आओ जानें, अपने प्राचीन भारतीय वैज्ञानिकों के बारे में-3
गतांक से आगे…
सवाई जयसिंह-द्वितीय इनका जन्म 1668 ईं में हुआ। 13 वर्ष की आयु में अंबर के राजा बने। राजा होने के साथ साथ ये अपने समय के प्रसिद्घ ज्योतिषी तथा शिल्पकार भी थे। 1727 में जयपुर नगर बसाया जो स्थापत्य कला का अनूठा उदाहरण है। पंडित जगन्नाथ इनके गुरू थे। इन्होंने खगोल शास्त्र से संबंधित अनेक ग्रंथ पुर्तगाल, अरब तथा यूरोप से मंगवाकर उनका संस्कृत में अनुवाद करवाया। यूरोप से एक बड़ी दूरबीन भी इन्होंने मंगवाई। 1724 में दिल्ली में जंतर मंतर का निर्माण कराया तथा 1734 में सम्राट मोहम्मद शाह के सम्मान में एक पुस्तक फारसी में ‘जिज मोहम्मद शाही’ नाम से लिखवाई जिसमें सूची के रूप में अनेक प्रयोगों का वर्णन है। जंतर मंतर में पत्थरों सीमेंट से बड़े बड़े यंत्र बनवाए जिनका खाका उन्होंने स्वयं तैयार किया था। इन यंत्रों में सम्राट यंत्र (सूर्य घड़ी) राम यंत्र (सौर मंडल में स्थित बड़े पिंडों की दूरी नापने का यंत्र) तथा जय प्रकाश (सौर मंडल के पिंडों की स्थिति का पता लगाने का यंत्र) प्रमुख हैं। बाद में अन्य स्थानों पर भी जंतर मंतर बनवाए।
जगदीश चंद्र बसु-30 नवंबर 1858 को मयमारगंज (जो अब बंगलादेश में है) में जन्म हुआ। 1885 में कोलकाता के प्रेसिडेंसी कालेज में व्याख्याता के रूप में चयन हुआ किंतु भारतीय होने के कारण इनका वेतन यूरोपीयन व्याख्याताओं की तुलना में बाधा ही निर्धारित हुआ। इन्होंने पद स्वीकार कर लिया किंतु वेतन स्वीकार नही किया। तीन वर्षों के बाद इनके प्रिंसीपल ने इनकी प्रखर बुद्घि का लोहा मानते हुए, इन्हें पूरा वेतन दिलवाया। 10 मई 1901 को रॉयल सोसाइटी के वैज्ञानिकों के सम्मुख अपना शोध पत्र पढ़ा तथा प्रयोग द्वारा सिद्घ किया कि पौधों में जीवन होता है। बेतार के तार का भी इन्होंने सर्वप्रथम आविष्कार किया, किंतु इसका श्रेय एक साल बाद मार्कोनी को मिला। माइक्रोवेव बनाने का श्रेय भी इन्हीं को है। इनके द्वारा बनाया गया यंत्र आज भी अनेक इलेक्ट्रानिक तथा न्यूक्लियर यंत्रों में आवश्यक पुर्जों के रूप में प्रयोग किये जाते हैं इनका सर्वोत्तम आविष्कार क्रेस्कोग्राफ नामक यंत्र है जो पेड़ पौधों की बढ़त को नाप सकता है जिसकी चाल घोंघे की चाल से भी 20000 गुना कम होती है। इन्होंने कलकत्ता में वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए बोस इंस्टीट्यूट की स्थापना की। 23 नवंबर 1937 को इनका देहांत हो गया।
पीसीरे-प्रफुल्ल चंद्र राय का जन्म 2 अगस्त 1861 को रारूली काटीपुरा (अब बंगलादेश) में हुआ। संस्कृत, लेटिन, फेंच तथा अंग्रेजी के मर्मज्ञ होने के साथ साथ ये राजनीति शास्त्र, अर्थशास्त्र तथा इतिहास के भी विद्वान थे। विज्ञान की ओर इनका रूझान बेंजामिन फ्रेंकलिन की जीवनी पढऩे पर हुआ जिसमें उसने पतंग द्वारा प्रयोग के विषय में लिखा था। 1888में एडिनवरा से डिग्री लेकर कोलकाता के प्रेसीडेंसी कालेज में प्रवक्ता के रूप में काम दिया। इन्होंने बंगाल कैमिकल एवं फार्मेस्यिूटिकल वक्र्स की स्थापना की। इन्हें भारतीय रसायन उद्योग का जनक कहा जाता है। इनकी सर्वप्रथम खोज सोडा फोस्फेट है जिससे अनेक दवाईयां बनती हैं। मरक्यूरस नाइट्रेट तथा इसके अनेक उत्पादों को भी इन्होंने सर्वप्रथम बनाया। इन आविष्कारों से वह अकूत संपदा के स्वामी बन सकते थे किंतु इन्होंने सदा एक साधु के रूप में जीवन व्यतीत किया The History of Hindu Chemistry इनकी प्रसिद्घ पुस्तक है। इनका निधन 1944 में हुआ ।
डीएस वाडिया-आप का जन्म 25 अक्टूबर 1883 में सूरत गुजरात में हुआ। बड़ौदा कालेज से एमएससी पास करने के बाद प्रिंस आफ वेल्स कालेज में जम्मू में नौकरी आरंभ की। यहां उन्हें हिमालय के शिला खंडों में रूचि पैदा हुई और उस क्षेत्र में कार्यरत रहते हुए अनेक उपलब्धियां हासिल कीं। वहां उन्होंने उन शिलाखंडों के बनने तथा बढऩे की क्रिया का खुलासा किया तथा अनेक पेचीदा गुत्थियों को सुलझाया। क्रमश: