आओ जानें, अपने प्राचीन-भारतीय वैज्ञानिकों के बारे में-4
गतांक से आगे…
श्रीनिवास रामानुजम-आपका जन्म इरोड, तमिलनाडु में 22 दिसंबर 1887 को हुआ। बचपन से ही उनमें विलक्षण प्रतिभा के दर्शन होने लगे। 13 वर्ष की उम्र में इन्हें लोनी की त्रिकोणमिति की पुस्तक मिल गयी और उन्होंने शीघ्र ही इसके कठिन से कठिन प्रश्नों को हल कर डाला। इसके अतिरिक्त अपना स्वयं का शोध कार्य भी आरंभ कर दिया। मैट्रिकुलेशन परीक्षा में गणित में प्रथम श्रेणी प्राप्त की किंतु अन्य विषयों में रूचि न होने के कारण इंटर की प्रथम वर्ष की परीक्षा में दो बार अनुत्तीर्ण हुए। गणित में विशेष योग्यता के कारण उन्हें स्नातक डिग्री न होने के बावजूद रॉयल सोसाइटी और ट्रिनिटी कालेज का फेेलो चुना गया। जीएच हार्डी और जेई लिटिलवुड जैसे विख्यात गणितज्ञों के साथ अनेक निर्मेय स्थापित किये। जिनमें हार्डी –रामानुजम-लिटिलवुड, तथा रोजर रामानुजम जैसे प्रसिद्घ प्रमेय शामिल है। 26 अप्रैल 1920 को 33 वर्ष की अल्पायु में इस प्रतिभा का अंत हो गया।
चंद्रशेखर वेंकटरमन-7 नवंबर 1888 को तिरूचरापल्ली, तमिलनाडु में जन्म हुआ। आरंभ में इनकी रूचि ध्वनि विज्ञान में थी और उन्होंने कलकत्ता स्थित इंडियन एसोसिएशन फोर कल्टीवेशन ऑफ साइंस में वायलिन तथा सितार में तारों द्वारा स्पंदन के विषय में खोज की। किंतु एक बार विदेश से जहाज में लौटते समय समुद्र की विशाल जलराशि तथा आकाश के नीले रंगों ने उनमें इस विषय में जिज्ञासा उत्पन्न कर दी। इसी के फलस्वरूप उन्होंने रमन इफेक्ट नामक शोध की जिस पर इन्हें 1930 में नोबल पुरस्कार प्राप्त हुआ। 1924 में इन्हें रॉयल सोसाइटी का फेेलो चुना गया। 1945 में इन्होंने बंगलौर में रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की। 21 नवंबर 1970 को उनका देहांत हो गया।
बीरबल साहनी-14 नवंबर 1891 को पंजाब के मेड़ा स्थान पर जन्म हुआ। लंदन विश्वविद्यालय से 1919 में डीएससी की डिग्री लेकर एसी स्टीवर्ड प्रसिद्घ वनस्पति वैज्ञानिक के साथ कार्य आरंभ किया। 1929 में वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से डीएससी की उपाधि पाने वाले प्रथम भारतीय बने। 1936 में रॉयल सोसाइटी के फैलो चुने गये। बिहार में अनेक पौधों की खोज की। वनस्पति विज्ञान के अतिरिक्त कुछ प्राचीन चट्टानों की आयु ज्ञात की तथा पुरातत्व विज्ञानी की तरह कार्य करते हुए 1936 में रोहतक में पुराने सिक्कों की खोज की।
मेघनाद साहा-6 अक्टूबर 1893 को ढाका में जन्म हुआ। जन्म से ही देशभक्ति का जज्वा मौजूद था जिसके कारण उन्होंने ब्रिटिश गवर्नर के स्कूल दौरे का बहिष्कार किया। फलस्वरूप उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया तथा छात्रवृत्ति बंद कर दी गयी। हाईस्कूल पास करने के बाद इन्होंने प्रेसीडेंसी कालेज कोलकाता में दाखिला लिया, जहां इन्हें जगदीश चंद्र बोस तथा पी.सी रे जैसे अध्यापक तथा एसएन बोस व पीसी महालनोबीस सरीखे सह पाठियों का सानिध्य प्राप्त हुआ। एस्ट्रोफिजिक्स के क्षेत्र में कार्य करते हुए उन्होंने एक सूत्र दिया जिससे खगोल शास्त्री सूर्य तथा अन्य सितारों के अंदर का अध्ययन कर सकें। 1922 में रॉयल सोसाइटी के फैलो चुने गये। इन्होंने 1948 में कोलकाता में साहा इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूकिलियर फिजिक्स की स्थापना की। इसके अतिरिक्त दोमोदर घाटी, भाखड़ा नांगल तथा हीराकुंड परियोजनाओं में भी सहायता की। साइंस एण्ड कलचर नाम की पत्रिका भी इन्होंने आरंभ की। 1962 में लोकसभा सदस्य चुने गये। 16 फरवरी 1966 को उनका देहावसान हो गया। क्रमश: