जब औरंगजेब की धर्मांधता पूर्ण नीतियों के विरुद्ध जाट समाज उठ खड़ा हुआ था

 

-डॉ विवेक आर्य

वीर शिवाजी के समान मथुरा की वीर गोकुल सिंह की विजय गाथा।

सर यदुनाथ सरकार लिखते हैं – “मुसलमानों की धर्मान्धता पूर्ण नीति के फलस्वरूप मथुरा की पवित्र भूमि पर सदैव ही विशेष आघात होते रहे हैं. दिल्ली से आगरा जाने वाले राजमार्ग पर स्थित होने के कारण, मथुरा की ओर सदैव विशेष ध्यान आकर्षित होता रहा है. वहां के हिन्दुओं को दबाने के लिए औरंगजेब ने अब्दुन्नवी नामक एक कट्टर मुसलमान को मथुरा का फौजदार नियुक्त किया. सन १६७८ के प्रारम्भ में अब्दुन्नवी के सैनिकों का एक दस्ता मथुरा जनपद में चारों ओर लगान वसूली करने निकला. अब्दुन्नवी ने पिछले ही वर्ष, गोकुलसिंह के पास एक नई छावनी स्थापित की थी. सभी कार्यवाही का सदर मुकाम यही था. गोकुलसिंह के आह्वान पर किसानों ने लगान देने से इनकार कर दिया. मुग़ल सैनिकों ने लूटमार से लेकर किसानों के ढोर-डंगर तक खोलने शुरू कर दिए. बस संघर्ष शुरू हो गया.

तभी औरंगजेब का नया फरमान ९ अप्रेल १६६९ आया – “काफ़िरों के मदरसे और मन्दिर गिरा दिए जाएं”. फलत: ब्रज क्षेत्र के कई अति प्राचीन मंदिरों और मठों का विनाश कर दिया गया. कुषाण और गुप्त कालीन निधि, इतिहास की अमूल्य धरोहर, तोड़-फोड़, मुंड विहीन, अंग विहीन कर हजारों की संख्या में सर्वत्र छितरा दी गयी. सम्पूर्ण ब्रजमंडल में मुगलिया घुड़सवार और गिद्ध चील उड़ते दिखाई देते थे . और दिखाई देते थे धुंए के बादल और लपलपाती ज्वालायें- उनमें से निकलते हुए साही घुडसवार.

अत्याचारी फौजदार अब्दुन्नवी का अन्त

मई का महिना आ गया और आ गया अत्याचारी फौजदार का अंत भी. अब्दुन्नवी ने सिहोरा नामक गाँव को जा घेरा. गोकुलसिंह भी पास में ही थे. अब्दुन्नवी के सामने जा पहुंचे. मुग़लों पर दुतरफा मार पड़ी. फौजदार गोली प्रहार से मारा गया. बचे खुचे मुग़ल भाग गए. गोकुलसिंह आगे बढ़े और सादाबाद की छावनी को लूटकर आग लगा दी. इसका धुआँ और लपटें इतनी ऊँची उठ गयी कि आगरा और दिल्ली के महलों में झट से दिखाई दे गईं. दिखाई भी क्यों नही देतीं. साम्राज्य के वजीर सादुल्ला खान (शाहजहाँ कालीन) की छावनी का नामोनिशान मिट गया था. मथुरा ही नही, आगरा जिले में से भी शाही झंडे के निशाँ उड़कर आगरा शहर और किले में ढेर हो गए थे. निराश और मृतप्राय हिन्दुओं में जीवन का संचार हुआ. उन्हें दिखाई दिया कि अपराजय मुग़ल-शक्ति के विष-दंत तोड़े जा सकते हैं. उन्हें दिखाई दिया अपनी भावी आशाओं का रखवाला-एक पुनर्स्थापक गोकुलसिंह.

जब औरंगजेब के सेनापतियों धूल चटा दी औरंगजेब को खुद आकर लड़ना पड़ा। धोखे से बंदी बना लिया, अंग-अंग काट दिए लेकिन वीर गोकुला ने मुस्लिम बनना स्वीकार नहीं किया।

यह महान इतिहास गाथा जाकर यूनियनिस्टों को जाकर बताओ जो कहते है मुसलमान हमारे सदा से हितेषी हैं। हमारा उन्होंने कुछ कभी नहीं बिगाड़ा।

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