ललित गर्ग
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जब राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को इस बात के लिये तैयार किया कि कोटा (राजस्थान) में फंसे हजारों विद्यार्थियों को मुसीबत से निकाल कर उनके गृह-स्थानों तक पहुंचाया जाये, तो इससे उन्होंने अपने राजनीतिक धर्म का ही पालन किया।
कोरोना वायरस का मुकाबला करने में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एवं उनके नेतृत्व में उत्तर प्रदेश सरकार ने जो मुस्तैदी दिखाई है, वह काबिले-तारीफ है। लॉकडाउन के दौरान हर धर्म, वर्ग और स्तर के लोगों की सुविधा एवं सहायता के लिए जो कदम उठाए गये हैं, उन कदमों ने पीड़ित एवं असहाय लोगों के जीवन में उजाला बिखेरा है, एक सक्षम एवं प्रभावी नेतृत्व की विशेषताओं से जन-जन को आश्वस्त किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हों या मुख्यमंत्री योगी- अपने फैसलों से कोरोना महासंकट में लोक कल्याण के सच्चे भावों एवं संवेदनाओं को पल-पल उजागर किया है जिससे वे समूची दुनिया की शासन व्यवस्थाओं के लिये एक प्रेरणा बने हैं।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जब राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को इस बात के लिये तैयार किया कि कोटा (राजस्थान) में फंसे हजारों विद्यार्थियों को मुसीबत से निकाल कर उनके गृह-स्थानों तक पहुंचाया जाये, तो इससे उन्होंने अपने राजनीतिक धर्म का ही पालन किया। इसके लिए योगी ने निर्णय लेकर उत्तर प्रदेश परिवहन की सैंकड़ों बसें लॉकडाऊन के सख्त पहरे में विद्यार्थियों को ढांढस बन्धाने कोटा भेजीं, जहां से पूर्ण सर्तकता एवं लॉकडाउन नियमों के तहत विद्यार्थियों को उनके गंतव्य तक पहुंचाया गया, इस कदम से जहां विद्यार्थियों के घरों में सुखद सन्देश के स्वर गूंजे, वहीं एक बड़ी राहत की सांस इन परिवारों ने ली।
बात केवल विद्यार्थियों को उनके घरों तक पहुंचाने के लोकहितकारी निर्णय की ही नहीं है, बल्कि ऐसे अनेक संवेदनशील, जनकल्याणकारी एवं मानवतावादी निर्णय तत्परता, सूझबूझ से लेने की भी है। ऐसा ही एक लोक कल्याणकारी निर्णय यह भी है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत 30 जून तक राशन कार्ड और आधार कार्ड की अनिवार्यता स्थगित करके हर जरूरतमंद को राशन उपलब्ध करवाया जाए। मुख्यमंत्री पहले ही कम्युनिटी किचन के जरिये हर शहर में प्रतिदिन लाखों लोगों को पका हुआ भोजन उपलब्ध करवा रहे हैं। जब लॉकडाउन के कारण सारे काम-धंधे ठप्प हैं और हर दिन कमाकर जीवनयापन करने वाले लाखों लोगों के सामने पेट भरने का संकट है, उस समय मुख्यमंत्री की यह संवेदनशीलता बेहद मायने रखती है।
आदर्श एवं सशक्त लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था का मूल तत्व लोक कल्याण है। इस कसौटी पर योगी आदित्यनाथ इस तरह खरे उतरे हैं कि उनके भगवा वस्त्रों की कीर्ति अधिक उज्ज्वल होकर समाज में नव ऊर्जा, आशा एवं नये जीवन का संचार करती प्रतीत होती है। योगीजी की आलोचना करने वाले एवं उनके प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दल उनके आदेशों को लोक प्रताड़ना एवं हिन्दू एजेंडे के दायरे में खड़ा करने का प्रयास करते हैं परन्तु कोरोना संकट ने उनके साधु स्वभाव को जिस तरह चित्रित किया है उससे साफ हो गया है कि योगी लोकतंत्र के सजग प्रहरी, सच्चे सेवक एवं राजनीति में मूल्यों की प्रतिष्ठा के प्रेरक हैं। उनका भगवामय बेदाग जीवन एक खुली किताब हैं जिसे कोई भी कभी भी पढ़ सकता है। उनका जीवन एक योगी का जीवन है, सन्त का जीवन है एवं जीवंत समाज उद्धारक का जीवन है। पीड़ित, गरीब, असहाय के प्रति करुणा, किसी के भी प्रति अन्याय एवं अत्याचार के विरुद्ध तनकर खड़ा हो जाने का निर्भीक मन, विचारधारा एवं सिद्धान्त के प्रति अटल, लाभ-हानि, मान-सम्मान की चिन्ता किये बगैर साहस के साथ किसी भी सीमा तक जाकर लोकतंत्र, मानवता, धर्म एवं संस्कृति की रक्षा का प्रयास उनकी पहचान है। इन्हीं विशेषताओं एवं विलक्षणताओं के चलते वे कोरोना महासंकट की मुक्ति के एक सफल योद्धा बन कर जरूरतमंदों के लिए बढ़-चढ़कर योगदान कर रहे हैं।
