पालघर मॉब लिंचिंग : ईसाई मिशनरी संदेह के घेरे में

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स्वामी असीमानंद-सोनिया गाँधी
स्वामी असीमानंद  जिसने  ईसाई मिशनरी के धर्मांतरण में रुकावट डालने
के कारण झूठे आतंकवादी हमले के आरोप में जेल में 

अमानवीय यातनाएं झेली 

आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
महाराष्ट्र के पालघर में हुई संतों की मॉब लिंचिंग और उसके पीछे ईसाई मिशनरी की भूमिका निरंतर संदेह के घेरे में है। इसी प्रकरण में सोनिया गाँधी की चुप्पी की भी चर्चा हुई जो कि एक अलग ही मामला बना हुआ है। आदिवासी बहुल जगहें ईसाई मिशनरियों के निशाने पर एक लंबे अरसे से रही हैं। यदि इस दुर्घटना की गंभीरता से निष्पक्ष जाँच ही पुलिस की मौजूदगी में लॉक डाउन होते हुए साधुओं की निर्मम हत्या की सच्चाई सामने आ पायेगी। उन बेगुनाह साधुओं के शरीर पर पड़ने वाली एक-एक लाठी की गूंज पता नहीं कितनो को कटघरे में खड़ा करेगी। 
यह भी नहीं भूलना चाहिए कि यूपीए कार्यकाल में रोहिणी, दिल्ली में होटल रॉयल पैलेस में हर रविवार को मिशनरी द्वारा धर्मांतरण होता था और जब वहां के स्थानीय लोगों द्वारा पुलिस में इसकी शिकायत करने पर उन्हीं लोगों को साम्प्रदायिकता करने के आरोप में जेल में बंद करने की धमकियाँ दी जाती थीं, एक पुलिस अधिकारी ने अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर वहां के प्रतिष्ठित लोगों को वास्तविकता बता, मामला को रफा-दफा करने का आग्रह किया। लेकिन 2014 में केंद्र में सत्ता परिवर्तन होते ही धर्मांतरण का गोरखधंधा बंद हो गया। 
इसी के विरोध में हिन्दू संगठन अतीत में भी काफी संख्या में इन आदिवासियों को ‘घर वापसी’ कार्यक्रम के अंतर्गत वापस हिन्दू धर्म में लेकर आए थे। इन्हीं में से एक किस्सा है गुजरात के डांग जिले का जहाँ स्वामी असीमानंद ने करीब 150 आदिवासियों की घरवापसी करवाई थी, जिसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने खुद वहाँ का दौरा किया था।
स्वामी असीमानंद द्वारा ईसाई मिशनरी के धर्मान्तरण में रुकावट डालने के ही कारण इन्हें 2007 में समझौता ब्लास्ट के झूठे आरोप में जेल में डाल अमानवीय यातनाएं दी गयीं थीं। जितनी यातनाएं स्वामी असीमानंद को दी गयीं थी, 2019 चुनाव में भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा द्वारा ATS अधिकारी करकरे की मृत्यु पर खुशी जाहिर करने पर कांग्रेस और इसके समर्थक दलों ने चुनाव आयोग तक में इसकी शिकायत की थी, क्योकि साध्वी प्रज्ञा ने सच्चाई को जनता के सम्मुख रखा था। इसी करकरे ने तत्कालीन सरकार के इशारे पर साध्वी प्रज्ञा की सात्विकता नष्ट की थी। यदि उसका .0000001% यातना किसी इस्लामिक आतंकवादी को दी होती, भारत से भाग इटली में शरण लेने को मजबूर होना पड़ता। यूपीए सरकार को मुस्लिम समाज के आगे नाक रगड़कर माफ़ी मांगने के साथ-साथ पता नहीं कितने पारितोषिक देकर खुश करना पड़ता। 

मशहूर स्टैंड अप कॉमेडियन नितिन गुप्ता ‘रिवाल्डो’ ने ट्विटर पर एक ऐसे ही किस्से को शेयर करते हुए बताया है कि ईसाई मिशनरियों द्वारा ‘आटा-चावल’ देकर किए गए आदिवासियों के धर्मांतरण को रोकने के लिए जब स्वामी असीमानंद ने प्रयास किए थे, तब किस तरह से इटली से लेकर कांग्रेस नेता सोनिया गाँधी तक विचलित हो गए थे।
आतिश तासीर की माँ तवलीन सिंह ने ट्विटर पर महाराष्ट्र में 2 साधुओं और उनके ड्राइवर की मॉब लिंचिंग के मुद्दे को महज ‘आदिवासियों द्वारा चोर समझ लेने की घटना’ साबित करने का प्रयास करते हुए ट्वीट किया –
“तुम वापस मुझ पर जहर थूक रहे हो!! लिंचिंग होती ही है आतंकित करने के लिए। साधुओं को एक आदिवासी भीड़ ने चोर समझकर गलतफहमी में मारा। गृह मंत्री ने इस पर ऐसे जोर देकर बोला है जैसा कि किसी वास्तविक लिंचिंग के बाद भी उन्होंने कभी कोई बयान नहीं दिया था।”
नितिन गुप्ता ने तवलीन सिंह के इस ट्वीट को रीट्वीट करते हुए लिखा –
“डांग हमेशा ही मिशनरियों का पसंदीदा जगह रही। 1988 में स्वामी असीमानंद ने 40 हजार आदिवासियों की घरवापसी करवाई। इस घटना ने इतनी हलचल पैदा की कि वेटिकन के ईसाई नेताओं से लेकर सोनिया गाँधी तक ने डांग का दौरा किया। इसके बाद 2007 में स्वामी असीमानंद का नाम समझौता ब्लास्ट में घसीटा गया। और 2019 में NIA कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया।”
अगले ट्वीट ने नितिन गुप्ता ने लिखा
“आदिवासियों के ईसाई धर्मांतरण में हिन्दू साधू-संत बहुत बड़ी दीवार हैं। पालघर में आरोपितों के नाम आपको वास्तविकता बताने के लिए काफी नहीं हैं। आदिवासी धर्मांतरण के बाद भी अपना नाम नहीं बदलते हैं। इस तरह वो अपने मूल नाम के साथ ही आरक्षण का लाभ भी उठाते रहते हैं।”
“मिशनरी आदिवासियों को धर्मांतरण के बदले खाना और दवाइयाँ उपलब्ध करवाते हैं। इस लिए देशव्यापी लॉकडाउन एक अच्छा मौका है। कुछ दिन पहले ही डॉ. वाल्वी की भी पालघर में पिटाई की गई। अन्य स्रोतों से की जा रही मदद से धर्मांतरण के टारगेट में समस्या आती?”
डॉक्टर विश्वास वाल्मीकि स्थानीय आदिवासियों के बीच एक जाना पहचाना चेहरा हैं, बावजूद इसके उनके साथ राशन बाँटते समय मारपीट की गई।
कुछ दिन पहले की महाराष्ट्र के पालघर में 2 नागा साधुओं की स्थानीय आदिवासियों द्वारा मॉब लिंचिंग की गई। इसमें 2 साधुओं के अलावा उनके एक ड्राइवर को भी जान से मार दिया गया। मुख्यधारा की मीडिया के साथ ही तमाम राजनीतिक दलों के द्वारा भी इसे महज गलतफहमी के कारण की गई हत्या साबित करने का प्रयास किया जा रहा है।
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16 अप्रैल की इस घटना पर फिर Zee News ने ग्राउंड ज़ीरो पर जाकर पड़ताल की है और हर उस व्यक्ति से बात की है, जो इस बड़े मामले की परतें खोलने में मदद कर सकता था। हमने पहले आपको इस मामले के पहले चश्मदीद से मिलवाया था, जो गढ़चिंचले गांव की सरपंच चित्रा चौधरी थीं। इसी गांव के पास दो साधुओं और उनके ड्राइवर की भीड़ ने हत्या कर दी थी। सरपंच चित्रा ने साधुओं की हत्या के पीछे राजनीतिक वजहों की तरफ इशारा किया था। अब पड़ताल में कई औऱ बड़ी बातें सामने निकल कर आई हैं:
‘धर्मांतरण थ्‍योरी’
इस पड़ताल में पता चला कि इस आदिवासी इलाके में शराब को राजनीतिक हथियार बनाया गया है। कुछ विशेष राजनीतिक दल इसका इस्तेमाल अपने समर्थक बनाने और संगठन को मजबूत करने के लिए करते हैं। लेकिन जो लोग, जो संगठन और जो साधु-संत इस इलाके में नशे का विरोध करते हैं, इलाके में जागरूकता फैलाते हैं और सामाजिक सुधार की बात करते हैं. उन्हें दुश्मन की तरह देखा जाता है.
Zee News की टीम ने आदिवासियों के बीच काम करने वाले लोगों से बात की है, जो इस आदिवासी इलाके को वर्षों से जानते हैं, उन्होंने पालघर को राजनीतिक वर्चस्व और धार्मिक वर्चस्व की लड़ाई का मैदान बताया।
स्थानीय जानकारों ने पालघर में वामपंथी दलों और ईसाई मिशनरियों के गठजोड़ की बात बताई, और ये बताया कि हिंदूवादी संगठन और हिंदू साधु संत इन लोगों की आंखों में चुभते हैं। हमें ये भी पता चला है कि ये इलाका ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार और धर्मांतरण करने का बड़ा गढ़ है। इस आदिवासी इलाके में कई Christian missionaries काम करती हैं। इसके अलावा ऐसे संगठनों का समर्थन करने के लिए कई हिंदू विरोधी संगठन भी पालघर में सक्रिय हैं।
क्या इन सभी बातों की वजह से पालघर में दो साधुओं की भीड़ द्वारा निर्मम हत्या कर दी गई? क्य़ा इसी वजह से कल्पवृक्ष गिरी महाराज और सुशील महाराज की जान ले ली गई?
परत दर परत
वैसे तो साधुओं की हत्या के पीछे अफवाह को वजह बताया गया था, लेकिन ये बात इतनी साधारण नहीं है।ये सवाल इसलिए उठते हैं क्योंकि पालघर में पहले कभी भीड़ द्वारा हिंसा की ऐसी घटना नहीं हुई। दूसरी बड़ी बात ये है कि किसी को चोर समझ कर पीटना और पीट-पीट कर जान ले लेना…ये दोनों अलग अलग बातें है। साधुओं की हत्या करना और वो भी तब…जब सामने पुलिसवाले खड़े हो…ये मामूली बात नहीं है।इसके पीछे जो भी कारण हैं, वो सब कारण सामने आने चाहिए. इसलिए हम लगातार इस मामले की पड़ताल कर रहे हैं।
हमें पालघर से एक और बड़ी जानकारी मिली। पिछले दो साल से अचानक पालघर के कुछ इलाकों में रावण की पूजा के कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। इसके ज़रिए आदिवासियों को हिंदू मान्यताओं का विरोधी बनाने की कोशिश की जा रही है। कुछ लोग आदिवासियों में ये भ्रम फैला रहे हैं कि आदिवासी रावण के वंशज है और उन्हें रावण की पूजा करनी चाहिए। आदिवासी एकता परिषद जैसे कुछ संगठन पालघर में रावण दहन पर रोक लगाने के लिए प्रशासन पर दबाव बनाते हैं और रावण को देवता की तरह दिखाने की कोशिश करते हैं। अब सवाल ये है कि इस आदिवासी इलाके में क्यों ऐसा हो रहा है कि पिछले कुछ वर्ष से रावण की पूजा की जा रही है।. क्यों हिंदू देवी देवताओं के बारे में गलत बातें फैलाई जा रही है? क्यों ऐसा हो रहा है कि ईसाई मिशनरियों के साथ-साथ हिंदू विरोधी संगठन सक्रिय हैं। लेकिन ये सभी बातें आपसे छुपाई जा रही हैं। कोई भी आपको इन बातों के बारे में नहीं बता रहा है। पालघर में साधुओं की हत्या को सिर्फ अफवाह से जोड़कर, सिर्फ गलतफहमी से जोड़कर और इसे गलत पहचान (Mistaken Identity) का केस बताकर मामले को दबाने की पूरी कोशिश हो रही है।

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