मिडिया द्वारा एक जनमानस बनाने की कोशिश हो रही है जो बताता है कि लव जेहाद काल्पनिक है. दलित उत्पीडन और मोब लिंचिग वास्तविक है.
वामपंथियों द्वारा इस तकनीक का बहुतायत में उपयोग किया गया है | भारत के परिप्रेक्ष्य में देखें तो हम हिन्दुओं के एक बड़े वर्ग (जिसे आज कल छद्म सेक्युलर कहा जाता है) को आज वामपंथी यह यकीन दिलाने में सफल हुए हैं कि जो भी समस्या है वह हिन्दुओं द्वारा प्रदत्त है, बल्कि हिंदुत्व ही सारी समस्याओं की जड़ है | जब भी किसी लिबरल सेक्युलर हिन्दू के मन में आता कि इस्लामी आतंकवाद में कोई समस्या है तो फिर बाबरी मस्जिद के नाम पर कभी दंगों के नाम पर उनके मन में यह संदेह उत्पन्न करने की कोशिश की जाती कि “नहीं हम में ही कुछ ना कुछ खोट है” |
कम्युनिष्ट शासन वाले देशों ने कभी भी इस्लामिक शरिया कानून को विचार लायक भी नहीं समझा. उनकी नजर में शरिया कानून ईश्वरीय कानून नहीं है. किसी भी मुस्लिम बहुल देश ने कम्युनिष्ट शासन पद्धति को नहीं माना. 90% मुस्लिम देशों में समाजवाद की बात करना भी अपराध है.
कम्युनिस्ट भारतीय राष्ट्रवाद के किसी भी शत्रु से सहकार्य करेंगे. भारतीयों को अब सोचना है. वक़्त ज्यादा नहीं है आज इस्लामिक आतंकवाद पर यदि कोई बोलना चाहता है तो सबसे पहले ये कम्युनिस्ट ही आतंकी को बचाने में सहायता करने आते हैं।
कुछ साल पहले कोच्चि में माकपा की बैठक में अनोखा नजारा देखने को मिला। मौलवी ने नमाज की अजान दी तो माकपा की बैठक में मध्यांतर की घोषणा कर दी गई। मुसलिम कार्यकर्ता बाहर निकले। रात को उन्हें रोजा तोड़ने के लिए पार्टी की तरफ से नाश्ता परोसा गया। यह बैठक वहां के रिजेंट होटल हाल में हो रही थी।
कुछ साल हुए. कन्नूर (केरल) से माकपा सांसद केपी अब्दुल्लाकुट्टी हज यात्रा पर गए। जब बात फैली तो सफाई दी कि अकादमिक वजहों से गए थे। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का कोई भी नेता केपी अब्दुल्लाकुट्टी के खिलाफ बोलने का साहस नहीं जुटा पा रहा है।’मगर यह सफेद झूठ था क्योंकि उन्होंने उमरा भी कराया था। अकादमिक वजहों से जाने वाला उमरा जैसा धार्मिक कर्मकांड नहीं कराएगा। ( उमरा —-सउदी जाकर मजहबी कर्त्तव्य करने को उमरा कहते हैं जैसे ख़ास तरह के वस्त्र धारण करना, बाल कटवाना आदि }
वहीं जब पश्चिम बंगाल के खेल व परिवहन मंत्री सुभाष चक्रवर्ती तारापीठ मंदिर गए तो पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने तो यहां तक कह दिया, ‘सुभाष चक्रवर्ती पागल हैं।
कम्युनिस्ट हिन्दुओं के मानबिन्दुओं का अपमान करने में ही सबसे आगे रहे हैं। इसलिए सीपीएम नेता कडकम्पल्ली सुरेंद्रन जब यह झूठ बोलते हैं कि ‘किसी भी संगठन द्वारा मंदिरों का इस्तेमाल हथियारों और शारीरिक प्रशिक्षण के लिए करना श्रद्धालुओं के साथ अन्याय है।’ तब हिन्दुओं के खिलाफ किसी साजिश की बू आती है। जिन्होंने कभी हिन्दुओं की चिंता नहीं की, वे हिन्दुओं की आड़ लेकर राष्ट्रवादी विचारधारा पर प्रहार करना चाह रहे हैं।
सरकार की नीयत मंदिरों पर कब्जा जमाने की है। केरल की विधानसभा में एक विधेयक पेश किया गया है। इस विधेयक के पारित होने के बाद केरल के मंदिरों में जो भी नियुक्तियाँ होंगी, वह सब लोक सेवा आयोग (पीएससी) के जरिए होंगी। माकपा सरकार इस व्यवस्था के जरिए मंदिरों की संपत्ति और उनके प्रशासनिक नियंत्रण को अपने हाथ में रखना चाहती है। मंदिरों की देखरेख और प्रबंधन के लिए पूर्व से गठित देवास्वोम बोर्ड की ताकत को कम करना का भी षड्यंत्र माकपा सरकार कर रही है। माकपा सरकार ने देवास्वोम बोर्ड को ‘सफेद हाथी’ की संज्ञा दी है और इस बोर्ड को समाप्त करना ही उचित समझती है।
दरअसल, दो अलग-अलग कानूनों के जरिए माकपा सरकार ने हिंदू मंदिरों की संपत्ति पर कब्जा जमाने का षड्यंत्र रचा है। एक कानून के जरिए मंदिर के प्रबंधन को सरकार (माकपा) के नियंत्रण में लेना है और दूसरे कानून के जरिए मंदिरों से राष्ट्रवादि विचारधारा को दूर रखना है। ताकि जब कम्युनिस्ट मंदिरों की संपत्ति का दुरुपयोग करें, तब उन्हें टोकने-रोकने वाला कोई उपस्थित न हो।
हमारे प्रगतिशील कामरेड वर्षों से भोपाल गैस कांड को लेकर अमेरिकी कंपनी तथा वहां के शासकों की निर्ममता के विरूध्द आग उगलते रहे हैं। लेकिन भोपाल गैस कांड के लिए दोषी यूनियन कार्बाइड की मातृ संस्था बहुराष्ट्रीय अमेरिकी कंपनी डाऊ केमिकल्स को हल्दिया-नंदीग्राम में केमिकल कारखाना लगाने के लिए बंगाल की कम्युनिस्ट सरकार न्यौता दिया था. यह कैसा मजाक और दोहरा मानदंड है। आप भोपाल गैस कांड के लिए दोषी प्रबंधकों तथा पीड़ितों को मुआवजा न देने वाले लोगों को दंडित करवाने के बजाय उनकी आरती उतारने के लिए बेताब हैं।
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सेक्युलरिज्म के नियम —
– अफजल गुरू, कसाब और मदानी जैसे आतंकवादियों के प्रति उदासीनता बरती जाए तब तो ऐसे लोग भी सेक्युलरवादी होते है परन्तु एमसी शर्मा के बलिदान का समर्थन किया जाए तो वे लोग साम्प्रदायिक बन जाते है।
एम.एफ. हुसैन सेक्युलर है परन्तु तस्लीमा नसरीन साम्प्रदायिक है, तभी तो उसे पश्चिम बंगाल के सेक्युलर राज्य से बाहर निकाल दिया गया।
इस्लाम का अपमान करने वाला डेनिश कार्टूनिस्ट तो साम्प्रदायिक है परन्तु हिन्दुत्व का अपमान करने वाले करूणानिधि को सेक्युलर माना जाता है।
मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के बलिदान का उपहास उड़ाना सेक्युलरवादी होता है, दिल्ली पुलिस की मंशा पर सवाल खड़ा करना सेक्युलरवादी होता है। बांग्लादेशी आप्रवासियों, विशेष रूप से मुस्लिमों का और एयूडीएफ का समर्थन करना सेक्युलर है, परन्तु कश्मीरी पंडितों का समर्थन करना साम्प्रदायिक है।
नंदीग्राम में 2000 एकड़ क्षेत्र में किसानों पर गोलियों की बरसात करना सेक्युलरिज्म है परन्तु अमरनाथ में 100 एकड़ की भूमि की मांग करना साम्प्रदायिक है।
मजहबी धर्मांतरण सेक्युलर है तो उनका पुन: धर्मांतरण करना साम्प्रदायिक होता है।
हिन्दू समुदाय के कल्याण की बात करना साम्प्रदायिक है तो उधर मुस्लिम तुष्टिकरण सेक्युलर है।कामरेडों का नमाज में भाग लेना, हज जाना और चर्च जाना तो सेक्युलरिज्म है परन्तु हिन्दूओं का मंदिरों में जाना या पूजा में भाग लेना सा
हिन्दू इनके बहकावें में क्यों आ जाता है?
