प्रकृति , संस्कृति, संस्कारों के पोषक और मानवता के सजग प्रहरी हैं , नानजी भाई गुजर

images (41)

★ राकेश छोकर
“”””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””
“ सेवा परमो धर्म:, जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी ” परम मंत्र को अंतरात्मा में निहित कर धरती मां और मानवीयता के आंचल को सवारने का संकल्प लेकर जज्बे और जुनून से लीन दृढ़ संकल्पी नान जी भाई गुर्जर संकटहर्ता के रूप में लंबे अरसे से श्रेष्यकर कर्म में लीन है । आज विपत्ति काल में उपजी भयावहता से दो दो हाथ करते हुए माटी और जन, गण , जंगल के सर्वा उत्थान हेतु आपने जो बीड़ा उठाया, वह संकटमोचक के रूप में प्रेरणीय बन गया। वैभव और आदर्शवाद के संस्थापक के रूप में कर्मशीलता के झंडे बुलंद करते हुए, परमसत्ता का धर्म निभाया है।

★ मानवता के इस उदयिप्त सितारे का जन्म सन 1975 में वीर भूमि राजस्थान के राजसमंद जिले के कालिंजर पंचायत अंतर्गत लक्खा जी की भागल , मादरेचो का गुड़ा में किसान पिता भेराजी,माता गँगा देवी के यहाँ हुआ। किशोरावस्था से ही संघर्ष का पर्याय बन चुके नान जी भाई गुर्जर ने नित नये मुक़ाम स्थापित किये। मिट्टी से जुड़ते हुए , सीढ़ी के हर डंडे पर ठहराव करते हुए मंजिल को हासिल किया। समय की चाल और नब्ज को टटोलते हुए , संयम और धैर्य की अग्नि परीक्षा में खरे उतरे। अल्प शिक्षा के बावजूद ज्ञानार्जन की जिज्ञासा, संत विद्वानों का समागम उन्हें कर्मठता और निश्छलता की तरफ ले गया।
★ अपने व्यवसाय को ऊंचाई देते हुए लिफ्ट और हाइड्रोलिक निर्माण में कौशलता हासिल की, आर्थिक क्षमता को मजबूत किया। उद्योग के क्षेत्र में विश्वास की मजबूत डगर स्थापित कर, आशापुरा मानव कल्याण ट्रस्ट के महती माध्यम द्वारा अपनी जन्मभूमि, कर्मक्षेत्र, राष्ट्र और समाज को अपने संस्कारों में निहित पोषण से पोषित करने में अहम भूमिका निभाई। संस्कृति में आई विकृति, पृथ्वी पर असंतुलित हुई प्रकृति पर अपनी कर्म गति को आगे बढ़ाते हुए कृषि सुधार, बाल विकास, प्राकृतिक ऊर्जा, लघु उद्योग, पर्यावरण, गरीबी उन्मूलन के साथ सामाजिक एवं सांस्कृतिक उत्थान में अहम भूमिका निभाई है। सबका साथ सबका विकास का सपना पाले हुए आपने शिक्षा ,संस्कार, पर्यावरण, रोजगार विकास पर महत्वपूर्ण कार्य किये।
★ आशापुरा मानव कल्याण ट्रस्ट की मानवीय कर्मशीलता में नानजी भाई गुर्जर ने सबका साथ ,गांव का विकास का सपना फलीभूत करते हुए अपनी मातृभूमि को भी नमन वंदन किया है। अपने निज गांव में ग्रामीण विकास के सोपान खोलें। मन से अन धन का जन में सहयोग किया। शिक्षा के मंदिरों में शैक्षिक संसाधनों की आपूर्ति, शुद्ध पानी, शुद्ध वातावरण की उपलब्धता, निर्धन छात्रों की सहायता जैसे महत्वपूर्ण कार्य रहे। स्वच्छता अभियान हो अथवा पर्यावरण जागरण का बीड़ा प्रतिवर्ष बड़े पैमाने पर संचालित कर रिकॉर्ड कार्य किए हैं।
★ अमानवीय कुरीतियों पर भी नानजीभाई गुर्जर ने शुद्धीकरण और जागरण का नेक पावन कर्म निभाया है। कालिंजर, कुंभलगढ़ उदाजी की भागल में तीज त्योहारों पर बलि प्रथा पर पूर्ण प्रतिबंध लगवाया। विशिष्ट संतों के सानिध्य में अनेक धार्मिक अनुष्ठान, जनप्रिय धार्मिक कार्य आहूत कर अपनी आध्यात्मिक प्रियता का परिचय दिया। एतिहासिक धरोहरों के जीर्णोद्धार एवं निर्माण में विशेष सहयोग कर अपनी पुरातन संस्कृति को धन्य कर दिया। जो सदैव चिर स्मरणीय रहेगा।
★ “हाथ बढ़ाएं, मानवता निभाये” के मंत्र के साथ विभिन्न प्रकार की विपदाओं में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। बाढ़ का काल हो या कोरोना काल , नानजी भाई गुर्जर ने अपनी पूर्ण क्षमता के साथ प्रभावितों की मदद की। कोरोना काल में भयानक विपत्ति के समय , वापिस पहुंचते हजारों राहगीरों को भोजन और उपचार, आर्थिक मदद, प्रशासनिक सहयोग विशाल हृदय के साथ प्रदान किया है। अभी हालो में राजस्थान और गुजरात की सीमा पर परेशान हाल परिस्थितियों में घरों को लौटते मजदूरों को हजारों मास्क, भोजन अस्थाई आवास जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराकर अपनी पुनीत भागीदारी निभाई। जो वास्तव में परमात्मा की ही सेवा है।
वर्तमान परिदृश्य पर पड़ी काली छाया के बीच मानवता का सच्चा फर्ज निभाते हुए भामाशाह की विरासत राजसमंद की धरा का मान बढ़ाते हुए ग्राम पंचायत फ़ियावड़ी , उदाजी की भागल कालिंजर कुंभलगढ़ (प्रशासनिक अधिमान्यता के बाद) को गोद लेकर मानव जाति पर आये इस भयंकर संकट के समय अधिक से अधिक जरूरतमंदों की , हर प्रकार की सेवा कर मानवता की मिसाल स्थापित हो रही है। इस तरह के अनेकों मानवीय हित के कार्य कर अपने जीवन को धन्य करने वाले नानजीभाई गुर्जर , वास्तव में में एक महान संस्था से कम नहीं है। जो उदगार से ज़्यादा उद्धार और उपकार की सोच को गंगा जल से सिंचित करते आए हैं।
प्रमुख समाजसेवी , उद्योगपति एवं सर्व हितेषी संगठन आशापुरा मानव कल्याण ट्रस्ट के संस्थापक नानजीभाई गुर्जर के अनुसार “अपनी जन्म और कर्मभूमि के प्रति अपने कर्तव्य को निभाने, प्रकृति की संरक्षा में उपयुक्त कर्म करने के जो संस्कार निहित है उनको धर्म मजहब, जाती पाती के भेदभाव से ऊपर उठते हुए मानवीयता के साथ निभाने का संकल्प पूरा करना चाहता हूं। अपनी क्षमता अनुसार एक निर्धारित बजट में जो भी ईश्वरीय शक्ति द्वारा प्रदत बन पड़ता है, वह करने का सार्थक प्रयास किया जाता है। इस धरा पर प्रकृति का संतुलन बना रहे, कोई भूखा ना रहे, हर पीड़ा का उपचार हो। आशा की उम्मीद लगाए बैठे, हर जन के मैं काम आऊं। यही प्रबल आकांक्षा संजोए रखता हूं। ईश्वर मुझे शक्ति दे, और मैं उपकार कर्म निभाता जाऊं। यह इच्छा बनी रहती है।”

Comment: