इतिहास का महानायक नागभट्ट द्वितीय जिसने अब से 1200 वर्ष पहले कराई थी ‘घर वापसी’ और जिसके भय से मुसलमानों ने बसाया था शहरे महफूज
मिहिर भोज के ग्वालियर अभिलेख में नागभट्ट द्वितीय की मुसलमानों पर प्राप्त की गई विजय का उल्लेख किया गया है । जिससे यह भी पता चलता है कि मुसलमानों के राज्य को नागभट्ट द्वितीय छीनने में सफल रहा था । इसी प्रकार अरब लेखक बालाधुरी ने भी यह स्वीकार किया है कि समस्त सिन्ध गुर्जर साम्राज्य के अधीन हो गया था । उसने यह भी लिखा है कि सिंध नदी इस समय गुर्जर साम्राज्य के बीच बहती है । वहाँ पर जो लोग मुसलमान बन गए थे , वह फिर काफिर बना लिए गए हैं।
अरब के इस लेखक के द्वारा की गई यह टिप्पणी बहुत महत्वपूर्ण है कि सम्राट नागभट्ट द्वितीय के शासनकाल में सिंध प्रांत में उन लोगों को फिर से हिंदू बनाया गया जो पहले इस्लाम में दीक्षित हो गए थे।
सिन्ध और उसके आसपास के विशाल भू-भाग में पिछले लगभग डेढ़ सौ वर्ष से इस्लामीकरण की प्रक्रिया कभी धीरे-धीरे तो कभी तेज गति से चल रही थी । आप कल्पना करें कि कितने लोगों को इतने दीर्घकाल में अरब वाले लोग मुसलमान बना चुके होंगे ? उसके उपरान्त यह विचार करने योग्य है कि डेढ़ सौ वर्ष के ‘अपराधों’ को सम्राट नागभट्ट द्वितीय ने धोने का निर्णय लेकर कितना बड़ा क्रांतिकारी और देशभक्ति से भरा हुआ ऐतिहासिक निर्णय लिया था , इस क्रांतिकारी और ऐतिहासिक निर्णय में उस सम्राट की दूरदर्शिता और उसका रणनीतिक कौशल भी स्पष्ट होता है । उसने विचार किया कि यहाँ मुसलमानों के रहने से देश के लिए संकट बना रहेगा इसलिए देश के भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए हिन्दू से मुसलमान बने लोगों की ‘घर वापसी’ सुनिश्चित की जानी चाहिए ,यह उसकी दूरदर्शिता थी । उसने हिन्दू से मुसलमान बने लोगों को फिर ‘घर वापसी’ का आमंत्रण दिया और उन्हें देशभक्त बनाकर जो मुस्लिम वहाँ पर आकर बस गए थे ,उन्हें भगाने के लिए अपने ही लोगों का प्रयोग करने का विचार उसने क्रियान्वित किया , यह उसका रणनीतिक कौशल था।
इसमें सम्राट नागभट्ट द्वितीय का संस्कृति प्रेम स्पष्ट झलकता है । साथ ही उनकी उस योजना की भी झलक मिलती है कि वह इस सीमावर्ती क्षेत्र में ऐसी किसी ‘बीमारी’ को प्रवेश करने से रोकने के प्रति बहुत अधिक सचेत और सावधान थे , जिससे आगे चलकर किसी भी प्रकार की समस्या खड़ी हो सकती थी । कहने का अभिप्राय है कि वह नहीं चाहते थे कि इन क्षेत्रों का इस्लामीकरण हो और बाद में फिर इस्लामी संस्कृति को अपनाने वाले लोग ही एक अलग देश मांगें या इसी आधार पर देश का दुर्भाग्यपूर्ण ‘बंटवारा’ करना पड़ जाए । वास्तव में यह नागभट्ट द्वितीय की बहुत बड़ी सफलता भी थी , साथ ही उसकी दूरदर्शिता को प्रकट करने वाली उसकी राष्ट्रवादी सोच को प्रकट करने वाला उसका ऐतिहासिक निर्णय भी था । जिसका जितना अधिक अभिनंदन किया जाए उतना ही कम है । क्योंकि बाद की घटनाओं ने यह सिद्ध भी किया कि जहाँ – जहाँ इस्लाम अपनी संख्या बढ़ाने में सफल हो गया वहीं – वहीं देश के बंटवारे की आवाजें उठनी आरंभ हुईं या कुछ समय उपरान्त वे लोग अपना अलग देश लेने में सफल हो गए।
इस घटना के घटित होने से हमें यह भी पता चलता है कि जो हमारे हिन्दू भाई उस समय जबरन इस्लाम में दीक्षित कर लिए गए थे , उनके भीतर भी अपने वैदिक धर्म में लौटने की प्रबल और उत्कट अभिलाषा थी । उनकी इस जनभावना और मनोभावना का सम्मान करते हुए ही नागभट्ट द्वितीय ने यह ऐतिहासिक निर्णय लिया था । इसी के साथ-साथ यह भी समझने की बात है कि इस घटना का अरब के उन लोगों पर बड़ा निराशाजनक प्रभाव पड़ा जो भारत में इस्लामीकरण की अपनी प्रक्रिया को सिरे चढ़ाने के लिए कुछ लोगों को हिन्दू से मुसलमान बना गए थे। निश्चय ही उनकी भावनाओं पर गहरा आघात लगा और उन्हें इस बात का आभास भी हुआ कि भारत अपने धर्म के प्रति कितना समर्पित है ?
जो लोग भारत में यह सोचते हैं कि भारतवर्ष में इस्लामीकरण की प्रक्रिया को रोकने के लिए कोई उपाय नहीं किए गए और जो व्यक्ति जहाँ पर मुसलमान बन गया , उसे मुसलमान ही बना रहने दिया गया , उन्हें भी इस उदाहरण से पता चलेगा कि यहां पर ‘घर वापसी’ की प्रक्रिया कितनी पुरानी है ? साथ ही इतिहास का यह निराशाजनक पक्ष भी इससे स्वत: दूर हो जाएगा कि भारत केवल सोता रहा और विदेशी उसे लूटते व नोंचते रहे । इस घटना से हमारे भीतर इस आशा का संचार होना भी अनिवार्य है कि भारत ना तो सो रहा था और ना ही अपने आपको किसी गिद्ध के द्वारा नोंचने दे रहा था , क्योंकि उसके पास नागभट्ट द्वितीय जैसे सजग जागरूक देशभक्त और सच्चे राष्ट्र नायक थे।
मुसलमानों ने बसाया ‘अलमहफूज’
जब मुसलमानों ने देखा कि उनके द्वारा हिन्दू से जबरन मुसलमान बनाए गए लोगों की ‘घर वापसी’ कर नागभट्ट द्वितीय ने अपनी सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित रखने का बहुत ही महत्वपूर्ण और दूरदर्शिता पूर्ण कार्य सम्पन्न कर लिया है तो उनके गड़े हुए झंडे सिंध और उसके आसपास के सम्पूर्ण क्षेत्र से उखड़ गए । इसके साथ ही उन्हें यह भी आभास हो गया कि अब यहाँ रुकना कठिन होगा । क्योंकि जो लोग मुसलमान से फिर अपने मूल वैदिक धर्म में लौटे थे वह अपने राष्ट्रनायक गुर्जर सम्राट नागभट्ट द्वितीय से प्रेरणा लेकर और उसकी ऊर्जा से उर्जावन्त होकर इन मुसलमान आक्रमणकारियों के प्रति बहुत अधिक उग्र हो गए थे । वह नहीं चाहते थे कि यह मुस्लिम लोग उन्हें अपने इस क्षेत्र में दिखाई दें , क्योंकि वह इन्हें अपने लिए एक ऐसी घातक ‘बीमारी’ मानते थे जो हमारे देश व धर्म के लिए संकटप्रद हो सकती थी।
स्थानीय निवासियों के इस प्रकार के आचरण से सम्राट नागभट्ट को यह लाभ हुआ कि उसने अपने ही लोगों को अपने साथ लाकर उन्हें अपना कट्टर समर्थक बनाकर वहाँ देश – धर्म की रक्षा के लिए उन्हें एक सिपाही के रूप में खड़ा कर दिया । इसके विपरीत इन लोगों के देशभक्ति पूर्ण आचरण और कार्य व्यवहार से अरब आक्रमणकारियों को यह क्षति हुई कि उन्होंने जिन ‘पौधों’ को रोपा था , वही उनके लिए ‘सिरदर्द’ बन गए और अपने ‘घर वापस’ जाकर अब उन्हें यहाँ से उखाड़ने की गतिविधियों में लग गए। फलस्वरूप देश की सशक्त , सक्षम और देश धर्म के प्रति समर्पित केंद्रीय सत्ता के और सभी स्थानीय निवासियों के अपने प्रति विरोध के भाव के कारण भारत की सीमाओं में बलात प्रवेश करने में सफल हुए ये मुसलमान अपने झंडे उखाड़ कर वहाँ से भाग लिए। तब उन्होंने अपने लिए एक सुरक्षित स्थान ‘शहरेमहफूज’ अथवा ‘अलमहफूज’ बसाया और अपने आपको वहीं तक केन्द्रित कर लिया । इन मुसलमानों के ‘शहरेमहफूज’ या ‘अलमहफूज’ में रहने से सम्राट नागभट्ट द्वितीय को भी यह सुविधा हो गई कि वह उन पर एक स्थान विशेष तक नजर रखने लगा कि यहाँ से यह लोग आगे नहीं बढ़ने चाहिए। इस प्रकार ‘शहर -ए -महफूज’ के बसाने के पीछे भी गुर्जर सम्राट नागभट्ट द्वितीय की योजना का गौरवपूर्ण इतिहास छिपा है । दुर्भाग्य से आज के प्रचलित इतिहास में इस घटना को इस प्रकार वर्णित नहीं किया जाता। वैसे ‘मौलाना अबुल कलाम आजाद छाप इतिहास’ में इस घटना को स्थान मिलना भी सम्भव भी नहीं था । इस घटना का वर्णन तो वही करेगा जो भारत और भारतीयता से प्रेम करेगा।
अरब लेखक का यह वर्णन 9 वीं शताब्दी के गुर्जर साम्राज्य के सम्राट नागभट्ट द्वितीय और मिहिरभोज के शासन काल के समय का है । इतिहास की यह एक गौरवमयी साक्षी है कि सिन्ध का पूर्वी भाग नागभट्ट द्वितीय के समय तथा पश्चिमी भाग मिहिरभोज जैसे पराक्रमी सम्राट के समय विजय करके गुर्जर साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया गया था। उस समय अरबों का अधिकार केवल मंसूरा और मुल्तान के दो स्थानों तक ही सीमित होकर रह गया था । इससे स्पष्ट होता है कि वे लोग गुर्जरों के आक्रमण से कहीं पर भी अपने आपको सुरक्षित अनुभव नहीं कर रहे थे और उन्हें मुंह छिपाने के लिए स्थान मिलना भी कठिन हो गया था । जो लोग मुसलमान से फिर हिन्दू बनाए गए थे , उनके बारे में यह तथ्य भी जानने योग्य है कि वे देवलाचार्य द्वारा ‘देवलस्मृति’ के अनुसार चलाई गई ‘शुद्धि’ का परिणाम थे । यद्यपि यह शुद्धि अभियान नागभट्ट प्रथम के शासनकाल से ही चला आ रहा था , जिसे नागभट्ट द्वितीय के शासनकाल में और भी अधिक बल मिला।
ऐसे में हमें यहाँ पर महान देशभक्त और संस्कृतिरक्षक देवल आचार्य जी को भी नमन करना चाहिए , जिनके सदप्रयासों से उस समय हमारे राजनीतिक नेतृत्व ने यह ऐतिहासिक और क्रांतिकारी निर्णय लिया । देवल आचार्य जी का यह ‘शुद्धि आंदोलन’ ही कालान्तर में लगभग 1100 वर्ष पश्चात स्वामी श्रद्धानन्द जी जैसे महान आर्यसमाजी और हिंदू महासभाई नेता के लिए प्रेरणा का स्रोत बना। जिन्होंने ‘शुद्धि आंदोलन’ की इसी परंपरा को पुनर्जीवित कर देश की महान सेवा करते हुए 500000 मलकाने राजपूतों को मुसलमान से फिर हिन्दू बनाया था।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत