Categories
महत्वपूर्ण लेख

वैदिक धर्म के अनुसार

रचियता-वेदप्रकाश शास्त्री (पावका न: सरस्वती)
अज्ञानतिमिर-विनाशिनी, सदा जगत प्रकाशिनी।
जीवन-प्रदायिनी ऊर्जास्वती। पावका न: सरस्वती।। । 1।
सरस्वती अर्थात वेदवाणी (वेदविद्या) हमें पवित्र करें। अज्ञानांधकार का नाश करने वाली, समस्त संसार को सदा ही ज्ञान के आलोक से आलोकित करने वाली, शक्ति एवं उत्साह से युक्त, जीवन प्रदान करने वाली वेदवाणी हमें पवित्र करे।
स्वस्तिपथ-प्रदर्शिका, सदैव लोकहित-साधिका।
सद्ज्ञान-पूरिता तेजस्वती। पावका न: सरस्वती।। 2।।
कल्याणकारी, मार्गदर्शक, हमेशा लोगों का भला करने वाली, सद्ज्ञान से परिपूर्ण, तेजयुक्त वेदवाणी हमें पवित्र करे।
प्रणवे स्थिता दुरिताहारिणी, दु:ख निवारणी कीर्तिकारिणी।
जाड्यं हरति स्वस्तिमती। पावका न: सरस्वती।। 3।।
एक ओंकार ईश्वर में विद्यमान, दुर्गुण हरने वाली, दु:ख दूर करने वाली, कीर्ति बढ़ाने वाली, कल्याणकारी वेदवाणी मूर्खता जड़ता आलस्य को हर लेती है। इन गुणों से संपन्न वेदवाणी हमें पवित्र करे।
ज्ञानेन पूरयत्यनुचरम, पावयति मनश्च हृदयम्
मातेव रक्षति पयस्वती। पावका न: सरस्वती।। 4।।
वेदवाणी अपने अनुचरों (उपासकों) को ज्ञान से पूरिपूर्ण कर देती है। मन और हृदय को पवित्र करती है। दुग्ध जल शक्ति एवं मधुरता से संपन्न माता के समान रक्षा करती है। ऐसी पवित्र वेदवोणी हमें पवित्र करे।
सुमेधां में ददातु भगवती, करोतु मंगलं में वर्चस्वती।
नमोस्तु ते यशोमति! पावका न: सरस्वती।। 5।।
ऐश्वर्यशालिनी वेदवाणी हमें सद् बुद्घि प्रदान करे। तेज क्रांति शक्ति से युक्त वेदवाणी हमारा कल्याण करे। हे यशपूर्णे वेदवाणी! हम सभी आपको सम्मानपूर्वक धारण् करते हैं। यह वेदवाणी हमें नित्य पवित्र करती रहे।
प्रस्तुत कर्ता
कालीचरन आर्य

Comment:Cancel reply

Exit mobile version