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कोरोना संकट के चलते तेल बाज़ार में कोहराम

उगता भारत ब्यूरो

नई दिल्ली। अमरीकी कच्चे तेल की कीमतें इतिहास में पहली बार ज़ीरो से भी नीचे पहुंच गई हैं यानी नेगेटिव हुई हैं।यह गिरावट का सबसे निचला रिकॉर्ड स्तर है। कच्चे तेल की मांग घटने और स्टोरेज की कमी की वजह से तेल कीमतों में यह गिरावट आई है।
इस गिरावट के मायने यह हैं कि तेल उत्पादक देश अब खरीदारों को पैसे देकर तेल खरीदने की गुजारिश कर रहे हैं क्योंकि उन्हें डर है कि अगर तेल नहीं बिका तो स्टोरेज की समस्या भी बढ़ेगी।
लॉकडाउन की वजह से दुनियाभर में लोग घरों में है, तेल की मांग में कमी की यह भी एक बड़ी वजह है।
स्टोरेज की समस्या को देखते हुए कई तेल फर्म टैंकर किराए पर ले रही हैं ताकि बढ़ा हुआ स्टॉक रखा जा सके लेकिन इसका असर अमरीका की तेल कीमतों पर हुआ और वो नेगेटिव हो गईं यानी ज़ीरो से नीचे चली गईं।
वेस्ट टेक्सस इंटरमीडिएट (WTI) जिसे अमरीकी तेल का बेंचमार्क माना जाता है, में कीमतें गिरकर माइनस 37.63 डॉलर प्रति बैरल हो गई हैं।
अमरीकी स्टोरोज फैसिलिटी अब तेल की फीकी पड़ती चमक और मांग में कमी दोनों से परेशान हैं।
सोमवार को आई गिरावट का असर दुनियाभर के तेल बाज़ारों में हुआ है।
अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क ब्रेंट में भी कच्चे तेल के दाम में 8.9 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई।यहां तेल की कीमत गिरकर 26 डॉलर प्रति बैरल हो गई।
ऑयल इंडस्ट्री मांग में कमी और उत्पादकों के बीच प्रोडक्शन कम करने को लेकर छिड़ी बहस की वजह से पहले ही मुश्किलों से जूझ रही थी।
इस महीने की शुरुआत में, ओपेक सदस्य देशों और इसके सहयोगी तेल उत्पादन में 10 फ़ीसदी तक की कमी लाने को राज़ी हुए थे। तेल उत्पादन में इतनी बड़ी कमी लाने को लेकर यह पहली डील थी।
हालांकि कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि तेल उत्पादन में कमी लाकर बहुत ज़्यादा मुश्किलें नहीं सुलझीं।
एक्सिकॉर्प के चीफ़ ग्लोबल मार्केट स्ट्रैटेजिस्ट स्टीफ़न इन्स ने कहा, ”बाज़ार को यह समझने में देर नहीं लगी कि ओपेक प्लस तेल कीमतों में संतुलन नहीं बना पाएगा, ख़ास मौजूदा हालात में तो बिल्कुल नहीं.”तेल बाज़ार में संकट लंबा चल सकता है?
एड्रयू वॉकर का मानना है कि दुनिया के पास फिलहाल इस्तेमाल की ज़रूरत से ज़्यादा कच्चा तेल है और आर्थिक गिरावट की वजह से दुनियाभर में तेल की मांग में कमी आई है।
तेल के सबसे बड़े निर्यातक ओपेक और इसके सहयोगी जैसे रूस, पहले ही तेल के उत्पादन में रिकॉर्ड कमी लाने पर राज़ी हो चुके थे।अमरीका और बाकी देशों में भी तेल उत्पादन में कमी लाने का फ़ैसला लिया गया था।लेकिन तेल उत्पादन में कमी लाने के बावजूद दुनिया के पास इस्तेमाल की ज़रूरत से अधिक कच्चा तेल उपलब्ध है।
उनका मानना है कि सवाल सिर्फ़ इस्तेमाल का नहीं है, सवाल यह भी है कि क्या लॉकडाउन खुलने और हालात सामान्य होने के इंतज़ार में तेल उत्पादन जारी रखकर इसे स्टोर करते रहना सही है?
समंदर और धरती पर भी स्टोरेज तेज़ी से भर रहे हैं,स्टोरोज की कमी भी एक समस्या बन रही है। साथ ही कोरोना महामारी से बाहर आने के बाद भी दुनिया में तेल की मांग धीरे-धीरे बढ़ेगी और हालात सामान्य होने में लंबा वक़्त लगेगा।क्योंकि यह सब कुछ स्वास्थ्य संकट के निपटने पर निर्भर करता है।

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