतृत्व भी अब गांधी परिवार की सुनने के बजाए उसे आईना दिखाने लगा है।
खैर, वैसे तो गांधी परिवार पर लम्बे समय से सवाल उठते रहे हैं, लेकिन जब देश कोरोना महामारी के संकट से जूझ रहा है, तब हर कोई उम्मीद लगाए बैठा था कि गांधी परिवार इस मौके पर केन्द्र की मोदी सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलेगा। लेकिन मुसीबत की इस घड़ी में भी गांधी परिवार तुच्छ सियासत एवं नकारात्मक सोच बदलने के लिए तैयार नहीं है। सोनिया एंड फैमली कोरोना महामारी से निपटने के लिए उस मोदी सरकार को कोस रहे हैं, जिसके दूरदर्शी फैसलों की वजह से देश में कोरोना महामारी विकराल रूप धारण नहीं कर पाई है, इसी के चलते पूरी दुनिया मोदी सरकार की सराहना कर रही है और मोदी की मदद भी ले रही है। ऐसा लगता है कि गांधी परिवार को न तो कोरोना के रूप में देश पर आए संकट की कोई चिंता है और न ही उसे इस संकट के चलते देश और समाज में आ रहे बदलाव का आभास हो पा रहा है। पहले पहल जब राहुल गांधी ने कोरोना से निपटने के लिए मोदी सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की आलोचना की तो लोग इसलिए ज्यादा खिन्न नहीं हुए क्योंकि वह राहुल गांधी को परिपक्व नेता ही नहीं मानते थे, इसीलिए जब राहुल गांधी ने कोरोना से निपटने के लिए लॉकडाउन को गैर जरूरी बताया तो इसको गंभीरता से लेने की बजाए सोशल मीडिया पर उनका मजाक उड़ने लगा।

हद तो तब हो गई जब सोनिया गांधी भी राहुल की बिना सिर-पैर वाली बातों को आगे बढ़ाने लगीं। सोनिया ने एक बार भी नहीं सोचा कि जब राहुल की बातों को कांग्रेस शासित राज्य सरकारों के मुख्यमंत्री ही गंभीरता से नहीं ले रहे हैं तो प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री कैसे गंभीरता से लेंगे। बात यहीं तक सीमित नहीं है, कभी-कभी तो लगता है कि सोनिया तो मोदी को घेरने के लिए राहुल से भी दो कदम आगे निकल जाने को बेताब हैं। देश पर आए कोरोना संकट को अनदेखा कर गत दिनों सोनिया गांधी ने कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में जिस तरह धर्म की राजनीति को उछाला वह यही दर्शाता है कि सियासी रूप से पूरी तरह से खोखली हो चुकी कांग्रेस और उसका नेतृत्व करने वाला गांधी परिवार महामारी काल में भी ओछी राजनीतिक से ऊपर उठने को तैयार ही नहीं है। गांधी परिवार देश के लिए कुछ करने की बजाए प्रोपोगंडा करने में लगा है। वह न तो अपने नेताओं से विचार-विमर्श कर रहा है, न ही कांग्रेस शासित मुख्यमंत्रियों की सुन रहा है। इसी के चलते कांग्रेस की तरफ से परस्पर विरोधी विचार भी सामने आ रहे हैं।
अच्छा होता कि कांग्रेस इस समय अपने वरिष्ठ नेताओं के साथ विचार-विमर्श कर ही सियासी रणनीति तय करती। आजकल हर मुद्दे पर कांग्रेस के अंदर मतभेद दिख रहा है। पार्टी के कई वरिष्ठ नेता जब लॉकडाउन का समर्थन कर रहे थे तो शीर्ष स्तर पर कुछ नेता अलग राग अलाप रहे थे। इसी तरह से कांग्रेस के कई मुख्यमंत्री लॉकडाउन की वकालत कर रहे हैं तो सोनिया और राहुल इसे गैरजरूरी बता रहे हैं। जब गांधी परिवार को लॉकडाउन की हकीकत समझ में आई तो वह लॉकडाउन का राग छोड़ आर्थिक संकट पर बयानबाजी करने लगे, जबकि यह समय देश पर आए या आने वाले आर्थिक संकट को देखने का नहीं, महामारी से मर रहे लोगों की जान बचाने का है। आर्थिक संकट की बात की जाए तो यह संकट मोदी सरकार की नीतियों के कारण नहीं बल्कि वैश्विक महामारी के कारण पूरी दुनिया में पैदा हुआ है। पूरी दुनिया इस संकट से अपने देश को बचाने के लिए कवायद कर रही है। अमेरिका जैसा देश जिसने जान से ज्यादा अर्थ को महत्व दिया और लॉकडाउन जैसे कदम उठाने में देर की वहां मौत का आंकड़ा पच्चास हजार को पार कर गया है। वहां अब हालत यह है कि जान भी गई और जहान भी नहीं बच पा रहा है। यही हाल कमोवेश फ्रांस, ब्रिटेन और सोनिया गांधी की जन्मस्थली वाले देश इटली का भी है।
दरअसल, अच्छा यह रहता कि कांग्रेस और गांधी परिवार लॉकडाउन को लेकर मोदी सरकार की आलोचना करने की बजाए उसे धन्यवाद देती कि मोदी सरकार ने समय पर लॉकडाउन का कदम उठा कर देश को बड़े संकट से बचा लिया। समय पर लॉकडाउन की वजह से ही देश में मौत का आंकड़ा काफी कम रहा है। गांधी परिवार का महामारी के समय ऐसी बातों को मुद्दा बनाना उसके राजनीतिक समझ पर सवाल खड़ा करता है। कांग्रेस और गांधी परिवार कुछ भी कहे लेकिन दुनिया इस बात की गवाह है कि अन्य देशों के मुकाबले भारत काफी बेहतर स्थिति में है। क्या कांग्रेस खुलकर कहने की स्थिति में है कि यहां उस वक्त लॉकडाउन नहीं करना चाहिए था, जब इसकी घोषणा की गई। ऐसा कहने का साहस कांग्रेस इसलिए नहीं जुटा पा रही है क्योंकि उसे पता है कि इस समय जनता उसके नहीं मोदी के साथ है।
गांधी परिवार को मोदी सरकार पर उंगली उठाने की बजाए देश को यह बताना चाहिए कि महामारी के चलते आई आर्थिक समस्या से कैसे बाहर निकला जाए। यदि मोरी सरकार सांसद निधि रोक के, वेतन में कटौती कर, केंद्रीय कर्मचारियों के महंगाई भत्ते को कुछ महीनों तक रोक कर पैसे का प्रबंधन कर रही है तो क्या इसका विरोध होना चाहिए। कोरोना महामारी से निपटने के लिए बड़ी लड़ाई लड़ी जा रही है तो इसके लिए संसाधन भी बड़े स्तर पर जुटाने पड़ेंगे। इतिहास गवाह है कि जब देश को जरूरत हुईं है तो देश की मां-बहनों ने अपने गहने तक देश को दिए हैं। महामारी के काल में वही देश और समाज जीतता है जो अधिकार की नहीं कर्तव्यों की बात करता है। हो सकता है आगे कुछ वक्त तक कठिन वक्त हो लेकिन एकजुटता के साथ लड़े तो भविष्य सुनहरा ही होगा।

लब्बोलुआब यह है कि गांधी परिवार को इस समय सियासी नफा-नुकसान भूलकर देशहित के लिए आगे आना चाहिए। सोनिया, राहुल और प्रियंका यह नहीं सोचना चाहिए की मोदी सरकार उनकी हर बात और सुझाव मान ही लेगी। कांग्रेस और गांधी परिवार इतना ही देश के प्रति चिंतित होता तो जनता उसका यह हश्र नहीं करती। इसी प्रकार अगर मोदी सरकार के कामकाज का तरीका सही नहीं होगा तो देश की जनता उसे सबक सिखा देगी। मोदी सरकार पर गांधी परिवार अपनी इच्छाएं नहीं थोपे तो अच्छा रहेगा।

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