कोरोना महामारी के चलते सभी शिक्षण संस्थाओं को फीस माफ करनी चाहिए
संतोष पाठक
यह सर्वविदित तथ्य है कि देश का हर अभिवावक अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में ही पढ़ाना चाहता है। दूसरी ओर प्राइवेट स्कूलों का आलम तो यह है कि वो हर कीमत पर बच्चों की पढ़ाई के नाम पर उनके अभिभावकों की जेबें ढीली करता रहता है।
कोरोना संक्रमण के खतरे को देखते हुए देशभर में दूसरे चरण का संपूर्ण लॉकडाउन लागू कर दिया गया है। 3 मई तक सार्वजनिक परिवहन के सभी साधन-रोडवेज की बसें, ट्रेन और हवाई जहाज पूरी तरह से बंद है। भीड़भाड़ की संभावना वाली सभी जगहों- मॉल, होटल, बाजार, सिनेमा हॉल यहां तक कि स्कूल और कॉलेज भी पूरी तरह से बंद हैं। सब यह उम्मीद लगा रहे हैं और दुनियाभर के अनुभव भी यही बताते हैं कि घर में कैद रहकर ही कोरोना को हराया जा सकता है। ऐसे माहौल में देश के लाखों लोगों की आमदनी भी बंद हो गई है। प्रधानमंत्री भले ही अपील कर रहे हों कि किसी को भी नौकरी से नहीं निकाला जाए। लेकिन कड़वी सच्चाई तो यही है कि लोगों की नौकरियां जा रही हैं और जिनकी बच भी रही हैं, उन्हें वेतन में कटौती का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में बच्चों की शिक्षा के सामने भयावह संकट खड़ा हो गया है।
यह तो अब सर्वविदित तथ्य है कि देश का हर अभिवावक अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में ही पढ़ाना चाहता है। प्राइवेट स्कूलों का आलम तो यह है कि वो हर कीमत पर बच्चों की पढ़ाई के नाम पर उनके अभिभावकों की जेबें ढीली करता रहता है। शिक्षा का स्तर भले ही जो हो लेकिन ये प्राइवेट स्कूल कॉपी और किताबें महंगें दामों पर बेचते हैं। ड्रेस बेचने पर रोक लगाई गई तो इन्होंने इस बात की पुख्ता व्यवस्था कर दी कि बाहर भी अभिभावक एक ही दुकान से ड्रेस लें जो बाजार से कई गुणा ज्यादा महंगा होता ही है। दुर्भाग्यजनक स्थिति तो यह है कि कोरोना महामारी और लॉकडाउन के संकट के समय पर भी ये स्कूल अपनी मनमानी से बाज नहीं आ रहे। राजधानी दिल्ली समेत देश के कई राज्यों से इस तरह की खबरें आ रही हैं कि स्कूल वालों ने फीस बढ़ा दी है और पैरेंट्स पर अप्रैल-मई-जून यानि तीन महीनों की फीस एक साथ जमा करने का दबाव बनाया जा रहा है। यह महीना नई कक्षा के शुरू होने का होता है इसलिए वार्षिक शुल्क, विकास शुल्क जैसे कई शुल्क वसूलना स्कूल पहले से ही अपना अधिकार मानते आये हैं।
ऐसे कठिन और नाजुक दौर में यह जरूरी हो जाता है कि स्कूलों की मनमानी पर लगाम लगाने और अभिभावकों को राहत देने के लिए सरकारें सामने आएं। सभी राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर पर सामने आएं। कई राज्य सरकारें इसे लेकर आगे भी आई हैं। शुक्रवार को दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने इसे लेकर कई महत्वपूर्ण ऐलान किए हैं। फीस बढ़ाने वाले स्कूलों को कड़ी चेतावनी देते हुए दिल्ली के उपमुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि दिल्ली में कोई भी स्कूल चाहे वो प्राइवेट हो या सरकारी, सरकार की इजाजत के बिना स्कूल की फीस नहीं बढ़ा सकते हैं। इसके साथ ही कोरोना वायरस के लॉकडाउन की वजह से परेशान दिल्ली के अभिवावकों को बड़ी राहत देते हुए केजरीवाल सरकार ने यह साफ कर दिया कि दिल्ली के प्राइवेट स्कूल एक साथ तीन महीने की फ़ीस भी नहीं लेंगे। स्कूल एक महीने की ट्यूशन फ़ीस के अलावा कोई अन्य फ़ीस नहीं लेंगे। दिल्ली सरकार के मुताबिक फ़ीस न देने पर किसी भी बच्चे को ऑनलाइन क्लास से नहीं हटाया जाएगा। ट्रांसपोर्टेशन फीस लेने पर भी रोक लगा दी गई है।
स्कूलों में कार्यरत स्टॉफ का ध्यान रखते हुए दिल्ली सरकार ने यह भी आदेश दिया कि सभी प्राइवेट स्कूल अपने सभी स्टाफ (अध्यापन, गैर-अध्यापन, ठेके या आउटसोर्स्ड) की तनख्वाह समय से दें। अगर कोई समस्या है तो पेरेंट्स संस्था की मदद से अपने स्टाफ को सैलरी देनी होगी। इसमें कोई बहाना नहीं चलेगा। दिल्ली सरकार ने स्पष्ट शब्दों में चेतावनी देते हुए कहा कि जो भी स्कूल इन आदेशों का पालन नहीं करेगा उनके खिलाफ आपदा कानून और दिल्ली स्कूल एक्ट के तहत कार्रवाई की जाएगी।
दिल्ली सरकार से पहले उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार और हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर के अलावा कई अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री भी प्राइवेट स्कूलों की मनमानी को लेकर चेतावनी जारी कर चुके हैं। इन राज्यों की सरकारों ने स्कूल फीस के मामले में अभिभावकों को कई तरह की राहत देने वाले आदेशों को भी जारी किया है।
हरियाणा सरकार ने लॉकडाउन की अवधि के दौरान निजी स्कूलों को एक माह की फीस लेने को ही कहा है। इससे पहले मनोहर लाल सरकार ने 27 मार्च को आदेश जारी किया था कि प्राइवेट स्कूल लॉकडाउन के चलते अभिभावकों को तीन माह की फीस देने के लिए बाध्य नहीं करेंगे। राज्य सरकार ने अपने नए फरमान में भी अन्य शर्तें वही रखीं हैं कि लॉकडाउन के दौरान स्कूल प्रबंधक छात्रों को ऑनलाइन पढ़ाने की व्यवस्था करेंगे। साथ ही हरियाणा सरकार ने यह भी कहा है कि यदि किसी छात्र के अभिभावक का रोजगार लॉकडाउन से प्रभावित हुआ है तो उससे फीस नहीं लेने का आवेदन लेकर उस पर सकारात्मक विचार किया जाएगा। ऐसे किसी भी छात्र को न तो ऑनलाइन पढ़ाई से वंचित किया जाएगा और न ही स्कूल की अन्य सुविधाओं से जिसके अभिभावक लॉकडाउन के कारण स्कूल फीस देने में असमर्थ हैं। इसी तरह का आदेश केंद्रशासित चंडीगढ़ प्रशासन की तरफ से भी जारी किया गया है।
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने भी तीन महीनों की फीस एडवांस में मांगने वाले स्कूलों को कड़ी चेतावनी देते हुए इस पर रोक लगा दी है और साथ ही यह भी स्पष्ट आदेश दिया है कि फीस जमा नहीं कर पाने की वजह से किसी का नाम स्कूल से काटा नहीं जाएगा। स्कूल सिर्फ मासिक आधार पर फीस लेंगे और कोई विलंब शुल्क नहीं लिया जाएगा। लेकिन संकट के इस दौर में भी स्कूलों की मनमानी का आलम देखिए कि स्टॉफ को सैलरी देने के नाम पर ये अपनी मनमानी को जायज ठहरा रहे हैं। हरियाणा के निजी स्कूल मालिक तो यहां तक चाहते हैं कि उन्हें पहले की तरह फीस लेने की अनुमति दी जाए और जो अभिभावक लॉकडाउन में प्रभावित हुए हैं, उनकी फीस कुछ समय के लिए स्थगित कर दी जाएगी। निजी स्कूल प्रबंधक चाहते हैं कि लॉकडाउन के दौरान प्रभावित रोजगार वाले अभिभावक उन्हें अपना आवेदन दें तथा साथ ही अपने बैंक में वेतन खाते की स्टेटमेंट भी दें कि उन्हें मार्च माह का वेतन नहीं मिला है। उसके बाद ये प्राइवेट स्कूल अपने रहम की वर्षा करेंगे। ऐसी मांगें करोड़ों रुपये के बैंक बैलेंस रखने वाले स्कूलों की तरफ से ही ज्यादा आ रही है। जबकि होना तो यह चाहिए था कि सरकार इन स्कूलों के खाते को चेक करें और इस संकट काल में इन्हें सहयोग करने का सख्त आदेश दे।
यह हाल सिर्फ हरियाणा का ही नहीं है। अतीत में हम यह देख चुके हैं कि प्रभावशाली लॉबी का इस्तेमाल कर प्राइवेट स्कूल सरकारी आदेशों को ठेंगा दिखाते रहे हैं। ऐसे में सभी राज्य सरकारों को इस पर गंभीरता से निगरानी रखनी होगी। हालांकि सिक्के का एक दूसरा पहलू ये भी है कि कई स्कूल स्वेच्छा से सामने आए हैं और उन्होंने तीन महीनों की फीस नहीं लेने का अपने आप ऐलान कर दिया है। ऐसे स्कूल बधाई के पात्र हैं।
शिक्षा समवर्ती सूची का विषय है इसलिए कोरोना महामारी के वैश्विक संकट के दौर में बेहतर तो यही होगा कि सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ वीडियो क्रांफ्रेंसिंग के जरिए संवाद स्थापित कर प्रधानमंत्री कोई राष्ट्रीय नीति बनाने की पहल करें। सभी राज्य सरकारें अपने-अपने सुझाव केंद्र सरकार को दें। प्रधानमंत्री या केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री इससे जुड़े सभी पक्षों से बात करें और एक स्पष्ट राष्ट्रीय नीति की घोषणा करें जिसे सभी राज्य सरकारें लागू करें। ऐसा करते समय केंद्र सरकार को स्पष्ट तौर पर कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए-
1. संकट की इस विकट स्थिति में सभी स्कूलों को 3 महीने की फीस पूरी तरह से माफ करने को कहा जाए। (यह आदेश सभी स्कूलों पर लागू हो और सभी अभिभावकों को इसका लाभ मिलना चाहिए। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि 3 महीने की ईएएमआई माफ करने के नाम पर बैंकों ने अपने लोन-धारकों को सिर्फ झुनझुना पकड़ा दिया है।)
2. स्कूलों को यह भी आदेश दिया जाए कि वे अपने सभी स्टॉफ को समय पर और पूरा वेतन दें।
3. जो भी स्कूल आर्थिक स्थिति का रोना रोयें, सरकार तुरंत उस स्कूल और उस स्कूल की पैरेंट संस्था के खातों की पूरी डिटेल मांगे और झूठ बोलने वाले स्कूलों के सभी बैंक अकाउंट को सीज कर उनके संचालकों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जाए।
4. अगर किसी स्कूल की हालत वाकई खस्ता है तो सरकार अपनी तरफ से उसकी मदद भी करे।
ऐसे नाजुक और कठिन दौर में किसी को भी मनमानी करने की छूट नहीं देनी चाहिए। साथ ही सरकार को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि ऐसे विकट हालात में अर्थव्यवस्था के सामान्य नियमों के सहारे देश नहीं चलाया जाना चाहिए। इसलिए जहां भी जरूरत हो, सरकारों को खुल कर मदद के लिए सामने आना चाहिए। सभी सरकारों को यह सोचना होगा कि उनका खजाना पहले अमीर लोगों के लिए खुलता था और अब गरीब लोगों के लिए खुल रहा है। देश की अर्थव्यवस्था और सामाजिक व्यवस्था को हमेशा मजबूत बनाने वाले मध्यम वर्ग को संकट के इस दौर में वाकई मदद की जरूरत है और इसके लिए सरकार को नई सोच और नए इरादों के साथ नए तरह के कदम उठाने ही होंगे।