योगी आदित्यनाथ सिर्फ भगवा एजेंडे के लिए चिंतित न होकर अपने राजनीतिक धर्म के प्रयोक्ता भी हैं। कोरोना का संक्रमण थामने और इस संकट के दौरान प्रदेश के हर आम-जन की सुविधा के लिए मुख्यमंत्री ने जो प्रबंधन किया, उस मॉडल की हर कोई चर्चा एवं सराहना कर रहा है। प्रदेश सरकार ने जनता कफ्र्यू के दौरान की सख्त पाबंदियां लागू करके कोरोना कहर की राह रोकने को मजबूत किलेबंदी की थी, पर तब्लीगी जमात फैक्टर ने उस कवायद को गहरा आघात पहुंचाया। इसके बावजूद योगी ने हालात काबू करने के लिए नए सिरे से व्यूहरचना की। जमातियों के कारण कोरोना संक्रमित रोगियों की संख्या में बेशक इजाफा हुआ है, पर हालात बेकाबू नहीं हुए। इसका श्रेय योगी सरकार की सर्तकता, सूझबूझ एवं तत्परता से लिये निर्णयों के साथ-साथ सरकारी तंत्र की मेहनत और जबावदेही को मिलना चाहिए। डॉक्टरों, पुलिसकर्मियों और सफाईकर्मियों ने भी जिस तरह जोखिम उठाकर चिकित्सा, सुरक्षा और स्वच्छता का धर्म निभाया, वह प्रेरक है।
एक पुरानी कहावत है कि संकट के समय ही व्यक्ति के चरित्र का पता चलता है। कहावत यह भी है कि संकट की गोद से ही मजबूत नेतृत्व अर्थात् मजबूत शासक का उदय होता है। योगीजी ऐसे ही सफल शासक हैं। वे निरन्तर कोरोना मुक्ति एवं इस संक्रमण से अपने प्रांत के लोगों को बचाने एवं उनको निरोगी बनाने के लिये अधिक असरदार समाधानों की खोज करते रहते हैं और इसके साथ ही समूचे देश के साथ अपने ज्ञान, प्रयोग और विशेषज्ञता को सांझा करते हैं। वे रोग को जड़ से समाप्त करने एवं लंबे समय के बदलाव पर जोर देते हैं। उनका नेतृत्व इसलिये भी अनूठा एवं विलक्षण है कि वे तब तक कभी हार नहीं मानने के लिये दृढ़ संकल्पित है, जब तक कि पूरा प्रांत एवं देश कोरोना महामारी से मुक्त नहीं हो जाता।
पीड़ित मानवता की सेवा के लिये ही योगी ने वैभवपूर्ण ऐश्वर्य का त्यागकर कंटकाकीर्ण पगडंडियों का मार्ग स्वीकार किया है। अभी उनके जीवन का उद्देश्य कोरोना महासंकट से मुक्ति है, वे केवल प्राणिमात्र के कष्टों का निवारण ही चाहते हैं। योगी आदित्यनाथ को निकट से जानने वाला हर कोई यह जानता है कि वे उपर्युक्त अवधारणा को साक्षात् जीते हैं। वरना जहाँ सुबह से शाम तक हजारों सिर उनके चरणों में झुकते हों, जहाँ भौतिक सुख और वैभव के सभी साधन एक इशारे पर उपलब्ध हो जायें, जहाँ मोक्ष प्राप्त करने के सभी साधन एवं साधना उपलब्ध हों, ऐसे जीवन का प्रशस्त मार्ग का त्याग कर मान-सम्मान की चिंता किये बगैर, निरन्तर अपमान का हलाहल पीते हुए इस कंटकाकीर्ण मार्ग का वे अनुसरण क्यों करते? जिन लोगों ने गोरखपुर के सांसद के रूप में उनके कार्यकाल को देखा है वे भलीभांति जानते हैं कि अपने इलाके में जापानी बुखार (एन्सिफलाइटिस) को समाप्त करने के लिए उन्होंने अपने चारों लोकसभा सदस्य काल में किसी भी सरकार को चैन से नहीं बैठने दिया, फिर भला प्रदेश की सर्वोच्च सत्ता पर रहते हुए वे कोरोना मुक्ति के महासंग्राम में कैसे चैन से बैठ सकते हैं?
योगी आदित्यनाथ ने अपने राज्य में डॉक्टरों या चिकित्साकर्मियों अथवा पुलिसकर्मियों पर कुछ लोगों द्वारा किये जा रहे हमलों को इतनी गंभीरता के साथ लिया कि ऐसे जाहिल एवं जेहादी लोगों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम तक लागू करने का आदेश दिया। कोरोना महामारी जैसी मानव विध्वंसक घड़ियों में तथाकथित धर्म-विशेष के लोगों के अमानवीय कृत, बचाने वाले लोगों को मारने का चरित्र एवं लॉकडाऊन की शर्तों को गैरजरूरी तक समझने की गलती करने वाले लोगों के श्रीहीन कारनामे कड़े दंड के ही पात्र हैं। कोरोना योद्धाओं के मानव बचाने के अभियान को समझने की बजाय अगर उन्हें खलनायक बना कर व्यवहार किया जाये तो कौन-सा धर्म और समाज इसे स्वीकार कर सकता है? यदि योगीजी ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने के आदेश दे रहे हैं तो यह उनका राजनीतिक धर्म ही है। उत्तर प्रदेश में जमाती सोच के मनोबल को तोड़ना उनकी प्राथमिकता इसलिये भी है कि इसी से कोरोना मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। प्रदेश इसी तरह कोरोना-आतंक एव महामारी मुक्त होने की राह पर तेजी से बढ़ चला है।