क्यूंकि यह जानते है कि हिन्दू समाज असंगठित है। उसकी स्मृति बहुत कमजोर है। वह अपने इतिहास से कभी सीख नहीं लेता। वह जाति, गुरुडम, समाजिक रुतबे, धन-बल, प्रदेश, भाषा, प्रान्त आदि के नाम पर बुरी तरह विभाजित हैं। उसे सदा सेक्युलर बनने और अत्याचार को मौनरूप में सहने की शिक्षा दी गई हैं। उसे एक गाल पर थप्पड़ पड़ने पर दूसरा गाल आगे करने की शिक्षा दी गई है। इस कारण से वह सदा धर्मभीरु और चलता है जैसी आदत बना लेता है। इसका मुख्य कारण है इनका प्रभाव क्यूंकि हमारे देश का शिक्षा तंत्र, मीडिया तंत्र, सामाजिक तंत्र एक विशेष जमात के हाथों में हैं। हमारे चारों और एक मानसिक घेरा बना दिया गया है। जो हमें उस घेरे के बाहर सोचने का अवसर ही नहीं देता।
शहरी नक्सलियों ने 2019 के चुनाव में दुष्प्रचार करना आरम्भ किया है कि घृणा फैलाने वाले नेताओं को वोट न दे। अनेक बॉलीवुड के कलाकार, लेखक, मीडिया कर्मी, शिक्षक आदि ने एकत्र रूप से यह फ़तवा दिया हैं। ध्यान देने योग्य बात यह है कि कश्मीर से लेकर केरल तक, पाकिस्तान से लेकर बंगलादेश तक हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलती। हिंदु समाज के ऊपर हो रहे अत्याचारों को यह जमात कभी अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर नहीं उठाती।
1. अपने को आधुनिक, सभ्य दिखाने के लिए माँसाहार, चरित्रहीनता, नशाखोरी के पक्ष में कुतर्क देना।
2. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर बहुसंख्यक लोगों की मान्यताओं का तिरस्कार करना एवं अल्पसंख्यक की मान्यतों का समर्थन करना।
3. अपनी गलती का दोष ईश्वर अथवा बहुसंख्यक हिन्दुओं अथवा देश की सरकार को देना। जैसे भूकम्प आने पर ईश्वर के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगाना।
4. मानसिक रोग जैसे समलैंगिकता जैसे पशु समान व्यवहार को सही ठहरने के लिए कुतर्क देना।
5. वेद आदि धर्मग्रंथों के सत्य अर्थ को न समझ कर उनके गलत अर्थ को प्रचारित कर उनकी निंदा करना।
6. NGO बनाकर उसके चंदे से दंगाई मुसलमानों को शांतिप्रिय एवं हिन्दुओं को अत्याचारी सिद्ध करने का प्रयास करना।
7. NGO के माध्यम से देश की प्रगति को पर्यावरण एवं प्रदुषण के नाम पर रोकने का प्रयास करना।
8. विश्वविद्यालयों में वोट बैंक की राजनीती और मुस्लिम तुष्टिकरण एवं नास्तिकता को बढ़ावा देना।
9. देश की प्राचीन महान सभ्यता को जंगली एवं गंवार बताना।
10. प्राचीन महापुरुषों जैसे श्री राम, श्री कृष्ण आदि को मिथक एवं कल्पना बताना।
11. हिन्दू धर्म से सम्बंधित अंधविश्वासों को बड़ा चढ़ा कर बताना एवं अन्य मत-मतान्तर से सम्बंधित अंधविश्वासों पर मौन धारण कर जाना।
12. देश को तोड़ने के लिए विदेश से चंदा लेकर देश विरुद्ध कार्य करना।
13. देश के क्रांतिकारियों में साम्यवादी विचारधारा वाले क्रांतिकारियों को असली और गैर साम्यवादी विचारधारा वाले क्रांतिकारियों को नकली बताकर उनमें भेदभाव करना।
14. प्रचार तंत्र द्वारा युवाओं को भ्रमित करना।
15. जिस मिटटी में जन्में, जिस देश का अन्न खाया उस देश को गाली देना और विदेशियों के तलवे चाटना।